लोमड़ियों के खट्टे वैक्सीन (व्यंग्य)

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जवाब देने से पहले मैंने क्रॉस चेक करते हुए पूछा– क्या आपने वैक्सीन ली है? जैसी आशा थी वैसा ही उत्तर दिया – नहीं। चूंकि मैं वैक्सीन ले चुका था और उनका वैक्सीन लेना बाकी था सो वैक्सीन रूपी अंगूर का खट्टा होना तो स्वाभाविक था।

कहते हैं जब तक लोमड़ी के लिए अंगूर खट्ठे हैं तब तक दुनिया के सारे अंगूर खट्टे ही लगते हैं। उन्हें पता है कि अंगूर मीठे हैं, लेकिन जब तक न मिलें तब तक खट्टे कहना उनके डीएनए का परिचायक है। ऐसे ही एक लोमड़ी स्वभाव वाले लोमड़ी बाबू ने हमसे पूछ लिया– हमने सुना है कि वैक्सीन की दोनों डोज़ के बावजूद बंदा संक्रमित होता जा रहा है। फिर इसमें कोरोना न होने की गारंटी किधर है?

जवाब देने से पहले मैंने क्रॉस चेक करते हुए पूछा– क्या आपने वैक्सीन ली है? जैसी आशा थी वैसा ही उत्तर दिया – नहीं। चूंकि मैं वैक्सीन ले चुका था और उनका वैक्सीन लेना बाकी था सो वैक्सीन रूपी अंगूर का खट्टा होना तो स्वाभाविक था। जानवरों को कुछ बातें मार-पीट कर समझा सकते हैं। ये तो एकदम साबूत जीते-जागते इंसान हैं। इनके साथ तो ऐसा व्यवहार नहीं कर सकता न! हैं तो वे टेढ़े लेकिन दिल के बड़े अच्छे हैं। टेढ़ों को टेढ़े तरीके से समझाना पड़ता है। यही दुनिया का दस्तूर है। हमने इसी दस्तूर को निभाने के लिए अपनी पुरजोर कोशिश की।

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मैं लोमड़ी बाबू को खट्टे अंगूरों के भूत से बाहर निकालने के लिए पूछा– आप यहाँ तक कैसे पहुँचे?

बदले में जवाब का तुक्का फेंकते हए कहा– बाइक पर!

वाह! बहुत बढ़िया। तब आप एक काम कीजिए। आप अपना हेलमेट यहीं छोड़कर जाइए। मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

कमाल की बात करते हैं। आप आदमी हैं या पाजामा? भला कोई हेलमेट के भी सफर करता है? खुदा न खास्ता अगर कहीं ऊँच-नीच हो गयी तो जान से हाथ धोना पड़ेगा। क्या आपको मेरी जान की कोई परवाह नहीं है? – लोमड़ी बाबू ने गुस्से में कहा।

अरे!-अरे! आप तो बुरा मान गए। आपको दुखी करना मेरा उद्देश्य नहीं था। अब आप ही बताइए कि हेलमेट पहनने वाले सभी लोगों की दुर्घटना थोड़े न होती है। वह तो सब किस्मत की बात है। इसीलिए मैंने आपसे हेलमेट मांग लिया। आप को तो गाड़ी चलाने का इतना अनुभव है, भला बिना हेलमेट के सफर करने से आपको क्या होगा? ऐसे हेलमेट का होना भी कोई होना है? बेवजह में सिर पर इतना बोझ धरे सफर करने से क्या लाभ? – मैंने उनके नहले पे दहला फेंकने की कोशिश की।

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लोमड़ी बाबू का गुस्सा अब तक काबू में था। किंतु मेरी बतकही सुनकर उनकी मर्यादा का बांध टूट चुका था। अभद्र भाषा की डिक्शनरी में से दो-चार शब्द निकाल मेरे मुँह पर मारते हुए कहा– लगता है आप वैक्सीन लगने से बहक से गए हैं। हेलमेट के बारे में ऐसी बहकी-बहकी बातें करना शोभा नहीं देती। इंसान हेलमेट इसलिए नहीं पहनता कि कोई दुर्घटना घटेगी। बल्कि दुर्घटना घटने पर गंभीर क्षति या फिर सिर पर भारी चोट लगने से बचने के लिए पहनता है। अब तो आपकी मोटी अक्ल में मेरी बात घुस ही गयी होगी।

मैंने उनके गुस्से को हवा में फितूर करते हुए कहा– अब तो आपको समझ में आ ही गया होगा कि हमें वैक्सिन क्यों लेना चाहिए?

लोमड़ी बाबू फिर भी अपनी बात पर अड़े रहे और कहने लगे– लेकिन कोरोना संक्रमित सभी थोड़े ही न मरते हैं। ज्यादातर लोगों को हल्का-फुल्का संक्रमण होता है और चला जाता है!

यही तो! मैं भी यही कहना चाहता हूँ कि दुर्घटनाग्रस्त सभी लोग थोड़े ही न मरते हैं। ज्यादातर लोग छोटी-मोटी चोटों का शिकार होते हैं। ऐसे में हरदिन हेलमेट पहनकर जाने का क्या मतलब! बेफिजूल में इस टोपे को सिर पर धरने का क्या फायदा? यूँ ही जा सकते हैं न! इसलिए मेरी बात मानिए अपना टोपा यहीं छोड़ जाइए।

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लोमड़ी बाबू घोर चिंता की डूब से बाहर निकले। आँखों में जान की कीमत साफ़ झलक रही थी। कहा– जान है तो जहान है। मैं बिना हेलमेट के सफर नहीं करता। अब मैं वैक्सीन भी लगवाऊँगा। इतना कहते हुए हेलमेट पहले खट्टे अंगूरी लोमड़ी बाबू मीठे अंगूरी बाबू बनकर अपने रास्ते चलते बने।

-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

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