पारम्परिक कृषि व बीज संरक्षण में करें योगदान : आर्लेकर

Arlekar

राज्यपाल ने कहा कि पहले उद्योगों की आवश्यकतओं को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम तैयार किये जाते थे और इसी अनुसार शिक्षा पद्धति आगे बढ़ रही थी। लेकिन, आज समाज की क्या जरूरत है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है और शिक्षा को भी इसी दिशा में आगे ले जाना है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा परिवर्तन आया है।

धर्मशाला  राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने पारम्परिक कृषि के साथ-साथ स्थानीय बीजों के विकास और संरक्षण की दिशा में भी कार्य करने पर बल दिया है। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में आज विभावध्यक्षों और विद्यार्थियों के साथ संवाद करते हुए राज्यपाल ने कहा कि पहले उद्योगों की आवश्यकतओं को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम तैयार किये जाते थे और इसी अनुसार शिक्षा पद्धति आगे बढ़ रही थी। लेकिन, आज समाज की क्या जरूरत है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है और शिक्षा को भी इसी दिशा में आगे ले जाना है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा  परिवर्तन आया है। इसी अनुरूप हमें भी अनुसंधान और पाठ्यक्रम भी बदलना जरूरी है।

आर्लेकर ने कहा कि पारम्परिक कृषि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय को औषधीय पौधों को बढ़ावा देने के लिये कुछ विद्यालयों को अपनाने के निर्देश दिए।  उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों में औषधीय पौधों की गुणवत्ता के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये। राज्यपाल ने इस मौके पर युवाओं में बढ़ते नशे पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि नशे के खिलाफ अभियान में हम सबको मिलकर लड़ना है।

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राज्यपाल ने कहा कि पारम्परिक बीजों का संरक्षण किया जाना चाहिये और पंचायत स्तर पर जैवविविधता रजिस्टर बनने चाहिये।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एच. के. चौधरी ने राज्यपाल का स्वागत किया और विश्वविद्याल की गतिविधियों व उपलब्धियों से अवगत करवाया। डॉ जी. सी. नेगी कॉलेज ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंस के डीन डॉ मनदीप शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इससे पूर्व, राज्यपाल ने वेटरनरी कॉलेज का दौरा किया और पशुओं के लिए उपलब्ध करवाई जा

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