Matrubhoomi: दुर्गाबाई देशमुख ने संविधान सभा में उठाई थी महिलाओं के हक की आवाज

Durgabai Deshmukh
प्रतिरूप फोटो
Prabhasakshi Image

दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई, 1909 को सामाजिक कार्यकर्ता बीवीएन रामा राव और उनकी पत्नी कृष्णावनम्मा के घर पर आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में हुआ। परिवार की आर्थिक स्थिति बदहाल होने के बाद भी दुर्गाबाई देशमुख पर उनके पिता की निःस्वार्थ सामाजिक सेवा की भावना का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपने पिता से सीख लेते हुए नि:स्वार्थ सेवा की।

दुर्गाबाई देशमुख एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने न सिर्फ़ देश की सेवा की बल्कि कानून की पढ़ाई कर महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ भी उठाई और उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास किया।

बाल विवाह के खिलाफ रहीं दुर्गाबाई देशमुख का विवाह मात्र 8 साल की उम्र में एक जमींदार के साथ करा दिया गया था। लेकिन उन्होंने गृहस्थ जीवन शुरू करने से पहले ही 15 साल की उम्र में शादी को समाप्त कर दिया था। बाल विवाह से ख़ुद को आज़ाद करने के बाद दुर्गाबाई देशमुख ने भारत को आज़ाद कराने की संग्राम में ख़ुद को झोंक दिया।

दुर्गाबाई देशमुख महात्मा गांधी की सबसे बड़ी प्रशंसकों में से एक थीं। उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान में स्वेदेशी को अपनाया था और इसमें उन्हें उनके पूरे परिवार का साथ मिला था। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: चाचा का दिमाग और साबू की शक्ति के सामने नहीं टिक पाते अच्छे-अच्छे, कॉमिक की दुनिया के बेताज बादशाह हैं 'चाचा चौधरी' 

कौन हैं दुर्गाबाई देशमुख ?

दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई, 1909 को सामाजिक कार्यकर्ता बीवीएन रामा राव और उनकी पत्नी कृष्णावनम्मा के घर पर आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में हुआ। परिवार की आर्थिक स्थिति बदहाल होने के बाद भी दुर्गाबाई देशमुख पर उनके पिता की निःस्वार्थ सामाजिक सेवा की भावना का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपने पिता से सीख लेते हुए नि:स्वार्थ सेवा की और अपना विवाह समाप्त करने के बाद उन्होंने महिलाओं के उद्धार का रास्ता अख्तियार किया। उन्होंने देवदासी प्रथा का विरोध किया और महिलाओं के लिए हिंदी पाठशालाएं चलाई।

महात्मा गांधी से प्रभावित होने के बाद उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का मन बनाया और कांग्रेस सेविका बन गईं। उनके भीतर कुशल नेतृत्व और भाषण देने की कला थी। इसी वजह से उन्हें जॉन ऑफ आर्क भी कहा जाता था।

कालकोठरी में बदल गई थी जिंदगी

देश में जब नमक सत्याग्रह चल रहा था उस वक्त स्वतंत्रता सेनानी टी प्रकाशन के गिरफ्तार होने के बाद दुर्गाबाई देशमुख ने मद्रास में नमक सत्याग्रह की जिम्मेदारी संभाली थी। अपने जीवनकाल में कई बार जेल गईं दुर्गाबाई देशमुख को अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और 3 साल के लिए कालकोठरी में कैद कर दिया।

कालकोठरी में वक्त गुजारते समय दुर्गाबाई देशमुख को महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के बारे में जानकारी मिली। उस वक्त उन्हें पता चला था कि बिना किसी अपराध के अशिक्षित महिलाओं को सजा काटनी पड़ रही है और ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि महिलाओं के हक की आवाज कोई नहीं उठा रहा था। जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई करने का दृढ़ निश्चय किया और सजा काटने के बाद उन्होंने अपना ध्यान राजनीति से हटाकर अपनी पढ़ाई पर लगाया। इस दौरान उन्होंने कानून की पढ़ाई की। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: हरित क्रांति के जनक हैं एम.एस. स्वामीनाथन, देश को अकाल से उबारने और किसानों को सशक्त बनाने में निभाई थी अहम भूमिका 

साल 1942 में एक तरफ देश में भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था और उसी वक्त दुर्गाबाई देशमुख को मद्रास वकील संघ में नौकरी मिल गईं। जिसके बाद उन्होंने विधवा और अनाथ महिलाओं के लिए साक्षरता कार्यक्रम की शुरुआत की। इसी तरह के कार्यक्रमों के चलते उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की जो आज भी महिला सशक्तिकरण की दिशा पर काम कर रहा है।

संविधान निर्माण में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

साल 1946 में दुर्गाबाई देशमुख मद्रास प्रांत से भारत की संविधान सभा की सदस्य चुनी गई। वह संविधान सभा में अध्यक्षों के पैनल में अकेली महिला थीं। दुर्गाबाई देशमुख ने अनाथ बच्चों, शिक्षा का प्रसार और महिला अधिकारों की बात संविधान सभा में प्रमुखता से रखी थी। उन्होंने संविधान में कहा था कि जब संविधान वन्य पशुओं और पक्षियों के बारे में सोच सकता है तो अनाथ बालकों अथवा युवकों के संरक्षक और उनकी शोषण मुक्ति के बारे में क्यों नहीं सोच सकता है।

दुर्गाबाई देशमुख ने बतौर अस्थायी सांसद संविधान सभा में कम-से-कम 750 संशोधन प्रस्ताव रखे थे। उनके बार-बार हस्तेक्षेप करने पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने उनकी चुटली लेते हुए कहा था कि यह एक ऐसी महिला है, जिसके जूड़े में शहद की मक्खी है।

आजाद भारत में दुर्गाबाई देशमुख संसद के लिए निर्वाचित नहीं हो पाईं। जिसके बाद उन्हें योजना आयोग में शामिल कराया गया। इसके बाद साल 1953 में केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड का गठन किया गया। दुर्गाबाई देशमुख इसकी पहली अध्यक्षा भी रही हैं। इसके बाद 1958 में भारत सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद की पहली अध्यक्ष बनीं। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: क्या है पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास और स्वशासन प्रणाली का असल लक्ष्य ? इसको कैसे मिला संवैधानिक दर्जा 

44 साल की उम्र में की दूसरी शादी

बाल विवाह के खिलाफ जीवनभर पुरजोर तरीके से अपनी आवाज बुंलद करने वाली दुर्गाबाई देशमुख ने पिता औऱ भाई की सहायता से खुद का बचपन सुधारते हुए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में झोंक दिया और महिला सशक्तिकरण की दिशा पर अपने कदम आगे बढ़ा दिए। इसके बाद उन्होंने 44 साल की उम्र में अपने जीवनशादी को चुना। आपको बता दें कि साल 1953 में दुर्गाबाई देशमुख ने चिंतामन देशमुख के साथ सात जन्मों के बंधन में बंध गईं। चिंतामन देशमुख भारतीय रिजर्व बैंक के पहले गवर्नर थे और आगे चलकर देश के वित्त मंत्री भी बने।

दुर्गाबाई देशमुख 9 मई, 1981 को अपने देह को अलविदा कहकर चली गईं। भले ही आज दुर्गाबाई देशमुख हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्यों के दम पर भारत और भी ज्यादा खूबसूरत बन सका।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़