एल्गार परिषद मामले में कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को जमानत देने से बॉम्बे हाई कोर्ट का इनकार
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को यलगार परिषद मामले के आरोपी प्रोफेसर सुधा भारद्वाज की अंतरिम जमानत अर्जी को खारिज कर दिया। सुधा भारद्वाज भायखला महिला जेल में बंद हैं। जहां उनके स्वास्थ्य की लगातार निगरानी की जा रही थी। उन्हें पर्याप्त चिकित्सा व्यवस्था मुहैया कराई जा रही थी।
मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद- कोरेगांव भीमा मामले में आरोपी वकील एवं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को जमानत देने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है। न्यायमूर्ति आर डी धानुका की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस साल जून में दायर भारद्वाज की अपील को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने विशेष अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें स्वास्थ्य समस्याओं के आधार पर उन्हें जमानत देने से इनकार किया गया था। भारद्वाज (58) ने जमानत का अनुरोध करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया और कहा कि वह मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य की ये समस्याएं भायखला महिला जेल में रहते हुए उनके कोरोना वायरस से संक्रमित होने का जोखिम बढ़ाती हैं जहां एक कैदी पूर्व में कोविड-19 की जांच में संक्रमित पाई गई थी।
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हालांकि, अदालत ने एनआईए और महाराष्ट्र सरकार की दलीलों पर गौर किया जिनमें कहा गया कि जेल के अधिकारी कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए सभी एहतियात बरत रहे हैं और वे भारद्वाज को उनकी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जरूरी चिकित्सीय देखभाल उपलब्ध करा रहे हैं। एनआईए के वकील, अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल अनिल सिंह ने भी अदालत को बताया कि अगर किसी भी वक्त भारद्वाज को और इलाज की जरूरत पड़ेगी या उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ेगी तो राज्य इसकी व्यवस्था करेगा। उन्होंने कहा कि मामले में सह-आरोपी, कवि-कार्यकर्ता वरवर राव को सरकारी जेजे अस्पताल में और बाद में कोविड-19 एवं अन्य बीमारियों के इलाज के लिए निजी नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उच्च न्यायालय ने भारद्वाज की याचिका खारिज करते हुए कहा, “हमारी नजर में, जमानत का कोई आधार नहीं बनता है। इस आवेदन में विचार योग्य कोई गुण नहीं है।
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