भाजपा की मजबूरी या बिहार के लिए जरूरी हैं नीतीश कुमार?

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अंकित सिंह । Sep 12 2019 8:55PM

संजय पासवान के इस बयान के बाद जनता दल यू नीतीश कुमार के बचाव में आ गई और भाजपा पर कड़ा प्रहार किया। पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार किसी के रहमो करम पर मुख्यमंत्री नहीं बने हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही 1 साल का वक्त अभी बाकी है लेकिन राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है। सत्ता में विराजमान नीतीश कुमार जहां पोस्टर और बैनर लगवा कर खुद को सीएम के लिए प्रोजेक्ट कर रहे हैं वहीं सहयोगी भाजपा से उनके खिलाफ कुछ आवाजें भी उठने लगी हैं। आरजेडी की बात करें तो वह अभी भी नीतीश कुमार को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है तो एनडीए की तीसरी सहयोगी एलजेपी नीतीश कुमार का समर्थन करते हुए दिख रही है। बिहार की राजनीतिक बयानबाजी उस समय शुरू हुई जब नीतीश कुमार ने पटना के चौराहे पर पोस्टर लगवाया 'क्यों करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार'। इसके बाद आरजेडी ने पलटवार करते हुए कहा कि 'क्यों न करें विचार, बिहार जो है बीमार'। हालांकि भाजपा चुपचाप इन चीजों को देखती रही लेकिन मंगलवार को पार्टी ने अचानक एक शिगूफा छोड़ दिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता और एमएलसी संजय पासवान ने कहा कि भाजपा ने जदयू को और नीतीश कुमार को 15 साल सत्ता में रहने का मौका दिया है इसलिए अब वह भाजपा को भी यह मौका दें। इतना ही नहीं संजय पासवान ने कहा कि अब बिहार को नीतीश मॉडल की नहीं बल्कि मोदी मॉडल की जरूरत है। 

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संजय पासवान के इस बयान के बाद जनता दल यू नीतीश कुमार के बचाव में आ गई और भाजपा पर कड़ा प्रहार किया। पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार किसी के रहमो करम पर मुख्यमंत्री नहीं बने हैं। उन्हें जनता ने चुना है। बयानवीरों को बड़े बोलों से बचना चाहिए। त्यागी ने आगाह किया कि ऐसे बयानों से एनडीए की चुनावी रणनीति कमजोर हो सकती है। विवाद बढ़ा तो भाजपा ने भी पासवान के बयान से अपना पल्ला झाड़ लिया, हालांकि स्थिति साफ करने से पार्टी के बड़े नेता बचते रहें। पार्टी के कुछ बड़े नेताओं का मानना है कि सीएम पद का फैसला चुनाव के बाद होगा। इसका मतलब साफ है कि नीतीश को लेकर भाजपा में पहले जैसी विश्वसनियता नहीं रही। हां, भाजपा की तरफ से नीतीश के समर्थन में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जरूर आएं। सुशील मोदी ने कहा कि प्रदेश में NDA के कप्तान नीतीश कुमार हैं और वे 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कप्तान बने रहेंगे। इतना ही नहीं, मोदी ने कहा कि जब कप्तान चौका, छक्का मार रहा है और विरोधियों को पारी के साथ पराजित कर रहा है, तो ऐसे में किसी भी बदलाव का प्रश्न कहां है। इससे पहले भी सुशील मोदी कई बार कह चुके हैं कि NDA अगला विधानसभा का चुनाव भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगा। भले ही सुशील मोदी डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हो पर यह सच है कि भाजपा के एक बड़े वर्ग का यह मानना है कि बिहार में पार्टी के उदय का वक्त आ चुका है। पार्टी नेताओं को लगता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को 23 फीसदी वोट मिले थे और सबसे ज्यादा सीटें भी। ऐसे में पार्टी के लिए सत्ता में काबिज होने की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं। भाजपा नेताओं के उत्साह का एक और बड़ा कारण लालू की स्थिति का कमजोर होना भी है। 

