इस्लाम के नाम पर लड़ी जा रही लड़ाई में उइगर मुस्लिमों की क्यों हो रही अनदेखी, आर्थिक संकट से जूझ रहा तालिबान पैसों के लिए इन्हें कर सकता है चीन के हवाले
काबुल पर तालिबानी लड़ाकों के कब्जे के बाद अफगानिस्तान के उइगर मुस्लिमों में दहशत का माहौल है। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि किसी जमाने में चीन से जान बचाकर अफगानिस्तान लौटे उइगर मुसलमानों के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है। उन्हें ये भय सता रहा है कि तालिबान कहीं उन्हें चीन के हाथों में न सौंप दे।
आज हम मुस्लिमों की बात करेंगे। जिनके नाम पर पाकिस्तान में अपने आप को दुनियाभर के मुसलमानों का रहनुमा या सारथी बताने वाले इमरान खान चुप्पी साध जाते हैं और उनकी हिम्मत ही नहीं पड़ती कुछ बोलने की। भारत में भी कई लोग या तो इसके बारे में जानते नहीं है या बात नहीं करना चाहते हैं। ये हैं उइगर मुस्लिम जिन पर चीन अत्याचार करता है। शिनजियांग चीन के उत्तर पश्चिम में हैं। ये प्रांत आठ देशों की सीमाओं से सटा है। दुनिया में सबसे बड़े उइगरों की आबादी इसी इलाके में रहती है। लेकिन चीन में वो अल्पसंख्यक हैं।
इस्लाम का शाब्दिक अर्थ है- अल्लाह को समर्पण। इस तरह से मुसलमान वो हैं जिसने खुद को अल्लाह को समर्पित कर दिया। यानि इस्लाम धर्म के नियमों पर चलने लगा। इस वक्त एक देश इन दिनों चर्चा में है। जहां इस्लाम के नाम पर और इस्लामिक शासन के नाम पर कट्टरता अफगानिस्तान में जंग छिड़ी है। तालिबान अफगानिस्तान को इस्लामिक अमीरात के नाम से परिभाषित करता है। लेकिन उइगर मुस्लिमों को लेकर इस्लामिक देश और अमीरात बनाने की बात करने वालों के लब सिल जाते हैं। तालिबान म्यामांर से लेकर फिलस्तीन के मुसलमानों के साथ हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाता रहता है लेकिन जब बात चीन के उइगर मुसलमानों की हो तो वो चुप्पी साध लेता है।
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काबुल पर तालिबानी लड़ाकों के कब्जे के बाद अफगानिस्तान के उइगर मुस्लिमों में दहशत का माहौल है। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि किसी जमाने में चीन से जान बचाकर अफगानिस्तान लौटे उइगर मुसलमानों के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है। उन्हें ये भय सता रहा है कि तालिबान कहीं उन्हें चीन के हाथों में न सौंप दे। अफगानिस्तान में उइगर मुसलमानों की आबादी 2 हजार के करीब बताई जाती है। बीते दिनों अमेरिका स्थित एक शोध और वकालत समूह की रिपोर्ट में उइगरों के चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय दमन में पाकिस्तान और अफगानिस्तान की मिलीभगत के दावे किए गए थे। उइगर ह्यूमन राइट्स प्रोजेक्ट और ऑक्सस सोसाइटी फॉर सेंट्रल एशियन अफेयर्स की रिपोर्ट में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में उइगर समुदायों के खिलाफ चीनी सरकार द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न तरीकों की व्याख्या की गई है।
चीनी राजदूत से मिले तालिबानी नेता
काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद एक तरफ दुनियाभर के देश अपने दूतावास को बंद कर अपने राजदूतों को वापस बुलाने में लगे थे। वहीं दूसरी तरफ चीन ने काबुल में अपने दूतावास को खुला रखने का फैसला किया। तालिबान के नेता अब्दुल सलाम हनफी ने काबुल में चीनी राजदूत वांग यू से मुलाकात की थी।
चीन का मित्र तालिबान
तालिबान की तरफ से जारी एक बयान में साफ कहा गया है कि वो चीन को अपना मित्र मानता है। दूसरी तरफ चीन तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। तालिबान के कब्जे से पहले अफगान की सरकार ने काबुल से 10 चीनी जासूसों को गिरफ्तार किया था। पकड़े गए सभी चीनी जासूस अफगानिस्तान में रह रहे उइगर मुस्लिमं के बारे में जानकारी जुटाने के काम में लगे थे ताकि उन्हें फिर से पकड़ कर वापस ले जाया जा सके।
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पहचान करना आसान
वर्षों से अफगानिस्तान में रह रहे उइगर मुसलमानों को भले ही अफगानिस्तान की नागरिकता मिल गई हो लेकिन सरकारी कागजात में उनके नाम के आगे चीनी प्रवासी लिखा है। ऐसे में उनकी पहचान आसानी से की जा सकती है। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट से जुड़े होने के फर्जी आरोप लगा कर वापस चीन को सौंप सकता है।
16 मुस्लिम देश चीन के सामने नतमस्तक
पैगंबर मोहम्मग के कार्टून के विरोध में अखबार के दफ्तर पर हमला हो जाता है, भारत में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ धरना प्रदर्शन होते हैं। म्यांमार में जब सेना द्वारा रोहिंग्याओं पर अत्याचार की खबर आती है तो खूब बवाल मचता है। दुनिया के किसी भी कोने में इस्लाम से जुड़ी जरा सी बात पर भी भूचाल आ जाता है। लेकिन दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी वाले मुस्लिम देश चीन के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। यहां तक की इस्लामी देशों को अगुआ मानने वाला सऊदी अरब भी इस मुद्दे पर चुप रहता है। वहीं ऑटोमन साम्राज्य का बखान कर सऊदी का विकल्प बनने की मंशा रखने वाला तुर्की से ही तो उइगर शिनजियांग गए। पाकिस्तान और मलेशिया ने तो खामोशी की चादर ओध ली। ईरान ने तो उउगरों के दमन को इस्लाम की सेवा बता दिया। यह सब उन पैसों का कमाल है, जो चीन ने इन देशों में लगा रखा है या भविष्य लगाने की तैयारी कर रहा है। इन देशों के मुंह पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना इतने पैसे फेंक रही है कि उनकी बोलती बंद हो चुकी है।
