देश के सबसे बड़े कारोबारी ग्रुप में सबकुछ ठीक नहीं? अमित शाह ने Tata Group को क्या कड़ा मैसेज दिया?

रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ग्रप के एडमिनिस्ट्रेशन में परेशानियां नजर आई हैं। ग्रुप फिलाहल आंतरिक कलह को लेकर चर्चा में बना हुआ है। अंदरूनी झगड़ा इतना बढ़ गया है कि अब बात सरकार की चौखट तक पहुंच गई है।
बचपन में अगर जब कभी भी कुछ ऐसी मांग कर दी जाती जो मीडिल क्लास के थोड़ा आउट ऑफ बजट हो जाए तो पिताजी फट से बोल पड़ते बड़ा टाटा-बिरला हो गए हो क्या? नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक और चाय से लेकर स्टील तक बनाने वाली 100 अरब डॉलर की कंपनी टाटा एक ऐसा नाम जो हम दशकों से सुनते आ रहे हैं। लोग टाटा का नमक खाते हैं, टाटा की चाय पीते हैं, टाटा के बसों में सफर करते हैं और टाटा की एयरलाइंस में उड़ान भरते हैं। लेकिन फिलहाल टाटा ग्रुप में सबकुछ ठीक नहीं है। रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ग्रप के एडमिनिस्ट्रेशन में परेशानियां नजर आई हैं। ग्रुप फिलाहल आंतरिक कलह को लेकर चर्चा में बना हुआ है। अंदरूनी झगड़ा इतना बढ़ गया है कि अब बात सरकार की चौखट तक पहुंच गई है। गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तक बात आ गई है। आज आपको बताते हैं कि टाटा ट्रस्ट के भीतर मचे पूरे बवाल की कहानी क्या है? ताजा झगड़ा किस बात पर है। क्या टाटा ट्रस्ट में चल रही इस कलह ने इस विशाल कारोबारी समूह को खतरे में डाल दिया है?
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रतन टाटा के निधन के एक साल बाद कितना बदल गया ग्रुप
भारत में हर इंसान के लिए टाटा सिर्फ एक कंपनी नहीं है बल्कि टाटा एक भावना है। टाटा का मतलब है विश्वास, टाटा का मतलब भरोसा है। टाटा को वो मजबूत ईंट माना जाता है, जिस पर भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव खड़ी है। 156 साल पुराना ये बिजनेस हाउस जिसकी कीमत आज लगभग 28 लाख करोड़ रुपए है। भारत की इंडस्ट्री और मैन्यूफैक्चरिंग की धड़कन है। ऐसे में अगर टाटा ग्रुप के सबसे ऊपरी परत यानी टाटा संस को कंट्रोल करने वाले टाटा ट्रस्ट में कोई खींचतान होती है। उसके सदस्य आपस में झगड़ रहे हैं, आगे क्या करना है उसपर मतभेद है तो इसकी गूंज पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था तक पहुंचेगी। जैसे फुटबॉल के मैच में रेफरी दो बड़े खिलाड़ियों को शांत कराता है। ठीक उसी तरह से मोदी सरकार इस विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रही है। हालांकि इस विवाद में लड़ने वाले खिलाड़ी अलग अलग टीम से नहीं बल्कि एक ही टीम के हैं और वो टाटा ग्रप है।
टाटा ट्रस्ट की सीनियर लीडरशिप में विवाद
टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड में नियुक्तियों और प्रशासनिक मुद्दों को लेकर समूह के शीर्ष नेतृत्व में चल रहे विवाद को दूर करने की कोशिश जारी है। सूत्रों के मुताबिक टाटा ट्रस्ट बोर्ड की बैठक 10 अक्टूबर को होना प्रस्तावित है। ऐसे में इससे पहले विवाद का समाधान खोजने की तैयारी हो रही है। ऐसा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक के बाद किया जा रहा है। टाटा ग्रुप का नियंत्रण टाटा ट्रस्ट्स के पास है। इसी के पास टाटा संस में बहुमत की हिस्सेदारी है। टाटा संस वही होल्डिंग कंपनी है. जो करीब 16 लाख करोड़ रु. की रेवेन्यू वाले ग्रुप को नियंत्रण करती है। इसमें टाटा स्टील, टाटा मोटर्स समेत तमाम कंपनियां हैं। दरअसल, इस चका टाटा ट्रस्ट्स का बोर्ड दो खेमों में बंट गया है। पहले गुट में ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा समेत चार और दूसरे में मेहली मिरी, देरियस खांबटा, जाहांगीर और प्रमीत झावेरी शामिल हैं। मेहली की स्व. शान टाटा का करीबी माना जाता था। लेकिन, रतन टाटा के निधन के बाद नोएल को चेयरमैन बनाया गया, तभी से ट्रस्टीज में विवाद है।
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कामकाज पर कितना असर?
खबरों के मुताबिक इस अंदरूनी कलह का असर 180 अरब डॉलर के इस बड़े समूह के कामकाज पर पड़ सकता है। इस समूह की विरासत को बचाने के लिए सरकार के हस्तक्षेप पर भी विचार किया जा रहा है। यह स्थिति दिखाती है कि भारत के सबसे सम्मानित व्यापारिक घरानों में भी कॉर्पोरेट गवर्नेंस (कंपनी चलाने का तरीका) कितना नाजुक हो सकता है टीसीएस ने जुलाई-सितंबर तिमाही के नतीजों के लिए आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस रद कर दी। इसकी वजह रतन टाटा की पुण्यतिथि के साथ तारीख का संयोग बताया।
सरकार ने क्या दी नसीहत
7 अक्टूबर को गृह मंत्री अमित शाह के घर पर एक बैठक हुई थी। इसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित टाटा ट्रस्ट और टाटा संस के सीनियर लीडरशिप लोग शामिल हुए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार ने इस बैठक में टाटा के घरेलू झगड़ों को जल्द निपटाने के लिए कहा है, जिससे की कंपनी पर कोई बुरा असर न पड़े। इस ग्रुप का कारोबार 100 से ज्यादा देशों में है। इस ग्रुप में 10 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं। टाटा ग्रुप में 31 कंपनियां हैं और इसमें से 26 कंपनियां शेयर बाजार में लिस्टेड हैं। आज से एक साल पहले 9 अक्टबर 2024 को ही रतन टाटा की मृत्यु हुई थी। आज रतन टाटा की आज पुण्यतिथी है। यानी रतन टाटा की मृत्यु के एक साल भी अभी पूरे नहीं हुए और टाटा ग्रुप में झगड़े शुरू हो गए और विवाद शुरू हो गए। आज टाटा ग्रुप के टॉप लीडरशिप की सबसे बड़ी जिम्मेदारी रतन टाटा कि इस विरासत को संभाल कर रखने की है।
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