रेलवे में ठेकेदार के लिए काम करने वाले कर्मियों को नहीं मिली अप्रैल की तनख्वाह, खाने के लाले पड़े

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करीब डेढ़ साल पहले बिहार के छपरा में एक हादसे में राकेश राम के पैर की हड्डी टूट गई थी और डॉक्टरों को पैर में 12 इंच की रॉड डालनी पड़ी थी। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के रखरखाव यार्ड में ट्रेनों की सफाई का काम करने वाले 24 साल के राम ने कहा, यह रॉड दो साल बाद निकाली जाती।

नयी दिल्ली। करीब डेढ़ साल पहले बिहार के छपरा में एक हादसे में राकेश राम के पैर की हड्डी टूट गई थी और डॉक्टरों को पैर में 12 इंच की रॉड डालनी पड़ी थी। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के रखरखाव यार्ड में ट्रेनों की सफाई का काम करने वाले 24 साल के राम ने कहा, यह रॉड दो साल बाद निकाली जाती। मैं बहुत दूर तक पैदल नहीं चल सकता हूं। इसमें बहुत तकलीफ होती है। वह दर्द निरोधक दवा लेकर काम पर जाता है। शीतलपुर गांव में उसकी पत्नी गर्भवती है और कुछ दिनों में वह बच्चे को जन्म देने वाली है। पिछले महीने राम ने अपनी पत्नी को छह हजार रुपये भेजे थे। उसने निजी ठेकेदार के लिए काम करके 12,000 रुपये कमाए थे।

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राम को अप्रैल की तनख्वाह अब तक नहीं मिली है। हमें हर महीने की 12 तारीख तक वेतन मिल जाता था, लेकिन इस बार अब तक नहीं मिला है... शायद इसलिए कि लॉकडाउन की वजह से कम काम हुआ है। उसने पिछले महीने के वेतन का कुछ हिस्सा अपने दो भाइयों को भी भेजा था, जो दिल्ली-हरियाणा सीमा पर यात्रा प्रतिबंध की वजह से फंस गए थे। उसके भाई बहादुरगढ़ की चप्पल-जूतियां बनाने वाली एक फैक्टरी में काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण वे बेरोजगार हो गए हैं। राम ने कहा कि जब सरकार ने श्रमिक विशेष ट्रेनें शुरू की थीं तो वे घर के लिए निकले थे लेकिन सीमा पर पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। राम ने बताया कि उसने प्रवासी मजदूरों को घर ले जाने के लिए चलाई जा रही विशेष ट्रेन में बैठने के लिए कुछ दिन पहले एक फॉर्म भरा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

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अब थाने वाला कहता है कि घर जाने के लिए राजधानी (एक्सप्रेस) लो। राम ने कहा, उन्होंने राजधानी शुरू की, लेकिन मेरे पास टिकट के लिए 3500 रुपये नहीं थे। हममें से कई जो घर जाना चाहते हैं, वे राजधानी ट्रेन का किराया नहीं भर सकते हैं। वह कहता है, मैं यहां काम करने वाले अपने दोस्तों से भी पैसे उधार नहीं ले सकता हूं क्योंकि उनकी भी यही हालत है। राम समझ नहीं पा रहा है कि रेलवे के लिए काम करने वालों को क्यों राजधानी से घर नहीं भेजा जा सकता है। उसने कहा, इतनी तो मदद मिलना ही चाहिए। I अपनी पत्नी की चिंता करते हुए राम ने कहा, मेरे माता-पिता बुजुर्ग हैं और मेरी पत्नी को देखभाल की जरुरत है। मम्मी चाहती हैं कि हम (तीनों भाइयों में से) कम से कम एक वहां हो। राम के पास अब पैसे नहीं है और रहने के लिए कोई जगह भी नहीं है। पिछले कुछ दिनों से वह यार्ड में सात अन्य के साथ एक कंटेनर में रह रहा है।

राम के सह कर्मी बिहार के बेगुसराय के रहने वाले मोहम्मद अजमद अली को अब भी उम्मीद है कि चीजें सामान्य होंगी और उनके पास घर जाने के लिए पर्याप्त पैसे होंगे। अली ने कहा, अभी मेरी जेब में एक पैसा भी नहीं है। वह कहता है, मैं दो महीनों से काम कर रहा हूं। हमें पिछले महीने तनख्वाह मिली थी। मैं अप्रैल के वेतन का इंतजार कर रहा हूं, फिर मैं घर जाऊंगा। उन्होंने यार्ड में फंसे कर्मियों को कुछ मदद भेजने का आग्रह किया। अली ने कहा, हमें दिन में सिर्फ एक बार खाना मिलता है। हम खाली पेट सोते हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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