जाति की राजनीति की मौत की मुनादी और प्रो इंकम्बेंसी के नए ट्रेंड की शुरुआत, सारे मिथक तोड़ रहा ब्रांड मोदी

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अभिनय आकाश । Mar 12 2022 6:19PM

जीत के नारों और मोदी-योगी के जयकारों के बीच वो सियासी संदेश छुपा है जिसकी गूंज 2024 तक जाती है। जश्न के रंग में राजनीति की वो इबारत लिखी है जिसने अगले लोकचुनाव की तस्वीर नज़र आती है। इस जीत और जश्न में डबल इंजन की सरकार वाला दम है।

2017 की जीत को बीजेपी 2022 में दोहरा पाएगी इसको लेकर काफी संशय और सवाल थे। कोरोना की तबाही सामने थी, किसानों का विरोध सामने था, जातिगत संतुलन को लेकर भी तरह-तरह की बातें की जा रही थी। लेकिन अब कोई सवाल नहीं रहा। मोदी ने ये दिखा दिया कि उनके रहते हुए कोई भी लक्ष्य नामुमकिन नहीं। एक राज्य पहाड़ का एक राज्य समंदर किनारे का एक राज्य गंगा किनारे का एक राज्य पूर्वोत्तर का। पांच राज्य में से चार राज्य ऐसे जिसमें भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक हर तरह से भिन्नता है। लेकिन इन चार राज्यों में एक समानता दिखी। बीजेपी की विजय की समानता। पीएम मोदी पर कायम जनता के भरोसी की समानता। लखनऊ से पणजी तक देहरादून से इंफाल तक एक राजनीतिक व्यक्ति के मनोयोग से चुनौतियों के चक्रव्यूह को भेदते हुए बीजेपी इतिहास रचती है। 

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पांच में से चार राज्यों में भाजपा की जीत से गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में बढ़त मिलने की उम्मीद है। पार्टी फिर से 'प्रो-इनकंबेंसी' पर भरोसा करेगी,पीएम नरेंद्र मोदी की "प्रफार्मेंस पॉलिटिक्स" और "डबल-इंजन" सरकार के आधार पर वोट मांग रही है। साथ ही इस दावे के साथ कि बीजेपी ने जो वादा किया था उसे पूरा किया। भाजपा नेताओं ने न केवल पिछली सरकारों के "कमजोर" प्रदर्शन को उजागर किया, बल्कि "अंत्योदय" (पंक्ति में अंतिम व्यक्ति का उदय) के मंत्र के साथ सभी मोर्चों पर काम किया। पार्टी मुख्यालय में अपने विजय भाषण में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि यह फैसला मोदी सरकार की नीतियों और योजनाओं का एक और बड़ा समर्थन है। “फैसला देश में राजनीति के भविष्य के पाठ्यक्रम के बारे में भी एक संकेत है। मोदी ने देश के राजनीतिक लोकाचार को बदल दिया है। 

कांटो के बीच से जीत का फूल निकालकर पिरोई गई मालाएं यूं ही नरेंद्र मोदी के गले का हार नहीं बनती। सबूत ये कि पांच राज्यों में चार में विजय का भगवा लहराने के अगले दिन अहले सुबह गुजरात की सड़कों पर नरेंद्र मोदी केसरिया टोपी पहने स्वागत के पुष्पों के बीच लोगों का अभिवादन करते दिखे। 9 किलोमीटर लंबा रोड शो को प्रधानमंत्री के गृह राज्य के लिहाजे से मत आंकई बल्कि ये उस राज्य में वी फॉर विक्टरी का साइन दिखाते हुए हैं जहां नौ महीने के भीतर चुनाव होने हैं और लगभग पिछले 27 सालों से बीजेपी काबिज है। यूपी में बीजेपी का वोट प्रतिशत 39.7 प्रतिशत से 41.6 प्रतिशत पहुंच जाता है। उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों को बदलने के बाद भी बहुमत पाती है। गोवा में नाराजगी के बाद भी सरकार बनाने की दिशा में कदम बढ़ाती है। मणिपुर में सरकार बीजेपी के ही रहते सीट भी बढ़ती है और वोट शेयर भी। गोवा राज्य में पिछली दफा सीटों के मामले में कांग्रेस से पिछड़ने के बाद भी बाजी जरूर मार ली। लेकिन उसकी थोड़ी सी टीस मन में थी जिसे इस बार के चुनाव में पूरी करते हुए अपने सीटों में इजाफा करते हुए 13 से 20 तक के आंकड़े तक पहुंचाया। 

