करुणानिधि के मित्र पर चली गोलियां और अस्पताल में भर्ती हुए एमजी रामचंद्रन

MGR Karunanidhi
अभिनय आकाश । Mar 5 2021 5:13PM

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजीआर के कटआउट कोयंबतूर में पीएम मोदी की रैली में लगे थे।आखिर क्या है एमजीआर में ऐसा जिसके पोस्टरों का प्रयोग कर बीजेपी अपनी राजीनितक पैठ बना रही है और विरोधियों की नींदे भी उड़ा रही है।

राजनीति का वो सितारा जिसने सिनेमा की ताकत को पहचाना और उसे सियासत की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किया। जिसके प्रगाढ़ मित्र उसी के परम विरोधी बन गए और दाग दी दो गोलियां। जो एक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा तो अपने आखिरी सांस तक तमिलनाडु के सीएम के रुप में काबिज रहा। आज उसी राजनेता की कहानी सुनाऊंगा जिसने अभिनेता के तौर पर ही नहीं बल्कि राजनेता के तौर पर भी लोगों के दिलों पर राज किया। दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में पैठ बनाने के लिए बीजेपी अपनी रैलियों और प्रचार में दूसरे दलों के कद्दावर नेताओं के पोस्टर का उपयोग कर रही है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजीआर के कटआउट कोयंबतूर में पीएम मोदी की रैली में लगे थे। पीएम मोदी की रैली में कामराज और एमजीआर के प्रति सम्मान दिखाने के लिए दोनों नायकों के बड़े कटआउट के मुकाबले मोदी के छोटे कटआउट लगाए गए। एआईएडीएमके जिसका गठबंधन बीजेपी के साथ माना जा रहा है। बीजेपी के इस कदम से उसने अपना एतराज जताया है कि बीजेपी को अपने महापुरुषों का इस्तेमाल करना चाहिए न कि हमारे। डीएमके कह रही है कि बीजेपी को कामराज और एमजीआर दोनों के नाम और चेहरे का इस्तेमाल करने का हक नहीं। उधर बीजेपी इस वजह से खुश है कि उसे लगता है कि उसका निशाना सही जगह पर लगा है। ऐसे में आखिर क्या है एमजीआर में ऐसा जिसके पोस्टरों का प्रयोग कर बीजेपी अपनी राजीनितक पैठ बना रही है और विरोधियों की नींदे भी उड़ा रही है। आज की कहानी तमिलनाडु की सियासत में लाइट, कैमरा और एक्शन के साथ एंट्री कर राजनीतिक पटल पर छा जाने वाले नेता मारुदुर गोपालन रामचंद्रन यानी एमजीआर की। 

1981 में एक फिल्म आई थी नसीब जिसका गाना है जिंगदी इम्तिहान लेती है... लेकिन मरूदुर गोपालन रामचंद्रन ने अपने जिंदगी के सफर में एक नहीं बल्कि दो इम्तिहान दिए। पहले तो फिल्मी दुनिया से सियासत में कदम रखने के बाद मित्र के दुश्मन बन जाने और दोस्त से ही गोली खाने का फिर तमाम झंझावतों से जूझते हुए तमिलनाडु की सीएम की कुर्सी पर पहुंचने के साथ ही भारत रत्न तक से नवाजा जाना। 