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सुशील मोदी के इस बयान के बाद भाजपा के कुछ नेता इससे सहमत नहीं दिख रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि नीतीश को साथ रखने में भाजपा में एक राय नहीं है। उधर NDA की तीसरी सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी नीतीश के पक्ष में खड़ी दिख रही है। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने इस विवाद के बाद कहा कि बिहार में NDA की सरकार है और 2020 के चुनाव के बाद भी रहेगी। उन्होंने दावा किया कि NDA बिहार से 200 से ज्यादा सीटें जीतेगी। रामविलास पासवान ने साफ किया कि बिहार में नीतीश कुमार ही NDA का चेहरा हैं और आगे भी रहेंगे। किसी के कहने से चेहरा बदल नहीं जाता है। भले हीं रामविलास पासवान का बयान जदयू के लिए थोड़ी राहत लेकर आया हो पर भाजपा आलाकमान की चुप्पी उनके लिए बेचैनी का सबब बनी हुई है। उधर विपक्ष में होने के कारण भले ही RJD लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर दिख रही हो पर सच यह भी है कि पार्टी का एक खेमा एक बार फिर से नीतीश के नेतृत्व वाली महागठबंधन की कवायद में जुटा है। RJD के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह और शिवानंद तिवारी के हालिया बयानों से यह साफ जाहिर होता दिखता भी है। रघुवंश जहां नीतीश कुमार से महगठबंधन में वापस आने की कई बार अपील कर चुके हैं तो वहीं शिवानंद तिवारी ने पीएम मैटेरीयल तक बता दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि लालू यादव के बिना सहमति के शिवानंद और रघुवंश नहीं बोल रहे हैं।

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अब आते हैं नीतीश और भाजपा के हालिया रिश्ते पर। मोदी सरकार-2 के शपथ ग्रहण के साथ ही भाजपा और जदयू में दूरियां दिखने लगीं। इसके बाद घटित तमाम गतिविधियों को देखें तो ऐसे कई मौके आएं जब दोनों पार्टियां आमने-सामने खड़ी दिखीं। अनुच्छेद 370, तीन तलाक और NRC पर नीतीश का रूख भाजपा को नागवार गुजरा। झारखंड में विधानसभा के चुनाव हैं और नीतीश का भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रामक रवैया पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। भाजपा का यह भी मानना है कि जदयू बिहार में 17 लोकसभा सीटें नरेंद्र मोदी की ही बदौलत जीत पाई है ऐसे में पार्टी का जनाधार यहां बढ़ा है। जदयू भी 2015 के नतीजों को याद दिलाकर भाजपा पर तंज कस रही है। जदयू को भी लगता है कि ऐसे कई मौके आएं जब केंद्र ने नीतीश कुमार को सार्वजनिक तौर पर अपमान किया। चाहे मामला पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग को ख़ारिज कर देने का हो या फिर बिहार को प्राकृतिक विपदा में मोदी सरकार से अपेक्षा के अनुरूप आर्थिक अनुदान ना मिलना हो। इन तमाम मनमुटाव के बीच बिहार में नीतीश कुमार का NDA का हिस्सा बना रहना भी चौकाता है। हालांकि जानकारों का मानना है कि बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा के लिए एक दूसरे का साथ रहना मजबूरी बन गया है। 2015 के हार के बाद भाजपा फिलहाल विधानसभा के चुनाव में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। ऐसे में नीतीश उसके लिए बेहद ही जरूरी हैं। वहीं नीतीश को भी यह लगने लगा है कि अब वह प्रधानमंत्री बनने से रहे। ऐसे में वह बिहार की ही सत्ता में काबिज रहना चाहते हैं। नीतीश के लिए RJD की तुनला में भाजपा के साथ सरकार चलाने में ज्यादा सहजता रहती है। 

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