अमेरिका की पीठ का पायदान बना USSR के अतीत के पन्नों को जोड़ते पुतिन, यूरोप-NATO में खलबली, चीन बनेगा महाबली

जेलेन्स्की व्हाइट हाउस से बाहर आए। मीडिया रिपोर्ट्स ने ये कहा कि उन्हें निकाला गया। इसके बाद ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जेलेन्स्की शांति नहीं चाहते।
फर्ज कीजिए कि वर्ल्ड वॉर टू का समय चल रहा है और हिटलर की जर्मनी पूरे यूरोप पर कब्जा करने को निकल चुकी है। इंग्लैंड के वॉर टाइम प्राइम मिनिस्टर चर्चिल अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से मदद मांगने के लिए अमेरिका आते हैं। लेकिन उल्टा राष्ट्रपति ट्रम्प चर्चिल को झटका दे देते हैं। प्रेसिडेंट ट्रम्प चाहते हैं कि चर्चिल हिटलर के साथ समझौता करें। अंत मे चर्चिल अमेरिका को माइनिंग राइट्स देने से मना कर देते हैं। हिटलर के सामने झुकने से इनकार कर देते हैं। चाहे लंदन में बमबारी हर रात जारी रहे। अपने आप को अपमानित पाकर ट्रम्प ये फैसला करते हैं कि सहयोगियों को सारी सहायता वो बंद कर देंगे और हिटलर के साथ वो खुद जाकर हाथ मिलाएंगे। शांति का प्रस्ताव हिटलर के सामने खुद ट्रम्प रखेंगे। आप कह रहे होंगे कि आज हम कैसी बात कर रहे हैं। ये सच है कि न ट्रम्प रूज़वेल्ट के करीब आते हैं न जेलेन्स्की चर्चिल हैं। लेकिन बाकी की कहानी सच है। अमेरिका ने वर्ल्ड वॉर टू के हिटलर के साथ हाथ मिलाने वाला काम कर लिया है। पिछले हफ्ते जेलेन्स्की को नीचा दिखाने वाला प्लान फेल हो गया। उसके बाद यूरोपियन लीडर्स ने जेलेन्स्की का साथ दिखाया तो आज तिलमिलाकर प्रेसिडेंट ट्रम्प ने यूएस मिलिट्री एड टू यूक्रेन पर रोक लगा दिया है। उद्देश्य वही है यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत करने को मजबूर हो जाएं।
इसे भी पढ़ें: बिना अमेरिका रूस का मुकाबला कर पाएगा यूरोप? भारत ने जो 54 साल पहले किया वैसा क्यों नहीं कर पाएं जेलेंस्की
28 फरवरी को यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से मिले। बात शांति बहाल पर होनी थी। लेकिन ये हो न सका। जेलेन्स्की व्हाइट हाउस से बाहर आए। मीडिया रिपोर्ट्स ने ये कहा कि उन्हें निकाला गया। इसके बाद ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जेलेन्स्की शांति नहीं चाहते। जब उन्हें पीस चाहिए हो, तब वो वापस आ सकते हैं। पर जिस कूचे से जेलेन्स्की बेआबरू होकर निकले। वहां वापस लौटना उन्हें गंवारा न था। सो वो वाइट हाउस दोबारा नहीं गए। फिर हेडलाइन छपी की ट्रम्प सेंड जेलेन्स्की होम विथ नो डील एंड नो मील। लेकिन सवाल ये है कि रूस और यूक्रेन की ये जंग शुरू कैसे हुई? इस जंग से अमेरिका का क्या रिश्ता है। इस जंग का अंत क्या होगा और युद्ध रुकने में पेंच कहां फंसा है।
यूक्रेन-रूस युद्ध की शुरूआत कैसे हुई
यूक्रेन और रूस के बीच का विवाद बहुत पुराना है। पूरे मामले का 1400 साल पुराना इतिहास है। उस वक्त न तो रूस हो या यूक्रेन पूरे विशालकाय भू भाग को कीवियन रूस के नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि रूस शब्द ओल्ड नॉर्स का टर्म है। रूस शब्द का अर्थ होता है जो चप्पू से नाव खेता है। ओवेग नामक राजा ने अपनी शक्ति के बल पर 879 ईं में कीवियन रूस पर कब्जा जमा लिया। 10वीं और 11वीं शताब्दी में कीवन रस अपने सबसे बड़े आकार और शक्ति पर पहुंच गया। 988 ईस्वी में, कीव के ग्रैंड प्रिंस, व्लादिमीर (वलोडिमिर) द ग्रेट ने ईसाई धर्म को राज्य धर्म बना दिया। कीवन रस का शिखर यारोस्लाव द वाइज़ के अधीन आया, जिसने 1019-54 तक शासन किया। बेलारूस, रूस और यूक्रेन सभी कीवियन रूस को ही अपना सांस्कृतिक पूर्वज मानते हैं। बेलारूस और रूस ने तो किवियन रूस से ही अपना वर्तमान का नाम हासिल किया है। 17वीं शताब्दी में रूस और यूक्रेन के पूर्वर्ती राज्य के बीच एक संधि हुई। इसके बाद यूक्रेन धीरे धीरे रूस के नियंत्रण में आ गया। पर जब 1922 में सोवियत संघ बना तो यूक्रेन भी इसका हिस्सा बन गया।
सोवियत पतन के बाद
