रक्षा विशेषज्ञ ने दिए यूक्रेन-रूस जंग से जुड़े सवालों के जवाब, बताया इससे भारत को मिला कौन सा सबक

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क्योंकि पुतिन क्या सोचते हैं यह किसी को नहीं पता। विश्व में 90% लोग यही सोच रहे थे कि लड़ाई नहीं होगी। भारत ने भी शायद यही सोचा होगा कि ऐसे हालात पैदा नहीं होंगे। लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं। प्रधानमंत्री ने पुतिन से बात कर भारतीय नागरिकों की सुरक्षित घर वापसी का प्रयास किया है।

रूस और यूक्रेन के युद्ध ने पूरी दुनिया के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। दोनों देशों के बीच युद्ध जारी है ऐसे में सभी की नजर इस युद्ध और इसके परिणामों पर टिकी हुई है। भारत भी दो देशों की इस लड़ाई में अछूता नहीं रह सकता। इस युद्ध की परिणिति क्या होगी और कैसे भारत समेत दुनिया के दूसरे देश इस युद्ध से प्रभावित होंगे, इसी मुद्दे पर रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) संजय कुलकर्णी ने महत्वपूर्ण विश्लेषण किया है।

 

क्या हैं इस युद्ध के सबक

डिफरेंट एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) संजय कुलकर्णी ने एक न्यूज़ एजेंसी को दिए साक्षात्कार में रशिया यूक्रेन युद्ध से संबंधित महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए।

सवाल: रूस की सैन्य कार्यवाही के बाद यूक्रेन में भीषण युद्ध जारी है। इस युद्ध के क्या प्रणाली देखते हैं आप? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा रूस की सीमा एक दर्जन से अधिक देशों से लगती है और इसमें से कुछ देश, जो कभी पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे थे, आज नाटो के सदस्य बन चुके हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति का भी झुकाव पश्चिमी देशों की ओर था। लिहाजा रूस अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित था। उसको लगता रहा है कि उसकी सुरक्षा संबंधी चिंताओं को अनदेखा किया जा रहा है। पश्चिम के देश खास करके अमेरिका को लग रहा था कि रूस कमजोर है आज के वक्त में उस में इतना दम नहीं है।

जिस तरह उसने 1994 से लगातार हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, लातविया और लिथुआनिया जैसे देशों को धीरे-धीरे नाटो का सदस्य बना लिया गया इसी से रूस परेशान था, उन्होंने कहा आज की तारीख में जो कुछ भी हो रहा है उससे लगता है कि गलती यूक्रेन की भी है। यूक्रेन और रूस कभी एक ही देश थे। दोनों को एक दूसरे की चिंताओं को समझना था। लेकिन यूक्रेन ने शायद नहीं समझा। उन्होंने कहा मेरी राय में यूक्रेन को पश्चिमी देशों ने एक उकसाया भी और इस उकसावे का भुगतान उसे करना पड़ रहा है।

सवाल: भारत के लिहाज से इस युद्ध के तात्कालिक और दूरगामी परिणाम क्या होंगे? इसके जवाब में संजय कुलकर्णी कहते हैं बिल्कुल इससे हम पर भी असर पड़ेगा। क्योंकि यूक्रेन के साथ हमारे अच्छे रिश्ते हैं तो रूस के साथ हमारे बहुत अच्छे रिश्ते हैं। अमेरिका के साथ भी हमारे अच्छे रिश्ते हैं। लेकिन चीन से हमारे रिश्ते अच्छे नहीं हैं। इन हालातों में अगर देखा जाए तो कम से कम यूक्रेन से जो हमारे आर्थिक रिश्ते हैं, वह प्रभावित होंगे। हम खाने का तेल फर्टिलाइजर आदि का निर्यात यूक्रेन से करते हैं। यह दोनों चीज है प्रभावित होंगी। दूसरी ओर हमरो से भी कच्चा तेल और कच्चा ईंधन निर्यात करते हैं। उस पर भी फर्क पड़ेगा।

सवाल: क्या इस युद्ध के बाद आप एक नया वर्ल्ड ऑर्डर आकार लेते देख रहे हैं?इसके जवाब में उन्होंने कहा इसमें कोई शक नहीं है कि एक नया वर्ड और निश्चित तौर पर तैयार होगा। इस वर्ल्ड ऑर्डर में चीन एशिया में अपने आप को प्रभावशाली बनाने की कोशिश करेगा। रूस ना एशिया में है ना यूरोप में। उसका 30% हिस्सा यूरोप में है और बाकी का 70% एशिया में। बीते 22 वर्ष से पुतिन रूस को उस मुकाम पर ले आए हैं जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। 1990 में सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस बिखर गया। लेकिन इसके बाद भी उसने साबित किया कि वह अपने गौरवशाली स्थान पर पहुंचा है। रूस चाहता है कि सब उसकी ताकत को स्वीकार करें। रूस पश्चिमी देशों खासकर के अमेरिका को संदेश दे रहा है कि वह उसे नजरअंदाज करने की गलती ना करें। अगर चीन, रूस ईरान, अजरबैजान ये सभी देश मिल गए और पश्चिम के देश अमेरिका के साथ हो गए तब भारत की चिंता बढ़ जाती है। क्योंकि चीन के साथ हमारे रिश्ते बहुत खराब हैं दूसरी ओर रूस हमारे रिश्ते बहुत अच्छे हैं।

सवाल: यूक्रेन पर रूसी सैन्य कार्रवाई पर भारत कशमकश की स्थिति में है। क्या कहेंगे आप? इसके जवाब में उन्होंने कहा रूस हमारा बहुत अच्छा दोस्त है यूक्रेन भी हमारा दोस्त है और अमेरिका भी हमारा अच्छा दोस्त है। ऐसे में किसी एक का पक्ष लेना बहुत मुश्किल हो जाता है। लड़ाई के बाद एक बात साफ जाहिर है कि हर देश को अपनी लड़ाई खुद लड़नी है। इस लड़ाई से हमें जो सीख मिलती है वह यह कि आत्मनिर्भर भारत बहुत जरूरी है। सुरक्षा के मामले में भी हमारे लिए आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक है। देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए हमें खुद लड़ाई लड़नी है। इसलिए तैयारी पूरी होनी चाहिए और सब के साथ अच्छे संबंध भी होने चाहिए।

सवाल: भारतीय अभी वहां बड़ी संख्या में फंसे हैं, क्या भारत हालात का सही आकलन नहीं कर पाया और इसाी वजह से अपने नागरिकों को यूक्रेन से निकालने में देरी हुई? जवाब में उन्होंने कहा देरी तो जरूर हुई लेकिन इसे चूक कहना उचित नही होगा। क्योंकि पुतिन क्या सोचते हैं यह किसी को नहीं पता। विश्व में 90% लोग यही सोच रहे थे कि लड़ाई नहीं होगी। भारत ने भी शायद यही सोचा होगा कि ऐसे हालात पैदा नहीं होंगे। लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं। प्रधानमंत्री ने पुतिन से बात कर भारतीय नागरिकों की सुरक्षित घर वापसी का प्रयास किया है। हमारे लोग यूक्रेन के पड़ोस के देश से होते हुए अब आ रहे हैं। यह सब दिखाता है कि इन देशों में भारत का प्रभाव काफी है।

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