न्यायपालिका की ‘रनिंग कमेंट्री’ पर रोक लगाने की मांग

कार्यपालिका पर न्यायपालिका की ओर से की जाने वाली टिप्पणियों को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में आज कड़ा रूख अपनाया।

कार्यपालिका पर न्यायपालिका की ओर से की जाने वाली टिप्पणियों को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा ने लोकसभा में आज कड़ा रूख अपनाया और अदालतों की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद आदि पर ‘रनिंग कमेंट्री’ पर रोक लगाने या उसकी कोई सीमा तय करने की मांग की। शून्यकाल में भाजपा के अर्जुन राम मेघवाल ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि संविधान ने शक्ति के पृथक्करण की व्यवस्था की है जिसके तहत कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की अपनी अपनी सीमाएं निर्धारित हैं।

उन्होंने कहा ‘‘लेकिन वर्तमान में न्यायपालिका जो रनिंग कमेंट्री करती है, वह कानून भी बन जाता है। यह गलत परंपरा है। संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा था कि न्यायपालिका रनिंग कमेंट्री करेगी, और वह भी उच्च पदों पर बैठे लोगों पर। इस पर रोक लगनी चाहिए और न्यायपालिका को संयम बरतना चाहिए।’’ सत्ता पक्ष के कई सदस्य मेजें थपथपा कर मेघवाल का समर्थन करते देखे गए। हालांकि एआईएमआईएम के सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने मेघवाल की टिप्पणियों का विरोध किया। मेघवाल ने कहा कि कानूनों की व्याख्या के तहत अदालतें कानून बनाती हैं लेकिन किसी मामले में फैसला सुनाते समय रनिंग कमेंट्री के जरिये कानून बनाने का प्रयास एकदम गलत है। उन्होंने कहा कि अदालतें यह भी कहने लगी हैं कि वह जो कह रहे हैं वह कानून है और यह एकदम अनुचित बात है। उन्होंने कहा ‘‘अदालतों की रनिंग कमेंट्री पर रोक लगे और उसकी सीमा तय हो।’’

गौरतलब है कि संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल में ‘‘न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक’’ लाया गया था जिसमें किसी भी संवैधानिक निकाय के खिलाफ टिप्पणी पर रोक लगाने का प्रावधान था। बार बार बदलावों के लिए यह विधेयक केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास जाता रहा और इस बीच 15वीं लोकसभा भंग हो गई जिसके साथ ही विधेयक भी समाप्त हो गया।

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