दुर्घटना के बाद और पहले (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Oct 4 2025 11:01AM

अपने पुराने कुकर्म भूल कर कहा जाता है कि वैसे तो यह दुर्घटना प्रकृति के प्रकोप के कारण ही हुई लेकिन नदियों के किनारे भवन निर्माण नहीं करना चाहिए। पहाड़ों का सीना फाड़कर सड़कें बनाई गई, सड़कें चौड़ी की गई, सुरंगे बनाई गई, ऐसा अब नहीं होना चाहिए।

दुर्घटना के बाद मलबे में काफी कुछ दब जाता है। बहुत कुछ खत्म हो जाता है। वाहन की बात छोड़ो पैदल पहुंचना मुश्किल हो जाता है। लोग मर कर फंसे रह जाते हैं। स्थिति से निबटने के लिए सेना को बुलाना पड़ता है। मलबे के कई कई फुट ऊंचे ढेर लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में रास्ता बनाना काफी दुरूह काम होता है। नेताओं के लिए ऐसा समय बहुत मुश्किल भरा होता है। उन्हें भावनात्मक होना पड़ता है। ज़्यादा मानवीय होने का अभिनय करना पड़ता है। हालांकि कमबख्त राजनीति उन्हें मानवीय कहां रहने देती है। राजनीति भी परेशान तो होती है। उसे हर किसी को, पक्ष और विपक्ष दोनों के वोटरों को ढांढस बंधवाना पड़ता है। राहत की घोषणा करनी पड़ती है। कई बार तो राहत बांटनी भी पड़ती है। आने वाला चुनाव सर पर मंडराने लगा हो तो ज़्यादा सक्रिय दिखना पड़ता है।  

अपने पुराने कुकर्म भूल कर कहा जाता है कि वैसे तो यह दुर्घटना प्रकृति के प्रकोप के कारण ही हुई लेकिन नदियों के किनारे भवन निर्माण नहीं करना चाहिए। पहाड़ों का सीना फाड़कर सड़कें बनाई गई, सड़कें चौड़ी की गई, सुरंगे बनाई गई, ऐसा अब नहीं होना चाहिए। उससे पहले जब तबाही की योजनाएं कागज़ पर होती हैं तब राजनेताओं का मानवीय दिमाग घास चरने गया होता है। यही नेता राहत शिविरों में पूरी ताक़त झोंककर राहत अभियान चलाते हैं। खोजी कुत्ते, ड्रोन, खोदाई करने वाली मशीनें मंगवा देते हैं। लेकिन इनके खोजी दिमाग पहले गुम रहते हैं। दुर्घटना से पहले इन्हें, सुरक्षा विचार अभियान चलाना नहीं आता।

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दुर्घटना के बाद राजनीति, शासन और अनुशासन मुस्तैद होकर, राहत सामग्री, पीड़ितों तक समयबद्ध तरीके से पहुंचाने के निर्देश देते हैं। इनके लिए दुर्घटना से पहले कुछ भी करना मुश्किल होता है। बाद में तो प्रत्येक व्यक्ति तक राहत पहुंचाने का आश्वासन बांटते हैं। राहत शिविर में बचे हुए आम लोगों को, कहते हैं भगवान ने बचाया। इसका मतलब यह हुआ कि जिसे मरवाया इंसान ने मरवाया। दुर्घटना के बाद प्रसिद्ध व्यक्तियों, फिल्म अभिनेताओं, अभिनेत्रियों के बयान छपना भी एक नव सामाजिक परम्परा है। इसे उनके दर्द का छलकना कहा जाता है। जिसमें कहा जाता है कि जो हुआ है दिल दहला देने वाला है, घटना से प्रभावित लोगों के प्रति संवेदनाएं हैं, सभी की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं, प्रभावितों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिले, पूरे देश के एकजुट होने का समय है।   

दुर्घटना से पहले, प्रसिद्ध लोग, अभिनेता, अभिनेत्रियां और देश एकजुट होकर कभी नहीं कहता कि जहां ज़रूरत नहीं है वहां फोरलेन मत बनाओ। पहाड़ों को मत फाड़ो, सुरंगे मत बनाओ, नदियों के किनारे निर्माण मत करो। पानी का रास्ता मत रोको, उसे सामान्य तरीके से बहने दो, हर जगह सीमेंट मत डालो। यह बातें तब की जाती हैं जब दुर्घटना हो जाती है। यह नैतिक, मानवीय बातें तब की जाती हैं जब दुर्घटना के बाद मशीनें पहुंचने में वक़्त लगता है, लोग दबे रह जाते हैं, कुछ लोगों की तो लाश भी नहीं मिलती, किसी की सिर्फ बाज़ू ही मिलती है। दुर्घटना के बाद ही मंत्री, मुख्यमंत्री और उनके साथ बड़े आकार और प्रकार के अफसर आते हैं। एक बच्चे को गोद लेने के लिए कई संस्थाएं तैयार हो जाती हैं। दुर्घटना से पहले बहुत कुछ मुश्किल होता है।

- संतोष उत्सुक

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