1991 में यूएसएसआर का विघटन हो गया। यूक्रेन में आजादी की मांग कुछ साल पहले से बढ़ रही थी, और 1990 में, 300,000 से अधिक यूक्रेनियन ने स्वतंत्रता के समर्थन में एक मानव श्रृंखला बनाई और छात्रों की तथाकथित ग्रेनाइट क्रांति ने एक नए समझौते पर हस्ताक्षर को रोकने की मांग की। 24 अगस्त, 1991 को, राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को हटाने और कम्युनिस्टों को सत्ता में बहाल करने के लिए तख्तापलट की विफलता के बाद, यूक्रेन की संसद ने देश के स्वतंत्रता अधिनियम को अपनाया। इसके बाद, संसद के प्रमुख लियोनिद क्रावचुक यूक्रेन के पहले राष्ट्रपति चुने गए। दिसंबर 1991 में, बेलारूस, रूस और यूक्रेन के नेताओं ने औपचारिक रूप से सोवियत संघ को भंग कर दिया और स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) का गठन किया। तब रूस और यूक्रेन के बीच एक समझौता हुआ। इसके तहत यूक्रेन ने अपने सभी परमाणु हथियार रूस को सौंप दिए। बदले में रूस ने वादा किया कि वो यूक्रेन पर कभी हमला नहीं करेगा।
रूस को फिर से ताकतवर बनाने की मुहिम
फिर इस कहानी में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एंट्री हुई। पुतिन 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने। वो सोवियत संघ के टूटने को एक बड़ी त्रासदी मानते थे। साल 2018 की बात है एक पत्रकार ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से पूछा कि आप अपने देश के इतिहास में किस घटनाक्रम को पलटना चाहोगे। पुतिन ने एक लाइन में बोला- द कोलैप्स ऑफ द सोवियत यूनियन। कई मौके ऐसे आए जब पुतिन ने साफगोई से कहा कि अगर वो ऐसा कर सकते तो यूएसएसआर के विघटन की कहानी को उलट कर रख देते। कुछ ऐसा ही रूसी राष्ट्रपति करते भी नजर आ रहे हैं। इतिहास को पलटने, पुराना इतिहास वापस लाने या फिर कहे कि एक नया ही इतिहास लिखने की कोशिश में रूसी राष्ट्पति नजर आ रहे हैं। 2014 में रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर कब्जे से इसकी शुरुआत भी कर दी।
3 साल की जंग में अब पलटती बाजी
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग को शुरू हुए 3 साल से भी ज्यादा का वक्त गुजर चुका है। अमेरिका इन 3 सालों में यूक्रेन का सबसे बड़ा सैन्य मददगार रहा है, लेकिन अब बहुत कुछ बदल चुका है। हाल में ही व्हाइट हाउस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच तीखी बहस हुई थी। इस बहस के बाद दुनिया भर के नेताओं ने इस पर प्रतिक्रिया दी थी। रूस ने भी यूक्रेन के राष्ट्रपति की खिल्ली उड़ाई थी। अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्हें रूस से मजबूत संकेत मिले हैं कि वह शांति के लिए तैयार है, साथ ही यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने उन्हें पत्र लिखकर कहा है कि उनका देश वार्ता की मेज पर आने और खनिज एवं सुरक्षा संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है।
मिनिरल्स डील साइन पर नो कंडीशन अप्लाई
ट्रंप ने यूक्रेन पर अहसानफरामोशी का आरोप लगाया था। इसी के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा था कि रूस के साथ शांति में काफी वक्त लगेगा। लेकिन इस पूरे प्रकरण के बाद उन पर ट्रंप के साथ रिश्तों को सुधारने का दबाव था। इस बीच, पिछले सोमवार को ट्रंप ने यूक्रेन को सैन्य मदद रोकने का एलान कर दिया। इन बातों को देखते हुए जेलेंस्की का यह कदम मजबूरी में उठाया गया लगता है। ट्रंप यह भी चाहते हैं कि अमेरिका ने यूक्रेन को जो 100 बिलियन डॉलर की मदद दी है, उसके बदले यूक्रेन उसे अपने यहां के रेयर अर्थ मिनरल्स दे। युद्ध रुकने के बाद ट्रंप यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी नहीं देंगे। उनका कहना है कि रेयर अर्थ की माइनिंग के लिए अमेरिकी लोगों के यूक्रेन में होने की वजह से रूस उस पर हमला नहीं कर सकेगा। लेकिन तीन साल पहले जब व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला बोला था, तब भी अमेरिकी कंपनियां वहां काम कर रही थीं।
ट्रम्प ने भी मान लिया- रूस तुस्सी ग्रेट हो!
