मुद्दे कम नहीं हैं परेशान होने के लिए (व्यंग्य)

neta
Prabhasakshi

घर, मोहल्ले, शहर, प्रदेश, देश, विदेश से लेकर ब्रह्मांड में घटित घटनाओं, खेल, धर्म, राजनीति, सम्मान, पुरस्कार, गोष्ठी, त्योहार, बाबाओं और फिल्मों जैसे तमाम विषय हैं जिनमें वह कोई न कोई एंगल तलाश कर परेशान हो जाते हैं।

मुरारी जी हमेशा किसी न किसी बात को लेकर परेशान रहते हैं, लेकिन वह मँहगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिकता जैसे आम लोगों के रोजमर्रा के मुद्दों को लेकर परेशान नहीं होते। वह 'उसकी कमीज मुझसे ज्यादा सफेद क्यों' जैसे ईर्ष्या भाव वाले विषयों से भी वास्ता नहीं रखते और न ही वह गेंदालाल ने आज ऑफिस में प्रवेश करते समय फिर नमस्कार नहीं किया जैसी बातों पर ध्यान देते हैं | इसके बावजूद मुरारी जी के पास परेशान रहने के असंख्य कारण हैं, परेशान होने का उनका फलक बहुत विस्तृत है।

चुनावों का समय हो तो वह चुनाव आयोग, तारीखों, ई.वी.एम., दल-बदल, उम्मीदवारों के चेहरों और स्टार प्रचारकों के नामों को लेकर परेशान रहे आते हैं। आम सभा में नेता जी के भाषण के दौरान कोई उन पर जूता या स्याही तो नहीं फेंक देगा, रोड शो में खाली सड़कें लोकप्रियता की पोल तो नहीं खोल देंगी, जनसंपर्क के दौरान पर्याप्त तवज्जो मिलेगी या नहीं, किसी को सामने आने से रोकने के लिए बाँह पकड़ कर खींचते हुए तस्वीरें कैमरे में कैद तो नहीं हो जाएँगी, गरमागरम टीवी बहस के बीच कोई प्रवक्ता एंकर को ठोक तो नहीं देगा, इन चुनाव में भी डेरा प्रमुख को पेरोल मिलेगी कि नहीं, किस नेता पर कानून का शिकंजा कसेगा और कौन भ्रष्ट नेता धुलकर पवित्र हो जाएगा जैसी अनेक बातें उनके दिमाग में घूमते हुए उन्हें हलकान किए रहती हैं।

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त्योहारों का उत्सवी सीजन हो तब भी मुरारी जी चिंताग्रस्त पाए जाते हैं। मकर संक्रांत पर पतंगबाजी में चीनी मांझे से किसी बच्चे की गर्दन तो नहीं कटेगी, गरबा में हर साल अपने गानों से पैरों में थिरकन पैदा करने वाले आतिश को बुलाया जाएगा कि नहीं, दीवाली पर चीनी पटाखों को बैन करने का रस्म-अदायगी नुमा विरोध इस बार भी होगा कि नहीं या ईद पर सलमान खान की फिल्म रिलीज होगी कि नहीं। फिल्म का टीजर रिलीज होने वाला हो तो भी मुरारी जी को आशंकाएँ घेरने लगती हैं। पता नहीं देख कर कब कौन आहत हो जाए, कौन सा रंग किसकी आस्था पर चोट कर जाए और देश में बवाल मचने लगे।

सामान्य दिनों में भी मुरारी जी कम परेशान नहीं रहते। कई बार वह सोचते रहते हैं कि इस साल सर्दियों का बीस साल पुराना रिकार्ड टूटेगा या नहीं, गर्मियों में पारा पचास के पार तो नहीं जा पहुँचेगा, रात को दो बजे पंद्रह साल पहले रिटायर हो चुके नीलकांत मास्साब के फेसबुक पेज पर नीला बल्ब क्यों जल रहा है, सिलैंडर की कीमतों पर बवाल काटने वाली नेत्री बेटियों के बलात्कार पर क्यों नहीं बोलती, छ: माह से विधायक तोड़ने या सरकार गिराने की खबर क्यों नहीं आ रही, हसीन चेहरे वाली जिस मोहतरमा की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई है वह मोहतरमा ही होगी या.., टाइम ट्रैवल थ्यौरी पर अभी तक नए-नए दीक्षित किसी विद्वान ने यह क्यों नहीं बताया कि सदियों पहले फलाँ ऋषि फलाँ ग्रंथ में यह सब बता गए हैं।

घर, मोहल्ले, शहर, प्रदेश, देश, विदेश से लेकर ब्रह्मांड में घटित घटनाओं, खेल, धर्म, राजनीति, सम्मान, पुरस्कार, गोष्ठी, त्योहार, बाबाओं और फिल्मों जैसे तमाम विषय हैं जिनमें वह कोई न कोई एंगल तलाश कर परेशान हो जाते हैं। किसी दिन सुबह देर से नींद खुली तो परेशान हो जाते हैं कि कहीं तबियत नासाज तो नहीं है और शाम तक ब्लडप्रेसर व शुगर चेक करवाने से लेकर ई.सी.जी. भी करवा डालते हैं। किसी दुर्घटना में मृत हुए लोगों की अखबार में छपी खबर पढ़कर व्याकुल हो उठते हैं कि मरने वाला उनका कोई परिचित या उनके परिचित का कोई रिश्तेदार तो नहीं था। संवेदना के ये तार आजकल अपने, अपनों से जोड़कर रखना नहीं चाहते, मुरारी जी अनजान लोगों से जोड़कर परेशान हो जाते हैं।

अब कितनी चर्चा की जाए मुरारी जी की परेशानियों की। सोचता हूँ तो लगता है कि उनकी परेशानियों की वजह तो जायज है। हमीं इतने मशरूफ हैं जो इन विषयों को नजर अंदाज कर जिए जा रहे हैं।

- अरुण अर्णव खरे

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