लाल किले पर किसने ठोका अपना दावा? हाई कोर्ट में हुई हार अब सुप्रीम कोर्ट जाने को तैयार

Red Fort
अभिनय आकाश । Jan 3 2022 6:28PM

सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में कहा था कि 1857 में लाल किले पर अंग्रेजों ने गैरकानूनी तरीके से जबरन कब्जा कर लिया था। याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि आपने 150 साल की देरी क्यों की।

बीते 74 बरस से बार-बार हर प्रधानमंत्री ने लाल किले से समूचे देश को सपना दिखाया, समूची दुनिया में इस बात का संदेश दिया कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। जिसकी प्राचीर से देश के सुल्तान का संबोधन होता है। जहां कि ईंट-ईंट सैलानियों को ललचाती है और नेताओं में सत्ता का ख़्वाब भी जगाती है। लेकिन क्या हो अगर कोई आकर कहे कि दिल्ली का लाल किला मेरा है। दिल्ली के लाल किले को भले ही राष्ट्र की धरोहर माना जाता है, लेकिन एक महिला ने इस पर हक जताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। जानिए क्या है पूरा मामला और आखिर कौन है मालिकाना हक के लिए कोर्ट तक जा पहुंचने वाली महिला।

मेरा है लाल किला...

लाल दीवारों वाले इस किले ने क्या नहीं देखा। मुगलों की शान देखी, नादिरशाह का हमला देखा, अंग्रेजों का जुल्म देखा तो आजादी का उगता सूरज भी देखा। यह मुल्क के मुस्तकबिल की पहचान है। पूरे हिंदुस्तान की शान है। हर साल जश्न ए आजादी पर यही से तिरंगा झंडा बुलंद होता है। अब इस अजीम किले पर एक महिला ने मिल्कियत का दावा ठोक दिया है। नाम है- सुल्ताना बेगम। पश्चिम बंगाल में हावड़ा में ब्रिज के पास स्लम में रहने वाली सुल्ताना बेगम का दावा है कि वह बहादुर शाह जफर के पोते की विधवा है। इसलिए लाल किले पर उनका हक है। 

इसे भी पढ़ें: पंजाब में बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकता है संयुक्त समाज मोर्चा, समझिए किसानों से किसको होगा फायदा-नुकसान

कौन है सुल्ताना बेगम

सुल्ताना बेगम बहादुर शाह जफर द्वितीय के पोते मोहम्मद बेदार बख्त की पत्नी है। बेदार बख्त की मृत्यु 22 मई 1980 को हो गई थी। सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में कहा था कि 1857 में लाल किले पर अंग्रेजों ने गैरकानूनी तरीके से जबरन कब्जा कर लिया था। तब कंपनी ने उनके दादा ससुर और आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया था। इस लाल किले का निर्माण शाहजहां ने यमुना नदी के किनारे 1638 से 1648 के बीच करवाया। छठे बादशाह औरंगजेब ने लाल किले में सफेद संगमरमर से एक मस्जिद का निर्माण करवाया। लेकिन 1857 में आखिरी मुगल बादशाह को गिरफ्तार कर शाही परिवार को जबरन कोलकाता भेज दिया गया और जबरन किले पर कब्जा कर लिया गया। केंद्र सरकार सुल्ताना बेगम को ₹6000 की पेंशन देती है। सुल्ताना की नजर में उन्हें यह पेंशन मुगलिया खानदान की बहू साबित करने के लिए काफी है। साथ ही सरकार से उनका सवाल है कि जब दूसरी राजा रजवाड़ों को उनके महल से बेदखल नहीं किया गया तो उनका हक क्यों छीना जा रहा है।