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उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि महिला मतदाताओं ने सभी चार राज्यों में एक मजबूत और स्पष्ट संदेश दिया है कि “न्यू इंडिया” कल्याण, समानता, पारदर्शिता और प्रगतिशील राजनीति के लिए मतदान करेगा। प्रधान ने कहा, "यूपी, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के लोगों द्वारा बरसाए गए आशीर्वाद मतदाताओं के विवर्तनिक बदलाव को दर्शाते हैं। चार राज्यों में से हरेक जीत के अपने मायने है और हर विजय अपने आप में किसी उपलब्धि से कम नहीं जहां उत्तराखंड में हर पांच साल में सरकार बदलने की कवायद रही हो वहां बीजेपी ने फिर से एक बार शानदार जीत हासिल कर इस मिथक को धता बताया। 

प्रो इंकम्बेंसी

इन नतीजों में जो सबसे प्रमुख चीजें देखने को मिली वो है प्रो इंकम्बेंसी वेब। अब तक चुनावों में तमाम न्यूज चैनल पर  बड़े-बड़े एक्सपर्ट एंटी इंकम्बेंसी वेब यानी सरकार विरोधी लहर की  बात करते थे। होता भी यही था इससे पहले एक दशक पहले तक जब चुनाव लड़े जाते थे तो सत्तारूढ़ पार्टी को नुकसान ही होता था। इसकी वजह थी कि जनता उन पांच सालों में उस पार्टी से परेशान हो चुकी होती थी। उनसे ऊब चुकी होती थी। इसी को एंटी इंकम्बेंसी वेब कहा जाता है यानी सत्ताविरोधी लहर। लेकिन उसी सरकार या पार्टी को लेकर लोगों में और ज्यादा ऊर्जा आ जाए तो उसे प्रो इंकम्बेंसी वेब कहते हैं। यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के नतीजों ने बता दिया कि प्रो इंकम्बेंसी वेब भी एक बहुत बड़ी लहर हो सकती है। जिन चार राज्यों में  बीजेपी की सरकारें थी वहां उसे उसी प्रो इंकम्बेंसी की वजह से इतनी बड़ी जीत हासिल हुई। कई जगह तो बीजेपी ने पहले से भी अच्छा प्रदर्शन किया है। जबकि पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और उसी लिए वहां की सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी की वेब चल रही थी। लोग कांग्रेस की सरकार से इतना थक चुके थे कि उन्होंने सोच लिया था कि अब उन्हें बदलान ही चाहिए। इसलिए वहां कांग्रेस को हार मिली। 

बीजेपी में योगी बने नंबर 3

जीत के नारों और मोदी-योगी के जयकारों के बीच वो सियासी संदेश छुपा है जिसकी गूंज 2024 तक जाती है। जश्न के रंग में राजनीति की वो इबारत लिखी है जिसने अगले लोकसभा चुनाव की तस्वीर नज़र आती है। इस जीत और जश्न में डबल इंजन की सरकार वाला दम है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बड़ी जीत 2024 में उसके लिए सबसे बड़ा कदम है। यही वजह है कि बीजेपी के ऐतिहासिक जीत के जश्न के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव का जिक्र छेड़ा। 2022 के यूपी फतह को 2024 लोकसभा चुनाव से जोड़ा। योगी आदित्यनाथ ने भी अपने विजयी भाषण से इसी एजेंडे को आगे बढ़ाया। यूपी में सबका साथ सबके विश्वास से भविष्य की राजनीति का रास्ता दिखाया। गंगा जमुना की पावन धाराओं से सिंचा प्रदेश, शिव, राम, कृष्ण के प्रेम से पला प्रदेश। जहां मोहब्बत की गवाही देता है ताज, कुछ इस तरह का ही है उत्तर प्रदेश राज। हिंदुस्तान की हुकूमत भले ही दिल्ली से चलती हो। लेकिन दिल्ली की गद्दी पर कौन विराजेगा ये उत्तर प्रदेश ही तय करता है। न सपा, न बसपा, न कांग्रेस,न बुआ, न बबुआ, न प्रियंका मोदी की सुनामी में सब उड़ गया। न यूपी के लड़कों की जोड़ी चली, न कांग्रेस का महिला कार्ड। मायावती के फिक्सड वोटरों पर तो ऐसी सेंधमारी हुई कि पार्टी को एक सीट जीतने के लाले पड़ गए। बंगाल चुनाव ने बीजेपी को हराने की जो उम्मीद विपक्ष में जगाई थी वो यूपी आते-आते बुझ गई। योगी पहले योगी से राजा बने अब वो इस जीत के साथ सम्राट की तरह दिखने लगे हैं। योगी अब पीएम मोदी और अमित शाह के बाद तीसरे सबसे बड़े नेता के तौर पर सामने आए हैं। अब तक बीजेपी में नंबर 1 और नंबर 2 की जो पोजिशन थी वो बिल्कुल साफ थी। राजनीति की आम बोलचाल में भी मोदी-शाह की जोड़ी का जिक्र नंबर 1 नंबर 2 के रूप में किया जाता था। यानी नंबर तीन की कोई व्यवस्था ही नहीं थी लेकिन उत्तर प्रदेश के नतीजों ने योगी आदित्यनाथ को इस स्थिति में ला दिया है कि उन्हें चाहे दबे स्वर में ही सही नंबर 3 कहा जाने लगा है।

