Prabhasakshi NewsRoom: Modi की China Visit से पहले भारत ने चीनी पर्यटकों के लिए अपने द्वार खोले, क्या रंग लायेगी भारत की Visa Diplomacy?

Modi Jinping
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करीब पांच साल बाद, चीनी पर्यटकों को भारत के वीज़ा देना दोबारा शुरू करना एक संकेत है कि भारत अब संबंधों में नरमी और पुनर्निर्माण की ओर एक सोच-विचार कर रहा है। देखा जाये तो भारत के इस फैसले से तीन महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन की यात्रा पर जा सकते हैं। उससे ठीक पहले भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए चीनी पर्यटकों के लिए वीजा दोबारा शुरू करने की घोषणा की है। देखा जाये तो यह फैसला केवल पर्यटन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे व्यापक रणनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक संकेत भी छिपे हैं।

हम आपको याद दिला दें कि भारत-चीन संबंधों में 2020 की गलवान घाटी में हिंसक झड़प एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। इसके बाद से दोनों देशों के बीच भरोसा टूट गया था। न केवल कूटनीतिक संवाद सीमित हुआ, बल्कि व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। भारत ने चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए, कई चीनी निवेश परियोजनाओं की समीक्षा शुरू हुई और चीनी पर्यटकों के लिए वीजा भी स्थगित कर दिया गया।

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करीब पांच साल बाद, चीनी पर्यटकों को भारत के वीज़ा देना दोबारा शुरू करना एक संकेत है कि भारत अब संबंधों में नरमी और पुनर्निर्माण की ओर एक सोच-विचार कर रहा है। देखा जाये तो भारत के इस फैसले से तीन महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। पहला संकेत राजनयिक है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी की संभावित चीन यात्रा से पहले यह कदम एक साफ संदेश है कि भारत संवाद का रास्ता खुला रखना चाहता है। भारत यह दिखाना चाहता है कि वह सीमाओं पर तनाव को लेकर सख्त है, लेकिन बाकी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को पूरी तरह बंद करने के पक्ष में नहीं है। दूसरा संकेत यह है कि पर्यटक वीज़ा बहाली न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक संवाद और लोगों के स्तर पर संबंध सुधारने का प्रयास भी है। चीन से आने वाले पर्यटक भारतीय संस्कृति, बौद्ध स्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों में रुचि रखते हैं, जिससे परस्पर समझ को बढ़ावा मिलता है। साथ ही चीनी पर्यटक बड़ी संख्या में खर्च करने वाले पर्यटक माने जाते हैं। यह फैसला भारत के पर्यटन और विमानन उद्योग के लिए भी राहत का कारण बन सकता है। तीसरा संकेत आर्थिक दृष्टिकोण से है क्योंकि चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 

भारत सरकार का निर्णय हालांकि सकारात्मक संकेत देता है, परंतु इसमें कुछ चुनौतियां और जोखिम भी निहित हैं जैसे- सीमा विवाद अब भी अनसुलझा है और सैन्य स्तर की बातचीत लंबित है। इसके अलावा, भारत में जनमत अब भी चीन के प्रति संदेहपूर्ण है; ऐसे में यह फैसला राजनीतिक आलोचना का कारण भी बन सकता है।

इसके अलावा, हाल ही में "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान चीन ने खुलकर पाकिस्तान को सैन्य और तकनीकी समर्थन देकर यह स्पष्ट संकेत दिया था कि वह भारत के प्रतिद्वंद्वियों को मजबूत करने में रुचि रखता है। यह स्थिति भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक संतुलन के लिए गंभीर संकेतक है, खासकर उस समय जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभावित चीन यात्रा की तैयारियाँ चल रही हैं। ऐसे संवेदनशील समय में भारत को बहुस्तरीय सतर्कता अपनाने की आवश्यकता है, जिससे न केवल देश की सुरक्षा सुनिश्चित हो, बल्कि भारत की रणनीतिक स्थिति भी सुदृढ़ बनी रहे। भारत को चाहिए कि प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले और यात्रा के दौरान, पूरे उत्तरी मोर्चे पर हाई अलर्ट बनाए रखना होगा। चीन अपने विरोधियों के साइबर ढांचे को निशाना बनाने के लिए कुख्यात है इसलिए प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान और उससे पहले भारत को साइबर सुरक्षा और कम्युनिकेशन चैनल्स पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। साथ ही प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के दौरान यदि आर्थिक साझेदारी की कोई बात उठती है, तो भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह रणनीतिक क्षेत्रों (जैसे 5G, AI, डेटा सेंटर आदि) में चीनी निवेश से परहेज़ करे।

कुल मिलाकर देखा जाये तो भारत द्वारा चीनी पर्यटकों को वीज़ा देना शुरू करना और चीन द्वारा उसका स्वागत करना एक सकारात्मक कूटनीतिक संकेत अवश्य है, लेकिन इसे भारत-चीन संबंधों में बुनियादी सुधार के रूप में देखना फिलहाल जल्दबाज़ी होगी। वैसे चीन की ओर से इस फैसले का स्वागत यह दर्शाता है कि बीजिंग फिलहाल संबंधों को अत्यधिक तनावपूर्ण स्थिति में बनाए रखने के पक्ष में नहीं है। साथ ही भारत का यह कदम प्रधानमंत्री मोदी की संभावित चीन यात्रा से पहले दोनों पक्षों की ओर से माहौल को अनौपचारिक रूप से सहज बनाने का प्रयास प्रतीत होता है। दोनों देशों को समझना होगा कि संबंधों में सुधार का आधार केवल सीमाओं पर शांति, आपसी विश्वास और पारदर्शिता ही होती है।

बहरहाल, चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीज़ा बहाल करना एक ऐसा कदम है जो भारत की रणनीति में लचीलेपन को दर्शाता है। भारत यह संदेश देना चाहता है कि वह आक्रामकता के जवाब में सख्ती बरत सकता है, लेकिन जब संवाद और लाभ की गुंजाइश हो, तब संतुलन बनाकर आगे बढ़ना उसकी नीति है। प्रधानमंत्री मोदी की संभावित चीन यात्रा और एससीओ शिखर सम्मेलन इस दिशा में एक नया अध्याय शुरू कर सकते हैं— जहां भारत चीन के साथ सीमित सहयोग और संतुलित प्रतिस्पर्धा की नीति को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा।

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