67 सीटें जीतने वाले केजरीवाल 65 सीटों पर हारे, दिल्ली में बड़े बदलाव के संकेत

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अंकित सिंह । May 25 2019 3:14PM

सक्रिय राजनीति से लगभग दूर हो चुकीं शीला को कांग्रेस ने चुनाव से ठीक पहले दिल्ली में पार्टी को जिंदा करने की जिम्मेदारी दी।

लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं और 2014 की ही तरह एक बार फिर देश भर में मोदी लहर देखने को मिली है। राजधानी दिल्ली की भी राजनीति इस बार खास रही और लगातार जीत की हुंकार भरने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी गर्दिश में चली गई। राजधानी दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा और 2015 विधानसभा में 70 में से 67 सीट जीतकर सत्ता में आनेवाली आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर रही। आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सात सीटों में से सिर्फ दो पर ही दूसरे स्थान पर रहे जबकि एक सीट पर अपनी जमानत भी जब्त करवा बैठे। विधानसभा के हिसाब से बात करे तो 70 में से 65 सीटें ऐसी रहीं जहां भाजपा का दबदबा देखने को मिला वहीं पांच सीटों पर कांग्रेस आगे रही। यह पांच सीट मुस्लिम बहुल इलाका है। यह बात करना इसलिए लाजमी हो जाता है क्योंकि 2020 में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और यह आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं। 

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विधानसभा क्षेत्र में इनकी पार्टी तीसरे नंबर पर रही। आप के बड़े नेता कैलाश गहलोत, राजेंद्र पाल गौतम, गोपाल राय, इमरान हुसैन और सौरभ भारद्वाज के भी विधानसभा क्षेत्र में उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर रही वहीं मनीष सिषोदिया, सतयेंद्र जैन और राखी बिड़ला के क्षेत्र में इनकी पार्टी दूसरे नंबर पर रही। चुनाव से पहले जिस गठबंधन के लिए केजरीवाल ने तमाम कोशिशें कीं, वह सफल भी रहता तो दिल्ली में भाजपा की सेहत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। वोट शेयर की बात करें तो भाजपा को 56.6 फीसदी, कांग्रेस को 22.5 फीसदी और आप को 18.1 फीसदी वोट मिले। इस हार के बाद केजरीवाल खेमे की बेचैनी बढ़ी हुई है क्योंकि अगले साल पार्टी को विधानसभा चुनाव में जाना है। आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने किसी भी संभावित गठबंधन से इनकार करते हुए हार के समीक्षा की बात कही। पार्टी के गोपाल राय ने कहा कि भले ही लोगों ने केंद्र के लिए मोदी को पसंद किया है पर दिल्ली में केजरीवाल का कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोग आप को एक मॉडल पार्टी के रूप में देखते हैं और हम आगे की रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। 

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अब बात कांग्रेस और शीला दीक्षित की करते हैं। सक्रिय राजनीति से लगभग दूर हो चुकीं शीला को कांग्रेस ने चुनाव से ठीक पहले दिल्ली में पार्टी को जिंदा करने की जिम्मेदारी दी। शीला दीक्षित को दिल्ली कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और सहयोग के लिए कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर चार सहयोगी भी दिए गए। उन्होंने पार्टी में जान फूंकने की कोशिश की और उसमे कुछ हद तक उन्हें कामयाबी भी मिली पर वह एक सीट पर भी पार्टी को जीत नहीं दिलवा पाईं। हार के कारण पर बात करते हुए दिल्ली की पूर्व सीएम ने कहा कि शायद हम मोदी लहर को समझने में नाकामयाब रहे और हमसे कुछ गलतियां भी हुई हैं। हालांकि शीला को आप से गठबंधन नहीं करने के फैसले पर थोड़ा भी अफसोस नहीं है। अपने और अन्य उम्मीदवारों के हार पर उन्होंने कहा कि हमने प्रत्याशियों के घोषणा में देर कर दी जिससे की प्रचार के लिए बहुत ही कम समय मिला। विधान सभा चुनाव की तैयारी शुरू किए जाने की बात करते हुए उन्होंने कहा कि हम दूसरे स्य़ान पर रहे और हमें 22.5 फीसदी वोट मिले जो एक अच्छा संकेत है। 

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इन सब के बीच चुनावी जीत से गदगद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को मनोज तिवारी कहते हैं कि लोकसभा की जीत का क्रम विधानसभा की जीत तक जारी रहेगा और कोई भी भाजपा कार्यकर्ता विश्राम नहीं करेगा। उन्होंने 60 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखते हुए कहा कि भाजपा विधानसभा चुनाव में जीतकर राष्ट्रीय राजधानी को केजरीवाल से मुक्त करायेगी। उन्होंने कहा दिल्ली को सर्वश्रेष्ठ बनाने की तैयारी है, अब विधानसभा की बारी है और लोगों को जोड़ रहा मनोज तिवारी है। इन सब के अलावा भाजपा दिल्ली में एक चेहरे को तायार करने की तायारी भी कर रहा है ताकि उसे 2015 की तरह नुकसान ना उठाना पड़े।

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