शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच का अंतर बताते हुए अमित शाह ने पूछा- राजस्थान, गुजरात सीमा से क्यों नहीं होती घुसपैठ? असम, बंगाल में ही क्यों बढ़ रहे मुस्लिम?

अमित शाह ने कहा कि कुछ राजनीतिक दल घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में देखते हैं और यही कारण है कि कुछ राज्यों में अवैध प्रवासियों को संरक्षण मिलता है। यह आरोप न केवल विपक्ष पर निशाना साधता है बल्कि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अवैध हस्तक्षेप की संभावना की ओर भी इशारा करता है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का ताजा भाषण ‘घुसपैठ, जनसांख्यिकीय परिवर्तन और लोकतंत्र’ के विषय पर न केवल राजनीतिक विमर्श में नया मोड़ ला रहा है, बल्कि इसके सामरिक और भूराजनीतिक आयाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अमित शाह ने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि घुसपैठ कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने इस खतरे को केवल सीमा सुरक्षा का सवाल नहीं बल्कि राज्य और केंद्र दोनों की जिम्मेदारी के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत की सीमा नीति में सहयोग और समन्वय की आवश्यकता है।
अमित शाह ने विशेष रूप से कहा कि कुछ राजनीतिक दल घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में देखते हैं और यही कारण है कि कुछ राज्यों में अवैध प्रवासियों को संरक्षण मिलता है। यह आरोप न केवल विपक्ष पर निशाना साधता है बल्कि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अवैध हस्तक्षेप की संभावना की ओर भी इशारा करता है। उनके द्वारा दिए गए आंकड़े, जैसे असम में मुस्लिम जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर 29.6 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में 70 प्रतिशत तक का उछाल, घुसपैठ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के प्रति गंभीर चेतावनी हैं। यह आंकड़े राजनीतिक विमर्श के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के निर्माण में भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
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इसके अलावा, भूराजनीतिक दृष्टि से अमित शाह ने यह सवाल उठाया कि गुजरात और राजस्थान की सीमाओं पर घुसपैठ क्यों नहीं होती, जबकि पूर्वी सीमाओं पर यह बढ़ रही है। यह सीधे तौर पर सीमा प्रबंधन और पड़ोसी देशों— विशेषकर बांग्लादेश और पाकिस्तान, के साथ भारत की सुरक्षा रणनीति की जटिलताओं को उजागर करता है। भाषण में झारखंड के जनजातीय समुदायों की गिरावट का उल्लेख, घुसपैठ को केवल आर्थिक या राजनीतिक मुद्दा नहीं बल्कि सामाजिक संरचना पर भी असर डालने वाला कारक बताया गया है।
अमित शाह ने शरणार्थी और घुसपैठियों के बीच फर्क स्पष्ट किया। उनका कहना है कि शरणार्थी धार्मिक उत्पीड़न से आए हैं, जबकि घुसपैठिये अवैध रूप से आर्थिक या अन्य कारणों से प्रवेश करते हैं। यह वर्गीकरण केवल नीति निर्माण के लिए नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति स्पष्ट करने के लिए भी आवश्यक है। इससे यह संदेश जाता है कि देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना केंद्र और राज्य सरकारों की साझा जिम्मेदारी है।
इस भाषण का एक और महत्वपूर्ण पहलू है— मतदाता सूची में अवैध प्रवासियों की समावेशिता को रोकने की आवश्यकता। शाह ने इसे भारत के चुनावी लोकतंत्र के लिए चुनौती बताया और जोर दिया कि केवल नागरिकों को ही मतदान का अधिकार होना चाहिए। यह निर्णयात्मक कदम चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा को जोड़ने वाला है।
कुल मिलाकर, अमित शाह का भाषण केवल राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, लोकतांत्रिक संरचना और भूराजनीतिक रणनीति का एक मिश्रित विश्लेषण प्रस्तुत करता है। यह स्पष्ट करता है कि घुसपैठ का मुद्दा केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि जनसंख्या, समाज और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भी व्यापक प्रभाव डालता है। इसे सामरिक दृष्टि से समझना और राजनीतिक विमर्श में गंभीरता से लेना आवश्यक है।
अमित शाह का विस्तृत संबोधन