हाईकोर्ट ने क्या कहा

याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि मेरा इतिहास का ज्ञान बेहद कमजोर है, लेकिन आपने दावा किया कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 18 57 में आपके साथ अन्याय किया तो इसमें 150 वर्षों की देरी क्यों? जस्टिस ने कहा कि आखिर आपके पूर्वज 150 साल तक कहां थे आपके पूर्वजों ने इसमें दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई। याचिका दायर करने की वजह भी स्पष्ट नहीं है। ऐसे में राष्ट्रीय धरोहर लाल किले पर आपका दावा खारिज किया जाता है।  

इसे भी पढ़ें: गुरुद्वारों की आज़ादी से परिवारवाद के उलाहनों तक, अकाली दल की पूरी कहानी, अलग होकर चुनाव लड़ रही बीजेपी पंजाब में दिखा पाएगी दम?

हाईकोर्ट में हार अब सुप्रीम कोर्ट के द्वार

लाल किले पर हक के दावे के सुल्ताना बेगम की अपील को हाई दिल्ली हाई कोर्ट खारिज कर चुका है। कोर्ट ने उनसे पूछा था कि हक की याद 150 साल बाद क्यों आई। सुल्ताना बेगम के वकील अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। उनके वकील का कहना है कि या तो हमें लाल किला दिया जाए या उसका कंपनसेशन दिया जाए। हम अपनी रणनीति बना रहे हैं और आगे जहां तक भी होगा हम अपनी पूरी लड़ाई लड़ेंगे।

 मैं लाल किला हूं

साढ़े तीन सौ साल में हिन्दुस्तान का वक़्त बदलता रहा और उस वक़्त की गवाही देता रहा लालकिला।  कभी शाहजहां की सल्तनत थी आज लोकतंत्र के मंदिर की इस चौखट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खड़े हैं। आज़ाद हिन्दुस्तान की उंगली पकड़ कर अतीत की उन गलियों में चलिए जहां लाल किला एक ख्वाब जैसा था। मुगल बादशाह शाहजहां उन दिनों आगरा से अपनी सल्तनत चला रहे थे। लेकिन आगरा के गर्म मौसम और सैनिकों के किले में कमी को देखकर उन्हें लगा दिल्ली से राज चलाया जाए। इसलिए 1618 ई में इस किले की पहली ईंट रखी गई। इस लाल किले की बुनियाद खड़ी करने में ही 21 साल लग गए और फिर लाल किला बनने में लगे पूरे 9 साल। 1639 से 1648 तक चला था लाल किले के निर्माण का कार्य। करीब डेढ़ किलोमीटर के दायरे में फैले इस भुजाकर इमारत में आने के दो रास्ते रखे गए लाहौरी गेट और दिल्ली गेट। हिन्दुस्तान के मजदूरों के खून-पसीने इस लाल किले की बुनियाद में घुले-मिले हैं, उनकी मेहनत पर यह प्राचीर खड़ी है जहां से प्रधानमंत्री को सारा देश सुनता है। 

बनाने में आया 1 करोड़ का खर्च 

कहते हैं कि सन 1648 में लाल किले को बनाने में एक करोड़ का खर्च आया था। लाल किले की दीवारों और उसके चारों ओर घेरा बनाने पर ₹2100000 खर्च हुए थे। दीवान ए आम तैयार करने में 1400000 रुपए खर्च किए गए थे। जबकि ढाई लाख रुपए दीवान ए खास पर खर्च हुए थे। पब्लिक बिल्डिंग पर 2800000 रुपए की लागत लगी। रंग महल पर 5.5 लाख रुपए हयात बॉक्स्पार्क पर छह लाख और जनानखाना बनाने पर ₹700000 खर्च किए गए। 

इसे भी पढ़ें: मदर टेरेसा की संस्था के अकाउंट फ्रीज होने की सच्चाई, क्या है FCRA?

लाल किला आजादी के बाद

देश की आजादी के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराया और देश को संबोधित किया था। तब से लेकर आज तक देश के प्रधानमंत्री 15 अगस्त से देश दुनिया को खिताब करते रहे हैं। 2007 में यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल कर लिया था।

-अभिनय आकाश 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़