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MY के तीन फैक्टर बने उप'योगी'

1.) मोदी-योगी

उत्तर प्रदेश में एक एम-वाई फैक्टर ने फिर काम किया है, लेकिन मुस्लिम-यादव फॉर्मूले का नहीं। इस बार, M-Y का मतलब मोदी-योगी था - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का डबल इंजन, प्रशासन के माध्यम से कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ा रहा है। योजनाएं भ्रष्टाचार की दीवारों को तोड़ने में कामयाब रहीं। जिस राज्य में गर्व के साथ नियमों का उल्लंघन किया जाता है, वहां मुख्यमंत्री ने कानून व्यवस्था को सख्ती से लागू किया और मतदाताओं ने इसकी सराहना की है। 

2.) महिला और युवा

हालांकि, इस विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के लिए एम-वाई का एक और शक्तिशाली अर्थ है - महिला और युवा। ऐसा प्रतीत होता है कि मतदाताओं के ये दोनों वर्ग बड़ी संख्या में निकले और मोदी और योगी को वोट दिया, और ऐसा करने के उनके पास कई कारण थे। शौचालय उपलब्ध कराने से लेकर आवास योजनाओं तक, गैस सिलेंडर से लेकर कर्ज तक, तत्काल तीन तलाक रोकने से लेकर कानून-व्यवस्था थोपने तक, मोदी सरकार ने विभिन्न तबके की महिलाओं को सशक्त बनाने का काम किया। डेटा से पता चलता है कि बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं ने मोदी और योगी को चुना, इस तथ्य के बावजूद कि उनके परिवार के पुरुष सदस्यों ने अलग-अलग मतदान किया। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका मतलब यह होगा कि महिलाएं अब पुरुषों से मतदान की सलाह नहीं ले रही हैं, वे अपने हितों को केंद्र में रखकर अपने फैसले ले रही हैं।

3.) मीडिया और योजना 

एम-वाई मीडिया और योजना भी हो सकती है जहां मीडिया और सोशल मीडिया ने कोविड संकट के दौरान और उसके बाद मोदी और योगी द्वारा किए गए कार्यों के बारे में संदेश को प्रसारित करने में एक बड़ी भूमिका निभाई। लोगों को इस सरकार से छोड़ी दिक्कत तो हुई, लेकिन निराश नहीं थे, क्योंकि वे मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से देख पा रहे थे कि हर जान बचाने के लिए तमाम कोशिशें की जा रही हैं। मोदी और योगी सरकार द्वारा डिजाइन और कार्यान्वित की गई योजनाओं (योजनाओं) ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोगों ने महसूस किया कि योजनाएं फाइलों के लिए नहीं बनाई गई हैं और लाभ वास्तव में दिल्ली और लखनऊ से यात्रा कर सकते हैं और अतीत के विपरीत, जरूरत के समय उन तक पहुंच सकते हैं। लाभार्थी या लाभार्थी वर्ग का एक नया वर्ग सामने आया है, जो चुनाव से एक रात पहले पैसे या शराब लेने के बावजूद (या बदले में भी) ऐसी सरकार को वोट देने की सोचता है जो उन्हें पूरे साल लाभ देगी। इस लिहाज से गरीब वर्ग ने एक बार फिर बीजेपी के प्रति वफादारी दिखाई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा अब मध्यम वर्ग, शहरी, उच्च जाति की पार्टी नहीं रही। आज देश का मौन बहुमत मोदी के नेतृत्व वाली पार्टी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है।

जाति की राजनीति की मौत की मुनादी

पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने यूं ही नहीं जाति कि राजनीति की मौत की मुनादी कर दी। दरअसल इसके पीछे का सबसे मुख्य कारण है शासन, प्रशासन और विकास के मुद्दे का पहली प्राथमिकता में आना है। य़ोजनाओं की घोषणा तो हर सरकार की तरफ से निरंतर की जाती है। लेकिन उसे हकीकत की जमीन पर उतारना अब चर्चा में शामिल हो गया है। इन चुनावी नतीजों ने ये तो बता दिया कि अब वोटर उसी के साथ मजबूती से खड़े दिखेंगे जो युवाओं, महिलाओं और पिछड़ों के सपनों को न केवल जगा सकता है बल्कि उन्हें पूरा करने का विश्वास भी पैदा कर सकता है। ब्रैंड मोदी की छाया में बीजेपी इसे भलि-भांति जमीन पर उतार रही है। 

-अभिनय आकाश 

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