Delhi Election 2025: दिल्ली का दिल जीतने में हर बार फेल रही BJP, सिर्फ 1 बार मिली थी जीत

दिल्ली में अब तक सात बार चुनाव हुए हैं। जिनमें से सिर्फ एक बार भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने में सफल रही थी। साल 1993 के चुनाव के बाद भाजपा फिर दिल्ली में वापसी नहीं कर सकी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनादेश क्या रहेगा। इस फैसले पर लगभग सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। इस विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी वापसी करने में कामयाब रहेगी या फिर अन्य राजनीतिक दल सरकार बनाएगी, यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा। बता दें कि दिल्ली में अब तक सात बार चुनाव हुए हैं। जिनमें से सिर्फ एक बार भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने में सफल रही थी। साल 1993 के चुनाव के बाद भाजपा फिर दिल्ली में वापसी नहीं कर सकी।
साल 1993 का विधानसभा चुनाव
बता दें कि साल 1993 में नई गठित विधानसभा के लिए चुनाव हुआ था। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मारी थी। साल 1991 के दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी अधिनियम के तहत विधानसभा बनी थी। साथ ही पहला चुनाव हुआ था। जब राज्य में भाजपा की सरकार बनीं, तो मदन लाल खुराना दिल्ली के सीएम बने थे। इस चुनाव में बीजेपी ने 70 में से 49 सीटों पर जीत हासिल की थी। पार्टी को 42.80 फीसदी वोट मिले थे। वहीं मदन लाल खुराना फरवरी 1996 तक सीएम रह सके और फिर उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बनें। लेकिन अगले चुनाव से पहले उनकी भी विदाई हो गई।
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राज्य में भाजपा की हार
इसके बाद 12 अक्तूबर 1998 को सुषमा स्वराज को दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन प्याज के दामों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया। तब से लेकर आज तक भाजपा अपने इस 22 साल के वनवास को खत्म नहीं कर सकी। इस तरह से दिल्ली के सिंहासन की दूरी भाजपा की 27 साल तक की हो गई। पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने राजधानी में कमल खिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन इसके बावजूद पार्टी दिल्ली का दिल नहीं जीत सकी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 70 विधानसभा सीटों में से 8 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
राजनीतिक जानकारों की मानें, तो भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के सियासी मिजाज को समझ नहीं पाई है। वह अन्य राज्यों की तरह दिल्ली के विधानसभा चुनाव भी जीतना चाहती है। जबकि राजधानी का सियासी मिजाज बिलकुल जुदा है। राजधानी में जाति और धर्म की सियासत को कभी तवज्जो दी ही नहीं गई। साथ ही दिल्लीवासी नकारात्मक चुनाव प्रचार को भी अहमियत नहीं देते हैं। क्योंकि दिल्ली का एक बड़ा तबका कारोबारियों का है।
जब साल 1993 में भाजपा ने सत्ता हासिल की, तो पांच साल के दौरान पार्टी को 3 बार सीएम बदलने पड़े। इसका नतीजा यह निकला कि दिल्ली की जनता के बीच भारतीय जनता पार्टी का गलत राजनीतिक संदेश गया। इसका खामियाजा पार्टी को साल 1998 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। साल 2013 में भाजपा 31 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन फिर भी अन्य राजनीतिक गठबंधन के चलते भाजपा सत्ता के पास पहुंचते-पहुंचते रह गई।
वहीं साल 2015 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बड़ी जद्दोजहद के बाद 3 सीटें बचाने में कामयाब रही। वहीं साल 2020 में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में करारी हार का सामना करना पड़ा। राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि भाजपा दिल्ली में अपने किसी भी नेता को बहुत ज्यादा स्पेस नहीं देती है। क्योंकि राजधानी में किसी खास नेता को स्पेस देने का मतलब है कि उस नेता की राजनीतिक हैसियत को बढ़ाना और कोई भी राष्ट्रीय पार्टी ऐसा नहीं करना चाहती है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विधानसभा चुनाव में भाजपा क्या कमाल दिखाती है।
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