एमजीआर के नाम से फेमस मरुदुर गोपालन रामचंद्रन ने एक अभिनेता के तौर पर ही नहीं बल्कि राजनेता के तौर पर भी लोगों के दिलों पर छाए रहे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत फिल्मों से की थी। गांधीवादी आदर्शों से प्रभावित होकर एमजीआर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। करुणानिधि के शब्द और एमजीआर के एक्शन ने एक-दूसरे को मंजिल तक पहुंचाने में मदद की। 1950 का दौर था और करुणानिधि की स्क्रिप्ट मंतिरी कुमारी ने एमजीआर को बड़ी सफलता दी। युवा लेखक करुणानिधि को अपनी योग्यता से नाम, मिश्रित विचारधारा और व्यावसायिक सफलता मिली और एमजीआर एक बड़े एक्टर हो गए। साल1953 में एमजीआर सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके पार्टी) में आ गए। उन्होंने राज्य में चल रहे द्रविड़ अभियान में ग्लैमर जोड़ दिया। वर्ष 1967 में एमजीआर विधायक बने। अन्नादुरई की मृत्यु के बाद वह डीएमके के कोषाध्यक्ष बने और उस वक्त करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। एमजीआर के मित्र करुणानिधि ने एमजीआर के करियर को नया मोड़ देने वाली फिल्म मंतिरी कुमारी के अलावा एमजीआर के लिए खासतौर से ऐसी पटकथाएं तैयार की जिनसे वे गरीबों के मसीहा के तौर पर सामने आए। उन फिल्माों की सफलता ने डीएमके को मजबूत बनाने का काम किया। सामाजिक विसंगति, गरीबी, तमिल-द्रविड़ और भाषाई आंदोलन की जिन बातों को तमिल समाज पिछवे डेढ़ दशक से सुनता आ रहा था, एमजी रामचंद्रन ने जमीनी स्तर पर उसके लिए संघर्ष किया। 

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दोस्त ने चलाई दो गोलियां

12 जनवरी 1967 को एमजीआर की पहली फिल्म के हीरे एमआर राधा निर्माता केएन वासु के साथ एमजीआर से मिलने गए। लेकिन बातचीत के बीच अचानक राधा ने उठकर एमजीआर पर दाग दी गो गोलियां। गोलियां एमजीआर के कान छूती हुई उनके गर्दन में लगी। एमजीआर को अस्पलात में दाखिल करवाया गया। एमजीआर को अस्पताल में भर्ती करायागया। उन्हें गोली लगने की बात जब लोगों को पता चली तो प्रशंकर सड़कों पर उतर आए। अस्पताल में भीड़ उमड़ने लगी। ऑपरेशन के बाद एमजीआर ठीक तो हो गए लेकिन उन्होंने एक कान से सुनने की क्षमता खो दी और उनकी आवाज में भी बदलाव आ गया। 

करुणानिधि से अलग होकर बनाई नई पार्टी

एक बार विधानसभा चुनाव के दौरान करुणानिधि ने एमजीआर को याद करते हुए कहा कि उनको मुख्यमंत्री बनाने में एमजीआर की भूमिका अहम थी। करुणानिधि ने एमजीआर के लिए कृतज्ञता व्यक्त की लेकिन फिर वापस एमजीआर की लोगों को आकर्षित करने की क्षमता करुणानिधि के लिए चिंता का विषय हो गई। करुणानिधि ने एमजीआर का मुकाबला करने के लिए अपने बेटे एमके मुत्तु को कॉलीवुड में लॉन्च किया। यहीं से करुणानिधि और एमजीआर के बीच मतभेद गहरा गए। एमजीआर ने डीएमके पर भ्रष्टाचार और अन्नादुराई के उसूलों से दूर जाने का आरोप लगाया तो करुणानिधि ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। जिसके बाद एमजीआर ने अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम बनाई जो बाद में ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कझगम कहलाई। यह राज्य की एक बड़ी पार्टी बनकर उभरी और डीएमके और एआईएडीएमके के बीच जोरदार टक्कर हुई। साल 1977 के चुनाव में एआईएडीएमके को सफलता मिली और एमजीआर पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। उस दौर में एमजीआर की जीत की राह इतनी आसान नहीं थी और डीएमके, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व जनता पार्टी के साथ हुए मुकाबले में एमजीआर ने बाजी मार ली। वो भी ऐसा कि एक बार मुख्यमंत्री बने तो अपनी आखिरी सांस 1987 तक तमिलनाडु के सीएम रहे। 

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जब तपते रेगिस्तान में एमजीआर ने जयललिता को गोद में उठाया