मुस्लिम देशों की चुप्पी की वजह
चीन में मुसलमानों की आबादी 2.2 करोड़ है, यानी कुल आबादी का 1.6 फीसदी। चीन में इस्लाम मध्य पूर्व देशों के राजदूतों के जरिये अस्तित्व में आया। शिनजियांग की मुस्लिम आबादी को लंबी ढाढ़ी रखने की आजादी नहीं है। रोजा रखने की इजाजत नहीं है, बच्चे पैदा करने की आजादी नहीं है। महिलाओं को बुर्का पहनने की आजादी नहीं है त्योहार भी मनाने की आजादी नहीं है। उइगरों पर जुल्म की कितनी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट और पड़तालें दुनिया के सामने आ चुकी हैं। लेकिन इस्लामोफोबिया के खिलाफ आवाजें उठाने वाले मुस्लिम देशों चीन की इस हरकत के खिलाफ जुबान नहीं खोल पाते। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की रिपोर्ट में कई बातें सामने आई। यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) ने अहमद तलिप नाम के एक उइगर मुस्लिम को वापस चीन भेज दिया। चीन ने उसे प्रत्यर्पित करने की मांग की थी। कई और उइगर मुसलमानों पर ऐसी ही कार्रवाई मिस्र, सऊदी अरब और यूएई ने की है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि 2017 के बाद से सिर्फ मिस्र से प्रत्यर्पण के ऐसे कम से कम 20 मामले हुए हैं। पश्चिमी देश शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के कथित दमन का मामला संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद में ले गए, तो 37 देशों ने वहां चीन का साथ दिया। उनमें कई मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश भी थे। जिनमें सऊदी अरब संयुक्त अरब अमीरात, पाकिस्तान, अल्जीरिया, बहरीन, तुर्कमेनिस्तान, ओमान, कतर, सीरिया, कुवैत, सोमालिया और सूडान शामिल हैं।
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पैसों के दम पर चीन का बोलबाला
चीन ने पिछले 15 वर्षों और मौजूदा और भविष्य के लिए जो इन देशों के साथ करार कर रखे हैं, उसके हिसाब से उसने इन मुस्लिम देशों में करीब 1,300 अरब डॉलर का या तो निवेश कर रखा है या कर्ज के रूप में दिया हुआ है। अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट एंड द हेरिटेज फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक 2005 से लेकर 2020 के बीच में चीन ने पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, यूएई, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अल्जीरिया, मिस्र और तुर्की में कुल 421.59 अरब डॉलर के निवेश कर रखे हैं या करार किया हुआ है। जबकि, ईरान, पाकिस्तान, मलेशिया, सऊदी अरब, बांग्लादेश और मिस्र के साथ उसने मौजूदा समय में भी और भविष्य के लिए भी अरबों डॉलर की डील की हुई है। कुल मिलाकर यह आंकड़ा 1.3 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का है। इसलिए चीन में रह रहे मुसलमानों के हित में आवाज उठाने के मामले में ये तमाम मुस्लिम देश चीन के 'बंधक' के रोल में आ चुके हैं और उनकी बोलती बंद हो चुकी है।
अफगानिस्तान पर चीन इस तरह बढ़ाएगा अपना प्रभुत्व
अफगानिस्तान में तालिबान किसी भी वक्त अपनी सरकार बनाने की घोषणा कर सकता है। लेकिन नई सरकार के सामने घोर आर्थिक संकट से निबटने की गंभीर चुनौती है। विदेशी सहायता रोक दिए जाने से आर्थिक हालात इतने बिगड़ चुके हैं लोग एक-एक पैसों के लिए तरस रहे हैं। बैंक बंद हैं और महंगाई दर अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में नई सरकार का गठन करने वाले तालिबान को केवल चीन का सहारा ही नजर आ रहा है। तालिबान ने कहा है कि वह चीन की मदद से आर्थिक संबट से निबटेगा। चीन का पुराना फार्मूला है इन्वेस्टमेंट और व्यापार के लुभावने वादे। श्रीलंका हो या मालदीव पाकिस्तान हो या नेपाल, इन देशों में खूब इनवेस्ट करता है और तरक्की के सपने बेचता है और फिर इसी कर्ज की राह अपने सामरिक हित साधता है। चीन की नजर तालिबान के ट्रिलयिन डॉलर के कारोबार पर है। चीन अफगान के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहता है। इसी वजह से चीन करीब 62 अरब डॉलर के बेल्ट एंड रोड कॉरिडोर का हिस्सा कहे जाने वाले सीपीईसी का विस्तार अफगानिस्तान तक करना चाह रहा है। चीन का मकसद बेल्ट एंड रोड परियोजना के जरिये पूरी दुनिया को चीन से जोड़ने का है। इसके लिए वो कई देशों में भारी मात्रा में निवेश कर रहा है। सीपीईसी प्रोजेक्ट के तहत चीन सड़क, रेलवे और ऊर्जा पाइपलाइन बिछाने के लिए पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर लोन दे रहा है। इस परियोजना को साल 2049 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। चीन पाकिस्तान के पेशावर शहर से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल तक एक रोड बनाना चाह रहा है।- अभिनय आकाश
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