Begusarai Assembly Seat: BJP के गढ़ बेगूसराय में त्रिकोणीय टक्कर, कांग्रेस और जन सुराज ने तेज की घेराबंदी

बेगुसराय बिहार का एक राजनीतिक केंद्र रहा है। इस सीट पर अक्सर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला देखने को मिलता है। साल 2020 में बीजेपी के कुंदन कुमार ने कांग्रेस प्रत्याशी को सिर्फ 4,554 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी। जिससे यह बिहार में सबसे करीबी मुकाबलों में से एक बन गया था।
बिहार की बेगूसराय विधानसभा सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला बनता नजर आ रहा है। दरअसल, इस सीट से बीजेपी के कुंदन कुमार, कांग्रेस की अमिता भूषण, जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी सुरेंद्र साहनी के बीच मुकाबला होगा। राज्य के बदलते राजनीतिक समीकरणों के साथ इस सीट पर एक बार फिर कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। साल 2020 में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा विधायक कुंदन कुमार ने मामूली अंतर से जीत हासिल की थी। वहीं कांग्रेस की अमिता भूषण और जनसुराज पार्टी के प्रत्याशी सुरेंद्र कुमार सहनी को कड़ी चुनौती मिल सकती है।
बीजेपी उम्मीदवार
बेगुसराय बिहार का एक राजनीतिक केंद्र रहा है। इस सीट पर अक्सर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला देखने को मिलता है। साल 2020 में बीजेपी के कुंदन कुमार ने कांग्रेस प्रत्याशी को सिर्फ 4,554 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी। जिससे यह बिहार में सबसे करीबी मुकाबलों में से एक बन गया था। हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी मजबूत स्थिति में दिख रही है। जिसका संकेत साल 2024 के लोकसभा चुनाव से मिलता है।
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कांग्रेस उम्मीदवार
कांग्रेस पार्टी ने बेगुसराय सीट से पूर्व विधायक अमिता भूषण पर भरोसा जताया है। वहीं अमिता भूषण अपने जमीनी जुड़ाव और कांग्रेस के नए संगठनात्मक प्रयास पर पूरा भरोसा कर रही हैं। हालांकि इससे पहले साल 2015 के विधानसभा चुनाव में और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अमिता भूषण को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा था।
जन सुराज पार्टी उम्मीदवार
इस बार त्रिकोणीय मुकाबला बनाते हुए जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार सहनी भी चुनाव मैदान में हैं। वह युवा और स्वतंत्र मतदाताओं को आकर्षित करके मुकाबले में एक नया मोड़ लाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस बार क्या है माहौल
बिहार की इस सीट पर हमेशा चुनावी मुकाबला रोचक और करीबी रहा है। लेकिन साल 2010 से बेगुसराय सीट भारतीय जनता पार्टी की गढ़ बनी हुई है। साल 2025 के चुनाव में भाजपा को अपने जातीय आधार और शहरी विकास के मुद्दों पर भरोसा है। तो वहीं महागठबंधन के लिए यह सीट एक बड़ी चुनौती बनी है। हालांकि प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी यहां के शिक्षित और युवा वोटरों के बीच जरूर कुछ प्रभाव डालने में सफल हो सकती है।
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