शाह की नजर मिशन कश्मीर पर, अपना पुराना वादा निभाएगी बीजेपी!

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अभिनय आकाश । Jun 29 2019 5:17PM

इतिहास पर गौर करें तो आर्टिकल 370 के विरोध में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1952 में एक नारा दिया था ‘एक देश, दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे। जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे के विरोध में जनसंघ संस्थापक द्वारा लगाये गये इस नारे के 67 साल बाद इसकी ओर कदम बढ़ाने के संकेत गृह मंत्री ने अपने वक्तव्य के जरिए दिये हैं।

साल था 1953 जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधान के तहत भारत सरकार की अनुमति के बिना कोई जम्मू कश्मीर की सीमा में दाखिल नहीं हो सकता था। 52 वर्षीय एक नेता इसके खिलाफत में मुखर होकर सामने आए जिनका नाम था श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उन्होंने कश्मीर के लिए रवानगी भरी। जम्मू-कश्मीर सरकार ने राज्य में प्रवेश करने पर मुखर्जी को 11 मई 1953 को हिरासत में ले लिया। मुखर्जी के साथ उस वक्त एक और नेता मौजूद थे जो आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री भी रहे नाम था भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तब के युवा नेता अटल बिहारी वाजपेयी से कहा कि तुम वापस जाओ और देश भर में इस विषय को बताओ कि अपने ही देश के एक भाग में जाने पर मुझे हिरासत में ले लिया गया। ठीक बारह दिन बाद यानि 23 जून 1953 को जेल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी तरीके से मौत हो जाती है। वक्त बीतता है और इस बदलते वक्त के साथ तिलक के प्रभाव और जनमानस के दबाव तले 2 सीटों वाली पार्टी उम्मीदों, आशाओं और वादों की पूर्ति की आकांक्षा के साथ प्रचंड बहुमत हासिल कर देश के तख्त पर विराजमान होती है।

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साल 2018 भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के मौके पर जम्मू कश्मीर के दौरे पर थे और राष्ट्रवाद के मुद्दे को प्रखरता से उठाते हुए शाह ने यह साफ संकेत दे दिए थे कि भाजपा धारा 370 और आर्टिकल 35 ए को लेकर आर-पार के मूड में है। मोदी सरकार पार्ट-2 के गठन के बाद अमित शाह देश के गृह मंत्री बनते हैं। अमित शाह कुछ अलग तरह के गृह मंत्री हैं और पारंपरिक राजनीति में विश्वास नहीं रखते हैं। जम्मू कश्मीर की समस्या पर वर्तमान सरकार के नजरिए को स्पष्टता से रखते हुए अमित शाह ने सदन में साफ कर दिया कि एकता अखंड और संप्रुभता के सूत्र में भारत को बांधना है और इसमें धारा 370 सबसे बड़ी अड़चन है। अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को टॉप एजेंडे में रखा है। दो दिनों के अपने दौरे से लौटने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने धारा 370 को एक अस्थाई व्यवस्था करार दिया है। शाह ने  कहा कि 370 हमारे संविधान का अस्थायी मुद्दा है और ये शेख अब्दुल्ला साहब की अनुमति से ही हुआ है। लोकसभा में अपने पहले संबोधन में गृह मंत्री ने कश्मीर को ही प्रमुख एजेंडे में रखते हुए पहले राष्ट्रपति शासन को 6 महीने तक और बढ़ाने का प्रस्ताव रखा फिर जम्मू-कश्मीर आरक्षण विधेयक पेश करते हुए लोकसभा से पारित करवा लिया। 

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इतिहास पर गौर करें तो आर्टिकल 370 के विरोध में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1952 में एक नारा दिया था ‘एक देश, दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे। जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे के विरोध में जनसंघ संस्थापक द्वारा लगाये गये इस नारे के 67 साल बाद इसकी ओर कदम बढ़ाने के संकेत गृह मंत्री ने अपने वक्तव्य के जरिए दिये हैं।  

कैसे धारा 370 जम्मू को विशेष राज्य बनाती है

धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है व किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति की जरूरत पड़ती है। इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।

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धारा 370 की बड़ी बातें

जम्मू कश्मीर के पास अपना अलग झंडा है। इसके अलावा यहां के नागरिकों को दोहरी नागरिकता भी हासिल होती है। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाएगी। यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती है, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं। धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में सूचना का अधिकार (आरटीआई) लागू नहीं होता।

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