ममता ने विनिवेश अभियान का किया विरोध, बोलीं- PM मोदी को सभी दलों से करनी चाहिए बात

मुर्शिदाबाद। कई सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) में हिस्सेदारी बेचने या विनिवेश करने संबंधी केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बृहस्पतिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आर्थिक संकट से निपटने के लिए विशेषज्ञों और सभी राजनीतिक दलों से बात करनी चाहिए। बनर्जी ने कहा कि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (सीपीएसयू) में सरकारी हिस्सेदारी बेचकर धन जुटाना केवल अस्थायी राहत प्रदान कर सकता है।
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उन्होंने कहा, ‘‘केन्द्र को छोटे-छोटे कदम उठाने की जगह स्थायी समाधान करना चाहिए। जब तक आर्थिक स्थिरता नहीं होगी, इस तरह के उपाय समाधान नहीं हो सकते हैं।’’ भाजपा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को ‘‘क्या सही है और क्या गलत है, इस पर प्रधानमंत्री को भाषण देने के बजाय’’ बंगाल के विकास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने देश के आर्थिक संकट पर बनर्जी की चिंता को ‘‘मगरमच्छ के आंसू’’ के रूप में बताया।
तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने कहा कि एक निर्वाचित सरकार को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए। देश को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर ‘‘सभी अन्य दलों की भी राय ली जानी चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री को संकट से निपटने के लिए देश में विशेषज्ञों से बात करनी चाहिए और एक सर्वदलीय बैठक आयोजित करनी चाहिए।’’
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गौरतलब है कि सरकार ने बुधवार को निजीकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पेट्रोलियम क्षेत्र की प्रमुख कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. (बीपीसीएल), पोत परिवहन कंपनी भारतीय जहाजरानी निगम (एससीआई) और माल ढुलाई से जुड़ी कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकॉर) में सरकारी हिस्सेदारी बेचने को मंजूरी दे दी। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की चुनिंदा कंपनियों में हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत से नीचे लाने को मंजूरी दी है।
बनर्जी ने कहा कि पीपीपी मॉडल में निजी भागीदारी को अनुमति विशिष्ट क्षेत्रों में दी जा सकती है, जैसा कि उन्होंने रेल मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान किया था। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों को बेचना एक सही फैसला नहीं है। बनर्जी ने पूछा, ‘‘अगर केंद्र सब कुछ बेच देता है, तो सरकार के पास क्या बचेगा?’’ कई पीएसयू बैंकों का विलय किए जाने संबंधी केंद्र के फैसले पर सवाल उठाते हुए, मुख्यमंत्री ने कहा कि यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) का दो अन्य बैंकों के साथ विलय राज्य सरकार के लिए समस्याएं खड़ी करेगा।
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उन्होंने कहा, ‘‘हमारी सरकार की कई योजनाएं बैंकों के माध्यम से चलती हैं, इसलिए यदि यूबीआई के मुख्यालय को राज्य से बाहर स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो इन योजनाओं के भविष्य पर सवाल खड़े हो सकते हैं।’’ बनर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रोजगार सृजन और लोगों के हित में रास्ता निकालने के लिए सभी राजनीतिक दलों से बात करनी चाहिए। वर्ष 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के केंद्र सरकार के फैसले की फिर से आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘भारत एक ऐसा देश है जहां नकदी रहित समाज प्रभावी नहीं हो सकता।’’
बनर्जी के बयान पर आपत्ति जताते हुए भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि मुख्यमंत्री को अपने शासन से संबंधित मामलों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। घोष ने कहा, ‘‘वह अपने राज्य को तो समुचित ढंग से चला नहीं सकती है और उन्हें दूसरों को भाषण देने की आदत है। पिछले आठ वर्षों में, उन्होंने राज्य के औद्योगिक विकास के लिए क्या किया है? वह डेंगू के खतरे से तो निपट नहीं पाती है, लेकिन उन्हें अर्थव्यवस्था की चिंता है।’’
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माकपा ने हालांकि केन्द्र के विनिवेश अभियान की निंदा की है लेकिन आर्थिक संकट को लेकर बनर्जी की चिंता को ‘‘मगरमच्छ के आंसू’’के रूप में बताया। माकपा के नेता सुजन चक्रवर्ती ने दावा किया, ‘‘हम भी चाहते हैं कि निर्णय को वापस लिया जाये। लेकिन बनर्जी का विरोध सिवाय मगरमच्छ के आंसू के, कुछ भी नहीं है क्योंकि सरकार के स्वामित्व वाली कई कंपनियों को उनकी सरकार ने बेच दिया है।’’
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