Jan Gan Man: बंगाल में राजनीतिक हिंसा तुष्टिकरण की राजनीति का परिणाम है या कानून-व्यवस्था की विफलता है?

Khagen Murmu Shankar Ghosh
ANI

इस घटना के पीछे बंगाल की राजनीति में व्याप्त हिंसात्मक प्रवृत्तियों और तुष्टिकरण की राजनीति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पिछले कई सालों से देखा गया है कि TMC की सत्ता में बने रहने की रणनीति में विभिन्न वर्गों और समुदायों के बीच विभाजन और तुष्टिकरण का प्रयोग शामिल रहा है।

पश्चिम बंगाल से एक चिंताजनक खबर सामने आई है, जिसने न केवल राज्य बल्कि पूरे देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। सोमवार को भाजपा सांसद खगेन मुर्मू और विधायक शंकर घोष पर जलपाईगुड़ी जिले के नागराकाटा इलाके में बाढ़ और भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य करते समय हमला किया गया। खगेन मुर्मू के चेहरे पर गंभीर चोटें आई हैं, जिसमें उनकी आंख के नीचे की हड्डी भी टूटी है और उन्हें सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है। विधायक शंकर घोष की स्थिति भी स्थिर है, लेकिन इस घटना ने राहत कार्यों के दौरान भी राजनीतिक हिंसा के गहरे रुझान को उजागर किया है। घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इसे “संपूर्णतः घृणित” करार दिया और तृणमूल कांग्रेस (TMC) पर आरोप लगाया कि वह प्राकृतिक आपदा में लोगों की मदद करने की बजाय हिंसा में लिप्त है।

भाजपा का आरोप है कि हमला TMC समर्थकों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से किया गया। बंगाल भाजपा के सह-प्रभारी अमित मालवीय ने आरोप लगाया है कि जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी “कार्निवाल में नाच रही हैं”, उस समय राज्य प्रशासन और TMC वास्तविक राहत कार्यों से दूरी बनाए हुए हैं और उनके सहयोगी हिंसा में शामिल हैं। इस घटनाक्रम में अब तक आठ लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई है। वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस घटना को “प्राकृतिक आपदा का राजनीतिकरण” बताते हुए भाजपा पर पलटवार किया है।

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देखा जाये तो इस घटना के पीछे बंगाल की राजनीति में व्याप्त हिंसात्मक प्रवृत्तियों और तुष्टिकरण की राजनीति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पिछले कई सालों से देखा गया है कि TMC की सत्ता में बने रहने की रणनीति में विभिन्न वर्गों और समुदायों के बीच विभाजन और तुष्टिकरण का प्रयोग शामिल रहा है। राजनीतिक लाभ के लिए कानून और व्यवस्था को नजरअंदाज करना या स्थानीय समर्थकों को चुनावी और सामाजिक दबाव बनाने के लिए सक्रिय करना अब आम बात बन गया है। नतीजा यह हुआ है कि प्राकृतिक आपदा जैसी संवेदनशील परिस्थितियों में भी राजनीतिक हिंसा को बढ़ावा मिलता है।

राजनीतिक हिंसा का यह स्वरूप केवल भाजपा नेताओं पर हमले तक सीमित नहीं है; यह समाज में भय और अविश्वास की भावना को भी जन्म देता है। जब राजनीतिक दल अपने विरोधियों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करते हैं, तो प्रशासन और कानून की स्वायत्तता प्रभावित होती है। बंगाल के नागरिकों के लिए यह चिंता की बात है कि आपदा के समय भी उन्हें मदद के लिए किसी राजनीतिक दल की पहुंच पर निर्भर होना पड़ता है, जबकि राज्य सरकार का प्राथमिक कर्तव्य उनके जीवन और सुरक्षा की रक्षा करना होना चाहिए।

देखा जाये तो आने वाले विधानसभा चुनावों पर इस घटनाक्रम का बड़ा असर पड़ सकता है। भाजपा इसे राज्य में कानून-व्यवस्था की विफलता और TMC की तुष्टिकरण-प्रधान राजनीति की कमजोरी के रूप में प्रचारित करेगी। इसके चलते राजनीतिक ध्रुवीकरण और चुनावी माहौल और भी तीव्र हो सकता है। दूसरी ओर, TMC के लिए यह चुनौती है कि वह अपने शासन की साख बनाए और यह साबित करे कि वह सभी वर्गों के हित में काम कर रही है, न कि केवल राजनीतिक फायदे के लिए। राजनीतिक हिंसा और सामाजिक असुरक्षा की स्थिति जनता के विश्वास को कमजोर करती है और आगामी चुनाव में उसके प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में इस प्रकार की हिंसा केवल व्यक्तिगत या आकस्मिक घटना नहीं है। यह लंबे समय से चली आ रही तुष्टिकरण की राजनीति और प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है। ऐसे में न केवल राजनीतिक दलों को जिम्मेदारीपूर्वक कार्य करना होगा, बल्कि राज्य प्रशासन और कानून व्यवस्था को भी सुनिश्चित करना होगा कि प्राकृतिक आपदा और समाज कल्याण के समय किसी को डर या हिंसा का सामना न करना पड़े। आने वाले विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा निश्चित रूप से जनता के मतों और राजनीतिक रणनीतियों पर गहरा असर डालेगा।

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