लखीमपुर हिंसा: एसआईटी जांच की निगरानी पूर्व न्यायाधीश राकेश कुमार जैन करेंगे

Lakhimpur Kheri

शीर्ष अदालत की पीठ ने इसके साथ ही एसआईटी का पुनर्गठन करने और आईपीएस अधिकारियों - एसबी शिराडकर, पद्मजा चौहान और प्रीतिंदर सिंह को एसआईटी में शामिल करने का आदेश दिया। पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं।

नयी दिल्ली|  लखीमपुर खीरी हिंसा की ‘निष्पक्ष, युक्तिपूर्ण और न्यायोचित’ जांच के लिए कृत संकल्प उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन को उत्तर प्रदेश एसआईटी की जांच की निगरानी के लिए नियुक्त किया।

एसआईटी में तीन ऐसे आईपीएस अधिकारी भी शामिल किये गए हैं, जो राज्य के मूल निवासी नहीं हैं।

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प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि इस तरह के अपराधों की जांच करते वक्त न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए।’’

पीठ ने इसके साथ ही एसआईटी का पुनर्गठन करने और आईपीएस अधिकारियों - एसबी शिराडकर, पद्मजा चौहान और प्रीतिंदर सिंह को एसआईटी में शामिल करने का आदेश दिया। पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि महाराष्ट्र से 1993 बैच के आईपीएस अधिकारी और वर्तमान में उत्तर प्रदेश में एडीजी खुफिया के रूप में कार्यरत शिराडकर एसआईटी के प्रमुख होंगे।

न्यायालय ने कहा, ‘‘इस प्रकार हम आपराधिक न्याय प्रणाली में लोगों के विश्वास और भरोसे को बनाए रखने के लिए एसआईटी का पुनर्गठन करना उचित समझते हैं। इसके अलावा, अपराध के पीड़ितों को सम्पूर्ण न्याय का आश्वासन देने के लिए हम यह आदेश देने के पक्ष में हैं कि चल रही जांच की निगरानी एक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाए, जिनकी जड़ें उत्तर प्रदेश में नहीं हैं।’’

पीठ ने कहा, इसलिए हम जांच की निगरानी के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राकेश कुमार जैन को नियुक्त करते हैं, ताकि लखीमपुर खीरी मामले की जांच के नतीजे में पारदर्शिता और पूर्ण निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।’’ इस कांड की जांच समयबद्ध तरीके से की जानी है।

निष्पक्ष और न्यायसंगत जांच की आवश्यकता पर जोर देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच के प्रारंभिक चरण को देखते हुए, वह मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि इससे इसमें शामिल पक्षों और अभियोजन एजेंसी के साथ-साथ अदालतें भी प्रभावित होंगी।

पीठ ने जांच की निगरानी के लिए पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति और एसआईटी में नये सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव करते हुए कहा, यह अदालत उस घटना की निष्पक्ष, न्यायसंगत और सम्पूर्ण जांच की गारंटी देने के बारे में समान रूप से चिंतित है, जिसके परिणामस्वरूप प्रदर्शनकारियों के साथ-साथ कुछ अन्य लोगों के जीवन का दुखद अंत हुआ है।

उत्तर पद्रेश सरकार ने पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति और एसआईटी के पुनर्गठन के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की, जिसे जांच को तेजी से पूरा करने और आरोपपत्र दाखिल करने के लिए सभी प्रयास करने को कहा गया है।

शीर्ष अदालत ने कहा, “उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह जांच की निगरानी करने वाले पूर्व न्यायाधीश को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के बराबर (पेंशन घटाकर) सभी अनुलाभ, सुविधाएं, परिलब्धियां, सचिवीय सहायता और अन्य संबंधित आवश्यकताएं पूरी करे।’’

न्यायालय ने मामले की सुनवाई आरोपपत्र दाखिल होने के बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश की ओर से स्थिति रिपोर्ट दाखिल किये जाने तक के लिए स्थगित कर दी।

इस मामले में अभी तक हुई जांच की गति, उसके तौर-तरीके एवं परिणाम को लेकर नाखुशी जताते हुए शीर्ष अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि मौजूदा एसआईटी में मध्यम/अधीनस्थ स्तर के पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया था और इसके अनुरूप इसने एसआईटी के प़ुनर्गठन का आदेश दिया।

आदेश में कहा गया है, हमें ऐसा प्रतीत होता है कि जांच करने में उनकी कथित प्रतिबद्धता और ईमानदारी के बावजूद इस तरह की जांच की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के संबंध में अब भी एक संदेह बना हो सकता है। इसलिए, हम सीधे भर्ती हुए आईपीएस अधिकारियों के साथ एसआईटी के पुनर्गठन का निर्देश देना उचित समझते हैं, जो उत्तर प्रदेश से संबंधित नहीं हैं।’’

आदेश के मुताबिक, नवगठित एसआईटी न्यायमूर्ति जैन की निरंतर निगरानी में चल रही जांच को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाने के लिए सहायता लेने या स्थानीय अधिकारियों को शामिल करने के लिए स्वतंत्र होगी।

उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 नवंबर को उच्चतम न्यायालय के इस सुझाव पर सहमति जताई थी कि राज्य एसआईटी की जांच की निगरानी के लिए उसकी पसंद के एक पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त किया जा सकता है।

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इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसे कोई भरोसा नहीं है और वह नहीं चाहता कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक सदस्यीय न्यायिक आयोग लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की जांच जारी रखे।

लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया-बनबीरपुर मार्ग पर हुई हिंसा की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को राज्य सरकार ने पहले नामित किया था।

पीठ ने कहा था, हम दिन-प्रतिदिन जांच की निगरानी के लिए एक अलग उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करने के इच्छुक हैं और फिर देखते हैं कि अलग-अलग आरोप पत्र कैसे तैयार किए जाते हैं।

पीठ की ओर से न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के दो पूर्व न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति रंजीत सिंह और न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन के नामों का सुझाव दिया था और कहा था कि वे आपराधिक कानून के क्षेत्र में अनुभवी हैं और मामलों में आरोप पत्र दाखिल किये जाने तक एसआईटी जांच की निगरानी करेंगे।

पुलिस इस मामले में अब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 13 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है।

शीर्ष अदालत तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें किसानों के प्रदर्शन के दौरान चार किसान सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी।

लखीमपुर खीरी में काफिले में शामिल एक एसयूवी द्वारा चार किसानों को उस वक्त कुचल दिया गया था, जब केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे एक समूह ने तीन अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की यात्रा के खिलाफ प्रदर्शन किया।

गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर दो भाजपा कार्यकर्ताओं और एक चालक की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी और हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की मौत हो गई थी।

उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की एसआईटी जांच की निगरानी, उच्चतम न्यायालय की पसंद से नियुक्त एक पूर्व न्यायाधीश से कराने के उसके सुझाव पर 15 नवंबर को सहमति जताई थी।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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