VRS लेकर राजनीति में जाने का चलन आम तो नहीं है, लेकिन नया भी नहीं, कई नौकरशाहों ने पॉलटिक्स को बनाया दूसरा करियर

 Asim Arun
अभिनय आकाश । Jan 17 2022 4:14PM

अधिकारियों के वीआरएस लेकर राजनीति में आने का चलन वैसे तो आम तो नहीं है, लेकिन नया भी नहीं है। 2017 के बाद सत्ता में भारी बहुमत से आई बीजेपी में शामिल होने वाले उच्च पदस्थ अधिकारियों की सूची पर गौर करें तो अरुण और राम से पहले भी कई नाम प्रमुखता से सामने आता है।

पांच राज्यों में होने वाले विस चुनाव को लेकर घमासान तेज हो गया है और वोटिंग से पहले राजनेताओं में शिफ्टिंग की होड़ भी लगी है। वैसे तो चुनाव से पहले नेताओं के पार्टियां बदलने की रवायत तो दशकों पुरानी है। लेकिन इन दिनों एक खासा ट्रेंड नौकरशाहों को लेकर भी देखने को मिल रहा है। इसे हवा हालिया दिनों में पूर्व आईएएस अधिकारी राम बहादुर के साथ ही वीआरएस लेने वाले कानपुर के पूर्व पुलिस कमिश्नर असीम अरुण के बीजेपी का दामन थामने के बाद तेज हो गई है। पूर्व आईपीएस के बीजेपी में शामिल होने पर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने आपत्ति जताई है। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने शिकायत तक की बात कह डाली है। अखिलेश ने कहा कि हम चुनाव आयोग से कहेंगे कि बीजेपी के कार्यकर्ता बनकर काम कर रहे अफसरों को हटाएं। अधिकारियों के वीआरएस लेकर राजनीति में आने का चलन वैसे तो आम तो नहीं है, लेकिन नया भी नहीं है। कई नौकरशाहों ने पॉलटिक्स को अपना दूसरा करियर बनाया है। 

इसे भी पढ़ें: अखिलेश पर योगी का हमला, अपराधियों-दंगाइयों को टिकट देकर उन्होंने बता दिया कि यह नई नहीं वही सपा है

2017 के बाद सत्ता में भारी बहुमत से आई बीजेपी में शामिल होने वाले उच्च पदस्थ अधिकारियों की सूची पर गौर करें तो अरुण और राम से पहले पूर्व आईएएस अरविंद कुमार शर्मा और यूपी के पूर्व डीजीपी बृज लाल का नाम प्रमुखता से सामने आता है। अरुण ने उस दिन वीआरएस लेने की घोषणा की थी जिस दिन 8 जनवरी को यूपी चुनाव की अधिसूचना की घोषणा की गई थी। तब से अटकलें लगाई जा रही थीं कि अरुण को पैतृक जिले कन्नौज की एक विधानसभा सीट से भाजपा द्वारा मैदान में उतारा जा सकता है। कन्नौज संसदीय क्षेत्र का समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सुव्रत पाठक ने इस संसदीय सीट से डिंपल यादव को पराजित कर दिया था। अरुण 1994 बैच के आईपीएस अफसर हैं, वह एंटी टेरर स्क्वाड के पूर्व प्रमुख भी रह चुके हैं। वह नई दिल्ली के स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े हैं। वो उसी दलित उप जाति से ताल्लुक रखते हैं, जहां से बसपा सुप्रीमो मायावती आती हैं। असीम के पिता श्रीराम अरुण उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं जिनका कुछ समय पहले निधन हो चुका है। 

मायावती के खास राम बहादुर अब बीजेपी के पास

पूर्व सिविल सेवक राम बहादुर बसपा प्रमुख मायावती के करीबी रहे हैं। लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के रूप में, उन्होंने अवैध अतिक्रमणों पर कार्रवाई सहित कुछ बहुत कठिन निर्णय लिए थे। वो कांशीराम द्वारा स्थापित अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग (एससी, एसटी, ओबीसी) और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी संघ (बामसेफ) के सदस्य रहे हैं। राम बहादुर ने 2017 में मोहनलालगंज से बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। 

बृजलाल से अरुण को मिली प्रेरणा 

अरुण की तरह, पूर्व आईपीएस बृजलाल भी 2017 में यूपी में सत्ता में आने के तुरंत बाद भाजपा में शामिल हो गए थे। वास्तव में, अरुण बृज लाल के कहने पर राजनीति में शामिल हुए थे, जो अब भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं। एक पासी दलित खुद बृजलाल 2010-12 में बसपा प्रमुख मायावती के कार्यकाल के दौरान यूपी डीजीपी भी थे। लेकिन बाद में सेवानिवृत्त आईपीएस बृजलाल को भाजपा ने महत्व दिया और पहले अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग का चेयरमैन बनाया तथा बाद में राज्यसभा में भी भेजा।  

इसे भी पढ़ें: मुट्ठी में गेहूं-चावल लेकर अखिलेश ने लिया भाजपा को हराने का अन्न संकल्प, किए यह बड़े वादे

अरविंद शर्मा और सत्यपाल के भी उदाहरण हैं मौजूद

मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और यूपी के बागपत से लोकसभा सांसद सत्यपाल सिंह भी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। 1980 बैच के महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस सत्यपाल सिंह जनवरी 2014 में वीआरएस लिया था। सत्यपाल सिंह ने बीजेपी ज्वाइन कर ली और 2014 में पार्टी के टिकट पर पश्चिमी यूपी की बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। वो जीते और केंद्र में मंत्री भी बने। 2019 में उन्होंने फिर से लोकसभा का चुनाव जीता। अपनी सेवा अवधि के दौरान, असीम ने सीएम योगी आदित्यनाथ का विश्वास जीता है, जिन्होंने उन्हें कानपुर के पहले पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त करने के लिए चुना था। गुजरात कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1988 बैच के अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा भी पिछले वर्ष वीआरएस लेकर राजनीति में सक्रिय हो गये। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी के साथ करीब दो दशक तक सेवारत रहे शर्मा पिछले वर्ष भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और उन्हें भाजपा ने पहले विधान परिषद का सदस्य और फ‍िर संगठन में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया।  

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़