Prabhasaskshi NewsRoom: Farewell Speech में Justice Oka ने Supreme Court पर कई गंभीर सवाल उठा दिये

न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि चयनित मामलों को ‘‘सूचीबद्ध करने में मैनुअल हस्तक्षेप कम किया जाना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लोग शिकायत करते हैं कि कुछ मामले अगले दिन क्यों सूचीबद्ध होते हैं और अन्य मामले काफी दिनों के बाद भी क्यों लंबित रहते हैं।''
क्या उच्चतम न्यायालय में सभी न्यायाधीशों का आपस में बेहतर समन्वय है? यह सवाल हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को ‘‘प्रधान न्यायाधीश केंद्रित अदालत’’ बताया और इसकी संरचना में देश के विभिन्न क्षेत्रों से 34 न्यायाधीशों के आने के मद्देनजर इसमें बदलाव की वकालत की है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने निचली तथा जिला अदालतों की उपेक्षा की है, जो न्यायपालिका की रीढ़ हैं। उन्होंने कहा कि निचली अदालतों में बहुत अधिक मामले लंबित हैं और कुछ मामले तो 30 साल से लंबित हैं।
न्यायमूर्ति ओका ने अपनी विदाई के लिए आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘‘उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हैं, क्योंकि वहां पांच न्यायाधीशों की एक प्रशासनिक समिति होती है। प्रशासनिक समिति द्वारा प्रमुख निर्णय लिये जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में मैंने पाया है कि शीर्ष अदालत प्रधान न्यायाधीश केंद्रित न्यायालय है और मुझे लगता है कि हमें इसमें बदलाव करने की जरूरत है।’’ न्यायाधीश ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय 34 न्यायाधीशों की अदालत है। वे देश के विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं। इसलिए प्रधान न्यायाधीश केंद्रित अदालत की छवि को बदलने की जरूरत है।’’
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हम आपको यह भी बता दें कि इससे पहले शुक्रवार को ही दिन में, न्यायमूर्ति ओका ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय एक ऐसी अदालत है, जो संवैधानिक स्वतंत्रता को कायम रख सकती है और यही संविधान निर्माताओं का सपना था। वकीलों, बार नेताओं, प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की सराहना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘‘मुझे स्वीकार करना होगा कि पिछले एक घंटे और 20 मिनट में जो कुछ कहा गया है, उसे सुनने के बाद मैं निःशब्द हूं और शायद आज मेरे पेशेवर जीवन का पहला और आखिरी दिन है, जब मैंने किसी को बोलने से नहीं रोका, क्योंकि मैं रोक नहीं सकता था। मैंने बार के सदस्यों द्वारा मेरे प्रति इतना प्यार और स्नेह देखा है कि मैं निःशब्द हो गया।’’
दिन में, एससीबीए के समारोह के दौरान न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि चयनित मामलों को ‘‘सूचीबद्ध करने में मैनुअल हस्तक्षेप कम किया जाना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लोग शिकायत करते हैं कि कुछ मामले अगले दिन क्यों सूचीबद्ध होते हैं और अन्य मामले काफी दिनों के बाद भी क्यों लंबित रहते हैं। जब तक हम मैनुअल हस्तक्षेप को बहुत कम नहीं कर देते, हम बेहतर लिस्टिंग (सूचीबद्ध) नहीं कर सकते। हमारे पास कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीक और अन्य सॉफ्टवेयर हैं, जो मामलों को तर्कसंगत तरीके से सूचीबद्ध करने में मदद कर सकते हैं।’’ न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि अपने दो दशक से अधिक के कॅरियर में उन्होंने कभी भी असहमति वाला फैसला नहीं सुनाया।
उन्होंने कहा, ‘‘अपने पूरे कार्यकाल के दौरान मैंने कभी भी असहमति वाला फैसला नहीं सुनाया। न ही मेरे सहकर्मियों ने असहमति जताई। केवल दो दिन पहले एक अपवाद हुआ।’’ न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि वे सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद साक्षात्कार नहीं देंगे और उन्हें प्रेस से बात करने के लिए कुछ समय चाहिए होगा। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘‘मैंने यह फैसला किया है कि जब तक मैं पद पर हूं, मीडिया से बात करना मेरे लिए संभव नहीं है। मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा। मुझे दो से तीन महीने का समय चाहिए। इसका कारण यह है कि अगर मैं आज मीडिया से बात करूंगा, तो मेरा मन भावनाओं से भरा होगा और मैं कुछ ऐसा कह सकता हूं जो मुझे नहीं कहना चाहिए।’’
बार को दिये अपने संदेश में, जिसे अलग से पढ़ा गया, न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि 28 जनवरी को न्यायालय ने अपनी स्थापना के 75 साल पूरे कर लिये और इस अवसर पर जश्न मनाने के बजाय आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘देश के नागरिकों को इस न्यायालय से बहुत उम्मीदें थीं। हालांकि, कोई भी इस न्यायालय के योगदान से इंकार नहीं कर सकता, लेकिन मेरा व्यक्तिगत विचार है कि शीर्ष अदालत ने भारत के नागरिकों की उम्मीदों को पूरा नहीं किया है।''
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