कड़े शब्दों में निंदा का अर्थ जानते हैं? (व्यंग्य)

मुझे अपने अल्प-ज्ञान के कारण हमेशा शर्मिंदा होना पड़ता है। जब-जब दुश्मन देश नापाक हरकतें करता है हमारे देश के कर्णधारों के श्रीमुख से कड़े शब्दों में निन्दा का रस झरने लगता है।
मुझे अपने अल्प-ज्ञान के कारण हमेशा शर्मिंदा होना पड़ता है। जब-जब दुश्मन देश नापाक हरकतें करता है हमारे देश के कर्णधारों के श्रीमुख से कड़े शब्दों में निन्दा का रस झरने लगता है। ये कड़े शब्द कैसे होते हैं आज तक पल्ले नहीं पड़े। इस एक शब्द की बदौलत मुझे अनेक बार शर्मिंदा होना पड़ा है। आज फिर होना पड़ा जब मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा- "भाई साब आप लेखक हो आपके पास शब्दों का भण्डार है.. आप मुझे कड़े शब्दों के बारे में कुछ ज्ञान दीजिए.. दिखने या सुनने में ये कैसे होते हैं.. बचपन से कड़े शब्दों में निंदा के बारे में सुन रहा हूँ पर आज तक समझ नहीं पाया हूँ-- आप कुछ ऐसे शब्द बता दें जिन्हें मैं माननीय मंत्री जी को मेल कर दूँ।
मेरा मित्र भी मेरी तरह ही भोला है। कोई अन्य अवसर होता तो मैं उसके भोलेपन पर हँसता पर मैं अपनी झेंप मिटाने में व्यस्त रहा। वह मेरे ऊपर उपहास पूर्ण दृष्टि डालते हुए चला गया। मैं तबसे कड़े शब्दों को पकड़ने में व्यस्त हूँ। इसी उधेड़बुन में ऑफिस पहुँचा तो गेट पर माखन सिंह से भेंट हो गई। वह मेरे कार्यालय का ही कर्मचारी है.. पिछले चार दिनों से बिना बताए ग़ायब था। मैंने कल ही उसके निलम्बन के आदेश पर साइन किए थे। उसने हमेशा की तरह झुक कर नमस्कार किया। मैं बिना बोले चेम्बर में चला आया। थोड़ी देर बाद ही उसकी पर्ची आ गई कि मिलना चाहता है।
"सर आपने मुझे निलम्बित कर दिया"- उसने अति विनम्रता पूर्वक कहा।
"हाँ.. तुम कई दिनों से बिना बताए अनुपस्थित थे.. तो कार्यवाही तो होनी ही थी"- मेरी अफ़सरी शब्दों में फूट रही थी।
"सर एक बात पूछूं आपसे"
"हाँ बोलो.. क्या कहना है"
"सर आप कौन हैं"
मेरे लिए उसका यह प्रश्न अप्रत्याशित था। मैं अचकचाया पर जल्दी ही स्वयं को संभालते हुए बोला- "मैं सरकार का प्रतिनिधि हूँ"
उसने जेब से एक तस्वीर निकाली और मेरे सामने रखते हुए बोला- "सर ये सरकार के अरबों रुपए लेकर भाग गया .. सरकार ने क्या कहा .. क़ानून अपना काम करेगा .. क़ानून काम कर रहा है .. सरकार ने उसे जेल तो नहीं भेजा.. सर आप तो प्रतिनिधि हैं.. मैंने तो आपको किसी तरह की कोई हानि नहीं पहुंचाई फिर आपने इतनी कड़ी सज़ा दे दी" वह और कुछ आगे बोलता मैंने उसे टोक दिया- "व्यर्थ के तर्क देकर मेरा समय बरबाद मत करो.. कुछ और कहना है तो जल्दी से कहो"
अब उसने दूसरी जेब से एक और तस्वीर निकाली और मेरे हाथ में पकड़ा दी- "सर ये मेरे काका का लड़का है.. दुश्मन उसकी लाश तक से सिर काट कर ले गया.. मैं उसकी शहादत की ख़बर सुनकर गाँव चला गया था- शहीद को कंधा देने का पुण्य कमाने.. इसलिए आपको बता नहीं सका"
मैं लज्जित हुआ, बोला- "माखन कहीं से एक फ़ोन ही कर देते"
"सर गलती हो गई.. मैं सुन कर ही पागल सा हो गया था.. उसकी पिछले साल ही शादी हुई थी.. बहु भी पेट से है.. मुझे कुछ सूझा ही नहीं.. पर सर आपने मुझे निलम्बित कर दिया इसका मुझे कोई अफ़सोस नहीं है.. आप भी चाहते तो मेरी गलती पर मुझे सरकार की ही तरह कड़े शब्दों में चेतावनी दे सकते थे-- मैंने गलती की आपने कड़ी कार्यवाही की.."
उसके शब्दों ने मुझे अंदर तक हिला दिया। मैंने बड़े बाबू को बुलाकर माखन का निलम्बन आदेश रद्द करने के लिए कहा। उसे कुर्सी पर बैठाया.. फिर स्वयं को संयत करते हुए पूछा- "माखन.. क्या तुम जानते हो ये कड़े शब्द कैसे होते हैं"
"सर.. ये मैं कैसे बता सकता हूं कि कड़े शब्द कैसे होते हैं- आप सरकार के प्रतिनिधि हैं तो आपको पता होंगे-- पर जबसे भाई की सर कटी लाश देखकर आया हूं तो लगता है नपुंसक टाइप के शब्द होंगे ये- बोलने वाले के अलावा किसी को कड़े नहीं लगते-- उलटे हास्यापद लगते हैं"
उसकी बात मेरी समझ में तो नहीं आई.. पर मैं अपनी कार्यवाही को लेकर ज़रूर अब तक शर्मिंदा हूँ।
अरुण अर्णव खरे
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