एमजीआर के बाद एआईएडीएमके को आगे बढ़ाने वाली जे जयललिता न नेता बनना चाहती थीं, न अभिनेता। वो एक धाकड़ वकील बनना चाहती थीं। लेकिन महज दो साल की उम्र में पिता का देहांत होने के बाद उनकी मां ने बैंगलोर में उन्हें दादा-दादी के पास छोड़दिया। जिसके बाद वो संध्या नाम से तमिल फिल्मों में एक्टिंग करने लगी। जयललिता और एमजी रामचंद्रन की जोड़ी तमिल फिल्मों की सबसे हिट जोड़ी रही। दोनों की उम्र में 31 साल का फर्क था। लेकिन एमजीआर जयललिता के लिए सबकुछ थे। एक बार राजस्थान के रेगिस्तान में एमजीआर और जयललिता की फिल्म की शूटिंग चल रही थी। फिल्म के एक गाने में जयललिता को नंगे पांव डांस करना था। उस गर्म रेत पर जयललिता के लिए चलना भी मुश्किल हो रहा था। यह देखकर एमजीआर ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया था। उस जमाने में जयललिता और एमजीआर को लेकर अखबारों में कई तरह के खबर छपते थे। लेकिन एक इंटरव्यू में जयललिता ने कहा कि उनके बीच वहीं रिश्ता था जो एक गुरु और शिष्य में होता है। 1987 में जब एमजी रामचंद्रन का निधन हुआ था तो उस वक्त उनके परिवार वालों ने जयललिता को घर में घुसने से रोक दिया था। एमजीआर के निधन की खबर सुनकर जब जयललिता उनके घर पहुंची तो किसी ने दरवाजा नहीं खोला। जयललिता ने जोर-जोर से दरवाजा खटखटाया। काफी देर के बाद जब दरवाजा खुला तो किसी ने उन्हें ये नहीं बताया कि एमजीआर का शव कहां रखा है। बाद में उन्हें पता चला कि एमजीआर के शव को राजाजी हॉल ले जाया गया है। जयललिता एमजीआर के शव के पास पहुंच कर उनके सिराहने के पास खड़ी हो गई। उनकी आंखों से आंसू तक नहीं निकले। कहा जाता है कि वो दो दिनों में करीब 21 घंटे तक एमजीआर के शव के पास खड़ी रहीं। इस दौरान एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन की समर्थक जानबूझकर चलते-फिरते उनके पैरों को कुचलती रही ताकि जयललिता घायल होकर वहां से चलीं जाएं। लेकिन जयललिता वहीं दो दिन तक खड़ी रहीं। जब एमजीआर के पार्थिव शरीर को शव वाहन पर ले जाया जा रहा था। जयललिता भी दौड़कर उस वाहन पर चढ़ने लगीं लेकिन तभी एमजीआर की पत्नी के भतीजे ने उन्हें धक्का देकर गिरा दिया। और जययलिता वहां से वापस लौट आई। निधन के एक साल बाद एमजीआर को भारत रत्न सम्मान से भी नवाजा गया। तमिलनाडु की सियासत और रुपहले पर्दे का कनेक्शन हमेशा से रहा है। वर्तमान दौर में अभिनेता से नेता बने कमल हासन चुनाव में उतर रहे हैं और कहा जा रहा है कि वो इस बार दो विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। जिसमें से एक सीट वो है जहां से एमजीआर 9 साल तक विधायक रहे। एमजीआर तो अब नहीं रहे लेकिन उनकी चर्चा के बिना तमिल सियासत अधूरी सी है। इसका ताजा प्रमाण ये है कि बीजेपी ने अपने नेताओं को यह हिदायत दी है कि वे चुनावी सभाओँ में अपनी बात शुरू करने से पहले कामराज और एमजीआर को याद करते हुए उनके प्रति श्रद्धा सुमन जरूर अर्पित करे। बीजेपी को इससे फायदा हो या ना हो लेकिन इतना तय है कि पूरे चुनाव वह एआईएडीएमके और डीएमके नेताओं का बीपी बढ़ाए रहेगाी। - अभिनय आकाश

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