अब अखिलेश से दूरी बना रहे हैं शिवपाल, विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति शुरू
प्रसपा के सूत्र बताते हैं कि कानपुर की दस विधानसभा सीटों के लिए प्रभावशाली प्रत्याशियों पर मंथन किया जा रहा है। कई प्रभावशाली चेहरे तो पार्टी दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। प्रसपा अब बिना समाजवादी पार्टी गठबंधन के चुनाव लड़ने की तैयारी काफी मजबूती से कर रही है।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में जब भी किसी चुनाव की डुगडुगी बजती है,सबसे पहले एक ही सवाल राजनैतिक गलियारों में पूछा जाने लगता है कि क्या अबकी बार समाजवादी चाचा-भतीजे अपनी पुरानी अदावत भुलाकर एक हो जाएगें। यह सिललिसा 2017 से चल रहा है और आज तक बदस्तूर जारी है। अगले वर्ष होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भी यही चर्चा छिड़ी हुई है कि क्या चाचा-भतीजे एकजुट होकर विरोधी दलों का मुकाबला करेगें। यह चर्चा ऐसे ही नहीं छिड़ जाती है,इसको अक्सर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव हों या फि उनके चचा और प्रगतिशील समाजवादी के अध्यक्ष शिवपाल यादव की तरफ से ही मीडिया के हवाले से हवा दी जाती है। वैसे, चचा-भतीजे के बीच संबंध नहीं सुधर पा रहे हैं उसके लिए राजनैतिक पंडित अखिलेश यादव को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं।
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हालात यह है कि अखिलेश, समाजवादी पार्टी संस्थापक और पार्टी के पूर्व अपने पिता मुलायम सिंह यादव की इच्छा का भी सम्मान नहीं रख रहे हैं,जो चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिवपाल को न केवल समाजवादी पार्टी में शामिल किया जाए,बल्कि उनको पूरा सम्मान भी मिले। जहां तक बात प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव की है तो वह लगातार कह रहे हैं कि वह भतीजे अखिलेश के साथ मिलकर यूपी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। हाल यह था कि चाचा उम्मीद लगाए बैठे हैं कि भतीजे की तरफ गठबंधन के लिए बुलावा आएगा, लेकिन भतीजे की तरफ से चाचा को किसी तरह का महत्व नहीं मिल रहा है। यही वजह है गठबंधन के सहारे में बैठे प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव चुनावी तैयारियों में अन्य दलों से पिछड़ते जा रहे थे। प्रसप के अंदर से भी मांग उठने लगी है कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन के सहारे बैठे रहने से पार्टी को बड़ा नुकसान होगा। उधर,प्रसपा प्रमुख भी यह बात समझने लगे हैं। इसी के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) ने अपनी चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं। प्रसपा ने पूरे शहर में बड़ी संख्या में होर्डिंग लगवा दी हैं। प्रसपा की इन होर्डिंग में जनता से किए गए वादों की लिस्ट भी प्रकाशित की गई है।
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प्रसपा के सूत्र बताते हैं कि कानपुर की दस विधानसभा सीटों के लिए प्रभावशाली प्रत्याशियों पर मंथन किया जा रहा है। कई प्रभावशाली चेहरे तो पार्टी दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। प्रसपा अब बिना समाजवादी पार्टी गठबंधन के चुनाव लड़ने की तैयारी काफी मजबूती से कर रही है। बात प्रसपा की कि जाए तो उसकी तरफ से विधानसभा और वार्ड प्रभारियों को भी बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी गईं हैं। विधानसभा प्रभारी और वार्ड प्रभारी जनता की समस्याओं को सुन रहे हैं। इसके बाद उन समस्याओं को लेकर अधिकारियों के पास जा रहे हैं, और उसका निस्तारण करा रहे हैं।
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प्रसपा की होर्डिंग में जनता से जो वादे किए गए हैं,उसमें कहा गया है कि यदि प्रदेश में सपा की सरकार बनती है, तो 300 यूनिट बिजली फ्री कर दी जाएगी। प्रत्येक परिवार में एक बेटा और बेटी को सरकारी नौकरी दी जाएगी। प्रत्येक गरीब परिवार को दो कमरों का आवास दिया जाएगा। शिक्षामित्रों और संविदा कर्मियों का समायोजन किया जाएगा। बुजुर्ग, विधवा और बेरोजगारों को सम्मानजनक पेंशन दी जाएगी। इसके साथ ही पुरानी पेंशन की बहाली की जाएगी। प्रसपा ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी तेजी से पकड़ बना रही है। युवा किसान पार्टी के लिए रीढ़ की हड्डी साबित हो रहे हैं। इन युवा किसानों को ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रसपा कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आंदोलन को बड़ा मुद्दा बना रही है। सरकार की जन विरोधी नीतियों से ग्रामीणों को अवगत करा रहे हैं। लब्बोलुआब यह है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया) अपने आप को इतना मजबूत कर लेना चाहती है कि उसके साथ समझौते के लिए तमाम दलों के नेता स्वयं ही आगे आएं।प्रसपा नेता अपने को छोटे दलों की भेड़ चाल में शामिल नहीं करना चाहती है,लेकिन मजबूरी यह है कि प्रसप का वोट बैंक ही तैयार नहीं हो पा रहा है।
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