यूक्रेन को लेकर अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों के बीच भी दूरी बढ़ रही है। वहीं, बाइडन सरकार ने लोकतंत्र और पुतिन के विस्तारवादी अजेंडा को रोकने के लिए यूक्रेन की मदद की थी, जबकि ट्रंप ने इसे सौदेबाजी में बदल दिया है। इससे अमेरिका के सहयोगी देशों के बीच गलत संदेश जाएगा। यूक्रेन मामले को लेकर ट्रंप का जो रुख है, उसे देखते हुए शायद ही कोई अमेरिका पर ऐतबार करेगा।
यूरोप के भरोसे जेलेंस्की ले पाएंगे रूस से टक्कर
अमेरिका के मदद रोकने पर अब सवाल है कि बगैर यूएस यूक्रेन की सुरक्षा जरूरतें कैसे पूरी होंगी? क्या जेलेस्की यूरोप के भरोसे रूस से टक्कर ले पाएंगे? यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उसुंला वेन डेर लेयेन ने मंगलवार को रिआर्म यूरोप नाम से एक नया प्लान सामने रखा है, जिसमें आने वाले सालों में 800 बिलियन अतिरिक्त डिफेंस फंड के जगाड़ की प्लानिंग की गई। लेकिन अमेरिका के पीछे हटने से यूक्रेन को मिलने वाली मदद के भविष्य पर सवाल उठे है। यूएस एयर डिफेंस सिस्टम, आर्टिलरी और लंबी दूरी की मिसाइल के संबंध में यूक्रेन का सबसे बड़ा सप्लायर रहा है। वहीं, रूस का डिफेंस बजट लगातार बढ़ रहा है और मौजूदा अनुमान है कि 142 विलियन डॉलर के साथ ये युद्ध से पहले वाले आंकड़े का दोगुना हो जाएगा। रूस की सेना में 1.32 मिलियन सक्रिय सैनिक है।
चीन के लिए आपदा में अवसर
चीन की जियो-पॉलिटिकल और जियो-इकॉनमिक स्ट्रैटिजी उन खाली स्थानों को भरने की है, जो अमेरिकी नीतियों के कारण दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में बन रहे हैं। ट्रंप प्रशासन की शुरुआत के साथ ही अमेरिका ऐसे कदम उठा रहा है, जो चीन के लिए नए अवसर पैदा कर सकते हैं। अमेरिका का व्यापार युद्ध और कनाडा, मैक्सिको के बाद अब यूक्रेन सहित यूरोप के कुछ देशों के साथ किए गए व्यवहार से कई पुराने समीकरण टूटते और नए बनते दिख रहे हैं। पिछले दिनों ओवल ऑफिस में जो हुआ, वह न तो अमेरिका के लिए अच्छा था और न वैश्विक कूटनीति के लिए। पार्टी ऑफ चाइना की 20वीं कांग्रेस में राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने घोषणा की थी कि 2049 तक चीन का लक्ष्य वैश्विक शक्ति के रूप में नेतृत्व करना होगा। चीन इसे अवसर के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करेगा।
अन्य न्यूज़