कांग्रेस के पावर सेंटर में ''भाई'' की वापसी से राहुल खेमा चिंतित, माने जाते हैं रामबाण

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राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने के साथ ही युवाओं को अपनी कमेटी में शामिल किया। इस कमेटी का नेतृत्व कहीं न कहीं प्रियंका गांधी के हाथों में था वह पार्टी को पीछे से चलाती थी और राहुल सामने से।

देश की सबसे बड़ी पार्टी का तमगा गंवाने वाली कांग्रेस में अब 'भाई' की वापसी हो गई है। जो लोग कांग्रेस को करीबी से देखते आए हैं वो जानते हैं कि 'भाई' किसे कहते हैं। लेकिन हम आपको बता देते है कि भाई का रुतबा कांग्रेस पार्टी में अहमद पटेल को दिया गया है। पार्टी के भीतर सभी उन्हें भाई के नाम से ही जानते हैं। 

भाई गए ही कब थे ?

राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने के साथ ही युवाओं को अपनी कमेटी में शामिल किया। इस कमेटी का नेतृत्व कहीं न कहीं प्रियंका गांधी के हाथों में था वह पार्टी को पीछे से चलाती थी और राहुल सामने से। सोनिया गांधी के सबसे विश्वासपात्र नेता अहमद पटेल का दबदबा तो हमेशा ही देखा गया है लेकिन राहुल के कमान संभालने के बाद वह हाशिए पर चले गए। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष के विश्वासपात्र के तौर पर अशोक गहलोत को देखा जाने लगा था।

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चाहे कोई भी मुद्दा हो या विषय राहुल गांधी अपनी नई टीम के साथ राय-मशविरा करने के बाद ही निर्णय लेते थे और ऐसा कभी भी नहीं देखा गया कि वह अहमद पटेल को महत्व दे रहे हो। लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम सामने आने के बाद राहुल गांधी ने हार की जवाबदारी लेते हुए जैसे ही अध्यक्ष पद छोड़ा, मानो अहमद पटेल की साख वापस लौटने लगी।

हर निर्णय में शामिल होते हैं पटेल

कांग्रेस अध्यक्ष पद खाली रहा। वरिष्ठ नेता सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाते रहे और चर्चाएं हुईं। लेकिन अध्यक्ष नहीं मिला जो गांधी परिवार का विश्वसनीय हो और साथ ही सभी नेताओं को एकजुट करके रख सकें। ऐसे में सभी ने मिलकर निर्णय लिया कि अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया जाए। ऐसे में इसकी जिम्मेदारी कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंपी गई। जैसे ही सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्षा बनीं ठीक वैसे ही अहमद पटेल की पावर वापस आ गई।

कांग्रेस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अब पार्टी में अहमद पटेल की राय और मर्जी के बिना एक पत्ता भी डोलते हुए नहीं दिखता। सबसे ज्यादा दहशत में तो वह लोग हैं जो राहुल गांधी के बेहद करीबी थे और ऐसा इसलिए है क्योंकि वह लोग अहमद पटेल को नजरअंदाज करने लगे थे।  

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संकटमोचक हैं अहमद पटेल

जब पार्टी किसी परिस्थिति में उलझ जाती है या फंस जाती है तब अहमद पटेल की मदद ली जाती है। वैसे तो कांग्रेस अध्यक्ष के बाद पार्टी में हमेशा से ही अहमद पटेल सबसे ज्यादा ताकतवर दिखाई दिए हैं। लेकिन अध्यक्ष भी बिना पटेल की राय लिए कोई निर्णय नहीं लेते हैं। अब कहा जा रहा है कि पटेल ही पार्टी को कोई सुझाव दे सकते हैं जिससे पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सकेगी।

राहुल के करीबियों के लिए संकट का समय

मिली जानकारी के मुताबिक अहमद पटेल की वापसी के साथ ही धीरे-धीरे राहुल गांधी की टीमों को हटाया जा रहा है और ताकत वापस से वरिष्ठ नेताओं और अनुभवी लोगों की तरफ मुड़ती हुई देखी जा सकती है। फिलहाल दूर-दूर तक इसके आसार भी नहीं दिखाई दे रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराए जाएंगे और ऐसे में सोनिया गांधी का कार्यकाल काफी लंबा चलने वाला है।

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2024 से पहले नहीं हो सकती राहुल की वापसी

2019 में हार की जिम्मेदारी लेने वाले राहुल ने स्वेच्छा से कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान छोड़ी थी। जिसके बाद पार्टी के सभी महत्वपूर्ण फैसलों का जिम्मा अब सोनिया गांधी ने उठाया है। आपको बता दें कि राहुल गांधी के बेहतर भविष्य के लिए पार्टी ने साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को सोनिया गांधी के नेतृत्व में लड़ने की बात कही है। अगर ऐसा हुआ तो राहुल गांधी को थोड़ा वक्त मिल जाएगा संभलने का और अपनी मजबूत वापसी करने का।

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