जांच हो तो ऐसे (व्यंग्य)

neta
Prabhasakshi

कुछ ऐसे विभाग हैं हमारे, जिनके महाकमाऊ कर्मचारी अपना कीमती समय निकालकर, दूसरी जगह अपनी बहुमूल्य सेवाओं का मूल्य वसूल करने के लिए जी तोड़ मेहनत करना शुरू कर देते हैं। अपनी आर्थिक सेहत के साथ दूसरों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं।

किसी भी व्यक्ति की किसी भी परेशानी को हल करने के दो तरीके हो सकते हैं। उन्हें अच्छी तरह से समझा दिया जाए। अगर उनको समझ नहीं आ रहा या समझा नहीं पा रहे तो उन्हें अच्छी तरह से कंफ्यूज कर दिया जाए। किसी भी मामले में जांच के बाद एक ही बात सामने आएगी। बंदा दोषी मान लिया जाएगा या केस इतने सधे हुए तरीके से उलझा दिया जाएगा कि कई साल तक सुलझ न सके। किसी भी तरह की जांच करना भी एक कला है। कई बार जांच, संजीदगी में डूबी गहराई से की जाती है। इतनी कि दोनों जांच रिपोर्ट्स अलग अलग होती हैं। एक रिपोर्ट बचाती है दूसरी फंसाती है। इस तरह जांच गज़ब हो जाती है। दिलचस्प है कि बड़े आकार की कुर्सियों पर विराजने वाले महाअनुभवियों की शिकायत महिला कर्मचारी से करवाई जाती है। ऐसा करना सुरक्षित माना जाता है।

कुछ ऐसे विभाग हैं हमारे, जिनके महाकमाऊ कर्मचारी अपना कीमती समय निकालकर, दूसरी जगह अपनी बहुमूल्य सेवाओं का मूल्य वसूल करने के लिए जी तोड़ मेहनत करना शुरू कर देते हैं। अपनी आर्थिक सेहत के साथ दूसरों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं। जब शिकायतजी आती हैं तो गेंदे के ताज़ा फूलों से उनका स्वागत किया जाता है। ऊंची कुर्सी वाले, अनुशासन प्रिय, अनुशासन बनाए रखने वाले, एक दो या तीन सदस्य वाली सख्त जांच कमेटी गठित कर दी जाती है। 

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ऊंचे स्तर की पहली कुर्सी दोषी करार देती है, ऊंचे ही स्तर की दूसरी कुर्सी दोषी को दोषी करार नहीं देती। ऐसे की जाती है गुणात्मक जांच। सभी जानते हैं कि आजकल कई महिलाएं, कानूनों का उचित फायदा उठाती हैं और पुरुषों को फंसा देती है। जांच शुरू हो जाए तो कई मामलों में जुगाड़ शुरू हो जाता है। जांच का जाना माना प्रारूप तो ऐसा ही है । जांच करने वाले तकनीकी, शैक्षिक मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक रूप से सक्षम व्यक्ति होते हैं। जांच करने के लिए ऐसे व्यक्ति चुने जाते हैं जिन्हें जांच के सभी कायदे कानून का पता हो। जांच भी एक तरह की आंच ही होती है जिसकी आहुतियां वांछित हवन सामग्री के बिना संपन्न नहीं हो सकती।  

जांच के दौरान झूठे या सच्चे शपथ पत्र, उचित गवाह की भूमिका निभाते हैं। दूसरों पर साज़िश रचने का आरोप भी लगाया जाता है। जब जांच में दोनों जांचकर्ता अलग अलग रिपोर्ट दें तो दोनों रिपोर्ट्स को उच्च प्रशासनिक अधिकारी के पास भेज दिया जाता है। क्यूंकि वे ही ऐसे मामलों को निबटाने में महासक्षम और लायक होते हैं। उन्हें यह अनुभव होता है कि किस मामले का फुटबाल मैच बरसों खिलाना है और किसे टेबल टेनिस की तरह निबटाना है। ज़रूरत के मुताबिक वे बड़ी या छोटी राजनीतिक टांग भी फंसवा देते हैं। जिससे नए अंदाज़ में मामले की जांच कर, उदाहरण स्थापित किया जाता है। दोनों विरोधी पार्टियों को एक ख़ास मेज़ के पास बिठाकर, मामले का चाय, पानी, दही, लस्सी, रायता या वाइन वगैरा बना कर पिला दिया जाता है। जांच की ऐसी की तैसी करने के बाद चेहरों पर मुस्कुराहटें खिली होती है। इसी प्रक्रिया को कहते हैं जांच हो तो ऐसे।

- संतोष उत्सुक

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