पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पहले कुलपति डॉ. राधेश्याम शर्मा को किया गया याद

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[email protected] । Jan 14 2020 5:27PM

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति तिवारी ने कहा कि विश्वविद्यालय की संकल्पना के अनुरूप हम सब विचारधाराओं को साथ लेकर चल रहे हैं। विश्वविद्यालय लगातार उत्क्रष्टता के लिए प्रयासरत है। विश्वविद्यालय का जोर गुणवत्तापूर्ण शोधकार्य पर है। हम प्रयास करेंगे कि स्वर्गीय राधेश्याम शर्मा की पत्रकारिता पर भी पीएचडी हो।

भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की यात्रा को 30 वर्ष होने को हैं। विश्वविद्यालय की यह यात्रा उत्क्रष्टता की ओर है। आज विश्वविद्यालय ने जो प्रगति की है, वह जिस वटवृक्ष के रूप में हमें दिखाई पड़ रहा है, उसका बीज स्वर्गीय राधेश्याम शर्मा जैसे मूर्धन्य पत्रकार ने बोया था। वे विश्वविद्यालय के संस्थापक महानिदेशक रहे हैं। वह जिस समन्वय की दृष्टि को लेकर चले थे, विश्वविद्यालय उसी सोच पर आगे बढ़ रहा है। यह विचार विश्वविद्यालय के कुलपति श्री दीपक तिवारी ने 'स्मरण डॉ. राधेश्याम शर्मा' कार्यक्रम में व्यक्त किए। डॉ. शर्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनका पुण्य स्मरण करने के लिए विश्वविद्यालय एवं सप्रे संग्रहालय की ओर से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति तिवारी ने कहा कि विश्वविद्यालय की संकल्पना के अनुरूप हम सब विचारधाराओं को साथ लेकर चल रहे हैं। विश्वविद्यालय लगातार उत्क्रष्टता के लिए प्रयासरत है। विश्वविद्यालय का जोर गुणवत्तापूर्ण शोधकार्य पर है। हम प्रयास करेंगे कि स्वर्गीय राधेश्याम शर्मा की पत्रकारिता पर भी पीएचडी हो। 

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विश्वविद्यालय की आत्मा थे डॉ. शर्मा : 

डॉ. शर्मा को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय का ढांचा अरविन्द चतुर्वेदी ने खड़ा किया, लेकिन उसकी आत्मा राधेश्याम शर्मा बने। विश्वविद्यालय को विस्तार देने में वह सबको साथ लेकर चले। वह इस विश्वविद्यालय को भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता का तीर्थ बनाना चाहते थे। सप्रे संग्रहालय के संस्थापक विजयदत्त श्रीधन ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्वर्गीय शर्मा निर्मल स्वभाव के थे। वह सदैव सबकी फिक्र करते थे। सब पत्रकारों को जोड़ कर रखने का प्रयास करते थे। वह लोगों को किसी चौखाने में रखकर नहीं देखते थे। 

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मूर्धन्य एवं सच्चे पत्रकार :

स्वर्गीय शर्मा की पत्रकारिता का स्मरण करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री लज्जाशंकर हरदेनिया ने बताया कि किस प्रकार एक सच्चे पत्रकार को अपनी विचारधारा और अपने प्रोफेशन को अलग-अलग रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि राधेश्याम शर्मा जी की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वह खबर को सूंघने की क्षमता रखते थे। उन्होंने विभिन्न समाचार-पत्रों को नई पहचान दी। विश्वविद्यालय के पूर्व रैक्टर ओपी दुबे ने कहा कि स्वर्गीय शर्मा केवल मूर्धन्य पत्रकार ही नहीं थे, बल्कि वे बहुत अच्छे इंसान भी थे। उनमें अहंकार बिल्कुल भी नहीं था। 

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संस्था की चिंता करने वाले प्रशासक : 

विश्वविद्यालय की पूर्व प्राध्यापिका दविंदर कौर उप्पल ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वह सबको स्नेह देते थे। उनका व्यक्तित्व बहुत सहज था। वे छोटे से कर्मचारी को भी भरपूर सम्मान देते थे। उन्होंने महानिदेशक रहते हुए अपने व्यवहार से बताया कि संस्था प्रमुख को अपनी जिद नहीं पालनी चाहिए। अच्छा संस्था प्रमुख वही है जो अपनी जिद छोड़कर संस्था के विकास की चिंता करे। वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू ने कहा कि विचारधारा को लेकर राधेश्याम जी कभी कर्कश नहीं रहे। आज उनके जैसे लोगों की कमी है। वे ऐसे व्यक्तित्व थे कि उनके साथ बैठ लिए तो लगता था कि जैसे एकाध किताब पढ़ ली हो। स्वर्गीय शर्मा जी रिश्तेदार श्री हर्ष शर्मा ने भी उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और उनके साथ अपने निजी अनुभव साझा किए। कार्यक्रम का संचालन प्रो. संजय द्विवेदी ने किया। आभार व्यक्त सहायक कुलसचिव विवेक सावरीकर ने किया। इस अवसर पर नगर के प्रबुद्ध नागरिक, पत्रकार एवं विश्वविद्यालय के कर्मचारी, अधिकारी एवं शिक्षकगण उपस्थित रहे। 

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