बहरहाल, जहां तक अमित शाह के विस्तृत भाषण की बात है तो आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया का समर्थन करते हुए शुक्रवार को कहा कि मतदाता सूची में घुसपैठियों का शामिल होना संविधान की भावना को दूषित करता है और मतदान का अधिकार केवल देश के नागरिकों को ही उपलब्ध होना चाहिए। समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण’ के पूर्व प्रधान संपादक नरेंद्र मोहन की स्मृति में ‘घुसपैठ, जनसांख्यिकीय बदलाव और लोकतंत्र’ विषय पर व्याख्यान देते हुए गृह मंत्री ने कहा कि केंद्र घुसपैठियों से निपटने के लिए ‘पता लगाने, हटाने और निर्वासित करने’ की नीति का पालन करेगा। अमित शाह ने कहा कि घुसपैठ और निर्वाचन आयोग की कवायद एसआईआर को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है।
उन्होंने पूछा, ‘‘मैं देश के सभी नागरिकों से पूछना चाहता हूं कि यह कौन तय करे कि देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा या मुख्यमंत्री कौन बनेगा? क्या देश के नागरिकों के अलावा किसी और को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए?’’ गृह मंत्री ने कहा कि कांग्रेस एसआईआर के मुद्दे पर ‘‘इनकार की मुद्रा’’ में चली गई है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया विपक्षी पार्टी की सरकार के दौरान भी हुई थी। उन्होंने कहा, ‘‘विपक्ष विरोध करने की नीति अपना रहा है, क्योंकि उनके वोट बैंक छिटक रहे हैं... मतदाता सूची की गड़बड़ियों को दूर करना करना निर्वाचन आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है। यदि आपको कोई समस्या है, तो आप अदालत जा सकते हैं।’’ शाह ने कहा कि एक समय ऐसा आएगा जब विपक्ष को भी नहीं बख्शा जाएगा। उन्होंने कहा कि विपक्ष का कहना है कि घुसपैठ रोकना केंद्र की जिम्मेदारी है क्योंकि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) उसके नियंत्रण में है, लेकिन सीमा पर कुछ ऐसे इलाके हैं जहां भौगोलिक स्थिति के कारण बाड़ नहीं लगाई जा सकती।
गृह मंत्री ने कहा, ‘‘केंद्र अकेले घुसपैठ नहीं रोक सकता। राज्य सरकारें ऐसे घुसपैठियों को संरक्षण देती हैं क्योंकि कुछ दलों को उनमें वोट बैंक दिखता है।’’ उन्होंने कहा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव तब तक नहीं हो सकते जब तक मतदाता सूची मतदाताओं की परिभाषा के अनुसार न हो, अर्थात भारतीय नागरिक होना और उसने निर्धारित आयु प्राप्त कर ली हो। घुसपैठिए और शरणार्थी के बीच अंतर को रेखांकित करते हुए शाह ने कहा कि शरणार्थी अपने धर्म को बचाने के लिए भारत आता है, जबकि घुसपैठिया धार्मिक उत्पीड़न के कारण नहीं, बल्कि आर्थिक और अन्य कारणों से अवैध रूप से सीमा पार करता है। उन्होंने कहा, ‘‘घुसपैठिए कौन हैं? जिन लोगों को धार्मिक उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है और जो आर्थिक या अन्य कारणों से अवैध रूप से भारत आना चाहते हैं, वे घुसपैठिए हैं। अगर दुनिया में कोई भी व्यक्ति जो यहां आना चाहता है और उसे ऐसा करने दिया जाये, तो हमारा देश एक धर्मशाला बन जायेगा।’’
शाह ने याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने पाकिस्तान के हिंदुओं से वादा किया था कि विभाजन के बाद तनाव कम होने पर उन्हें देश में स्वीकार कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह वादा नेहरू-लियाकत समझौते का हिस्सा था। शाह ने कहा, ‘‘धर्म के नाम पर इस देश का बंटवारा एक बहुत बड़ी भूल थी...भारत माता की भुजाएं काटकर आपने अंग्रेजों की साजिश को कामयाब बनाया।’’ उन्होंने कहा कि एक के बाद एक सरकारें इस वादे को भूलती गईं और 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के माध्यम से इस वादे को पूरा किया गया।
आजादी के बाद की जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए, शाह ने बताया कि 1951 में हिंदुओं की आबादी 84 प्रतिशत और मुसलमानों की 9.8 प्रतिशत थी, जबकि 1971 में हिंदू 82 प्रतिशत और मुसलमान 11 प्रतिशत थे, 1991 में हिंदू 81 प्रतिशत और मुसलमान 12.21 प्रतिशत थे, जबकि 2011 में हिंदू 79 प्रतिशत और मुसलमान 14.2 प्रतिशत थे। गृह मंत्री ने कहा, ‘‘2011 की जनगणना के अनुसार, मुसलमानों की वृद्धि दर 24.6 प्रतिशत थी जबकि हिंदुओं की 16.8 प्रतिशत थी। यह प्रजनन दर के कारण नहीं, बल्कि घुसपैठ के कारण था।’’ उन्होंने दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक की स्मृति में ‘जागरण साहित्य सृजन सम्मान’ भी प्रदान किया। यह पुरस्कार हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में से किसी एक में मौलिक कृति के लिए दिया जाता है।
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