छोटी बहन से मदद (बाल कहानी)

बात शेखू की समझ में आ गई। पापा ने अपने जानने वाले एक अध्यापक से अनुरोध किया तो वे मान गए। कई बार शेखू होम वर्क करते करते लेट हो जाता, कभी वह किसी काम से बाहर गए होते। टयूशन ठीक ढंग से नहीं हो पाई, संस्कृत शेखू को मैथ ही लगती रही।
शेखू चौथी कक्षा में हो गया था। इस कक्षा से उसे संस्कृत भी पढ़नी थी। उसने संस्कृत की किताब खोलकर देखी तो लगा यह तो मैथेमैटिक्स की बहन है। वह चाहता था कि संस्कृत पढ़ाई के मैदान से हट जाए मगर उसके चाहने से कुछ हो नहीं सकता था। परीक्षा पास करने के लिए संस्कृत पढ़नी ही थी। उसके मम्मी पापा को भी संस्कृत नहीं आती थी। पापा ने शेखू को अपने किसी सहपाठी की मदद लेने को कहा तो वह बोला मैं खुद कर लूंगा। मम्मी बोली संस्कृत अच्छी तरह पढ़ सको इसलिए कुछ समय के लिए टयूशन रख देते हैं पर वह नहीं माना। पापा ने फिर समझाया, ‘बेटे अपना काम खुद करना अच्छी बात है मगर जो काम कठिन लगे उसे किसी और से सीख लेना चाहिए। एक दूसरे के सहयोग से ही हमारे जीवन में अनेक काम होते हैं।’
बात शेखू की समझ में आ गई। पापा ने अपने जानने वाले एक अध्यापक से अनुरोध किया तो वे मान गए। कई बार शेखू होम वर्क करते करते लेट हो जाता, कभी वह किसी काम से बाहर गए होते। टयूशन ठीक ढंग से नहीं हो पाई, संस्कृत शेखू को मैथ ही लगती रही। परीक्षा में शेखू के अच्छे अंक नहीं आए। अगला साल शुरू हो गया। शेखू पांचवीं कक्षा में हो गया और उसकी छोटी बहन, अन्नू चौथी कक्षा में, अब उसे भी संस्कृत पढ़नी थी। संयोग रहा कि उसे शुरू से ही संस्कृत समझ आने लगी। कुछ महीनों में ही वह संस्कृत अच्छी तरह से पढ़ने व समझने लगी। लिखती तो टीचर पूरी कक्षा को दिखाती थी उसकी अभ्यास पुस्तिका। अन्नू को पता था कि भैया को संस्कृत कम समझ आती है। उसने कहा भैया आओ मैं समझा देती हूं मगर शेखू बोला तुम मुझसे छोटी हो मैं तुमसे मदद क्यों लूं?
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मम्मी ने समझाया, ‘बेटे हर विषय में सबकी सीखने की क्षमता एक जैसी नहीं होती। किसी को कोई विषय अच्छा लगता है तो दूसरे को दूसरा कोई और अच्छा व आसान। दूसरों से कुछ भी सीखना हो तो यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि सिखाने वाला छोटा है या बड़ा, मोटा है या पतला। हमें ईमानदारी से मेहनत कर, सीखने की तरफ ध्यान देना चाहिए। मम्मी प्लीज, शेखू बोला। नो प्लीज, अन्नू तुम्हारी बहन है। तुम्हारी हमउम्र है, छोटी हुई तो क्या हुआ। उसे अच्छे से संस्कृत पढ़ना, लिखना आता है। वह तुम्हारी मदद करना चाहती है, कर सकती है। तुम्हें क्या प्राब्लम है? तुम्हें इस बारे कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। तुम अपने कमरे में जाओ और विचार करो सोचो कि तुम्हें ऐसा करना चाहिए या नहीं। सोचकर निश्चय कर बताना, जाओ।
शेखू अपने कमरे में आ गया और सोचने लगा, ज़रा सी बात के लिए उसके दिमाग में खूब उथल पुथल हुई। आखिर उसे समझ आ गया कि फायदा तो उसका ही है। संस्कृत पढ़ने के लिए उसे घर से बाहर नहीं जाना पड़ेगा, हमारे पैसे भी बचेंगे और अन्नू की मदद जब चाहे ले सकता हूं। इस बहाने संस्कृत अच्छी तरह से आ जाएगी, फिर अंक भी अच्छे ही आएंगे। टीचर भी नहीं डांटेगी और मम्मी पापा भी शाबाशी देंगे। अन्नू को भी अच्छा लगेगा।
अगले दिन जब वह स्कूल से आया तो उसकी मम्मी ने उसे अन्नू से कहते पाया, ‘यार तू मेरी छोटी बहन है न, प्लीज तू मुझे संस्कृत सिखा देगी न ? उधर अन्नू तो पहले से ही टीचर बनने को तैयार थी। उसने कहा, ‘भैया तुम फिक्र मत करो। मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगी।’ शेखू और अन्नू के आपसी सहयोग ने कमाल कर दिया। शेखू ने संस्कृत अच्छे ढंग से सीखी और मेहनत व लगन के कारण उसके अंक भी पहले से कहीं अच्छे आए। उसे समझ आ गया था कि जरूरत पड़े तो मदद, छोटों से लेना भी बुरा नहीं।
- संतोष उत्सुक
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