White Collar Terrorism बना नया खतरा, क्या Faridabad की Al-Falah University की प्रयोगशाला का उपयोग RDX तैयार करने के लिए किया जा रहा था?

मुख्य आरोपी डॉ. मुजम्मिल गनई पुलवामा का निवासी और फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था। उसे 30 अक्तूबर को गिरफ्तार किया गया। वह विश्वविद्यालय के हॉस्पिटल में आपातकालीन विभाग संभालता था।
जम्मू-कश्मीर के एक कश्मीरी मेडिकल प्रोफेसर की गिरफ्तारी तथा जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में छापेमारी के दौरान बरामद 2,900 किलो विस्फोटक सामग्री, कई असॉल्ट राइफलें, पिस्तौलें, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, रासायनिक पदार्थ और ज्वलनशील सामग्री इस बात की गवाही दे रहे हैं कि कैसे भारत के खिलाफ एक बड़ी साजिश रची गयी थी। पुलिस सूत्रों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और अंसार गज़वातुल-हिंद (AGuH) से जुड़े एक अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क ने शैक्षणिक और पेशेवर संस्थानों में अपनी जड़ें जमा ली थीं। यह नेटवर्क एनक्रिप्टेड चैनल्स, चैरिटेबल ट्रस्टों और विश्वविद्यालयों के माध्यम से फंड जुटाने, युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और विस्फोटक तैयार करने का काम कर रहा था।
जांच की शुरुआत तब हुई जब 19 अक्तूबर को श्रीनगर के नोगाम इलाके में जैश-ए-मोहम्मद के धमकी भरे पोस्टर मिले। इसी के बाद यूएपीए, एक्सप्लोसिव सब्सटेंसेज एक्ट और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि यह एक “व्हाइट कॉलर टेरर नेटवर्क” था, जिसमें शिक्षित डॉक्टर, प्रोफेसर और छात्र शामिल थे। इन्हें पाकिस्तान सहित कई देशों के आतंकी हैंडलर निर्देश दे रहे थे।
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मुख्य आरोपी डॉ. मुजम्मिल गनई पुलवामा का निवासी और फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था। उसे 30 अक्तूबर को गिरफ्तार किया गया। वह विश्वविद्यालय के हॉस्पिटल में आपातकालीन विभाग संभालता था। पूछताछ में उसके दो किराए के ठिकानों पर छापे मारे गए। पहले ठिकाने से पुलिस ने 358 किलो संदिग्ध अमोनियम नाइट्रेट, एक क्रिन्कोव असॉल्ट राइफल, 83 कारतूस, एक पिस्तौल और बम बनाने का सामान जब्त किया। वहीं दूसरे ठिकाने– देहर कॉलोनी, धौज (फरीदाबाद) से 2,563 किलो अतिरिक्त विस्फोटक और ज्वलनशील पदार्थ, AK-56, बेरेटा और चीनी पिस्तौल सहित हथियार मिले। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, यह “बड़े पैमाने पर आतंकी हमले की योजना” का हिस्सा था।
फरीदाबाद पुलिस प्रवक्ता यशपाल ने बताया कि आरोपी के सहयोगियों और हथियारों की सप्लाई चेन की पहचान की जा रही है। पुलिस ने विश्वविद्यालय के पास की एक मस्जिद से एक मौलवी को भी हिरासत में लिया है। जांच में यह संभावना भी देखी जा रही है कि क्या विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं का उपयोग RDX जैसी उन्नत विस्फोटक सामग्री तैयार करने के लिए किया जा रहा था।
एक अन्य महिला डॉक्टर की कार से भी एक AK-47 राइफल बरामद की गई, जो डॉ. मुजम्मिल गनई से जुड़ी हुई थी। पुलिस ने कहा कि संभवतः उसने अनजाने में अपनी कार उधार दी थी, पर जांच जारी है।
इसी नेटवर्क से जुड़ा एक और डॉक्टर अदील मजीद राथर सहारनपुर से पकड़ा गया। उसकी पूछताछ से धौज स्थित ठिकानों का सुराग मिला। फरीदाबाद पुलिस आयुक्त सतींदर कुमार गुप्ता ने कहा कि यह एक संगठित आतंकी मॉड्यूल था, जिसे हरियाणा और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त कार्रवाई से ध्वस्त किया गया। उन्होंने बताया कि और गिरफ्तारियाँ होने की संभावना है।
उधर, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इसे “बड़ी आतंकवाद-रोधी सफलता” बताते हुए कहा कि यह नेटवर्क अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय था। हम आपको बता दें कि गिरफ्तार आरोपियों में आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर-उल-अशरफ, मकसूद अहमद डार, मौलवी इरफान अहमद, जमीर अहमद अहांगर, डॉ. मुजम्मिल अहमद गनई और डॉ. अदील मजीद राथर शामिल हैं। पुलिस ने कहा कि फंड के स्रोतों और विदेशी कड़ियों की जांच तेजी से की जा रही है।
देखा जाये तो यह मामला केवल एक आतंकी साजिश का पर्दाफाश नहीं, बल्कि भारतीय समाज और शिक्षा जगत के लिए एक गहरी चेतावनी है। डॉ. मुजम्मिल और उसके साथियों की गिरफ्तारी यह स्पष्ट करती है कि आतंकवाद अब सीमाओं या जंगलों तक सीमित नहीं है; वह विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं और अस्पतालों की दीवारों के भीतर भी प्रवेश कर चुका है।
इस प्रकरण की सबसे खतरनाक बात यह है कि इसमें शामिल लोग उच्च शिक्षित पेशेवर हैं। यानि डॉक्टर, प्रोफेसर और छात्र। इनका सामाजिक दर्जा और बौद्धिक क्षमता उन्हें आम लोगों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावशाली बनाती है। जब शिक्षा का उद्देश्य मानवता की सेवा होना चाहिए, तब उसका उपयोग आतंकी नेटवर्कों को तकनीकी और वैचारिक समर्थन देने में किया जा रहा है, यह हमारी शैक्षिक प्रणाली और समाज दोनों की असफलता का संकेत है।
साथ ही इस जांच में सामने आया “व्हाइट कॉलर टेरर नेटवर्क” शब्द आतंकवाद के नए रूप को परिभाषित करता है। पहले जहां आतंकी संगठनों में गरीब, अशिक्षित या सीमांत वर्ग के युवक शामिल पाए जाते थे, अब उनकी जगह उच्च शिक्षा प्राप्त, डिजिटल रूप से दक्ष और आर्थिक रूप से सक्षम युवा ले रहे हैं। ये लोग एनक्रिप्टेड चैनलों, बिटकॉइन और साइबर टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं जो आतंकवाद को और अधिक स्मार्ट, गुप्त और घातक बना देता है।
अल-फलाह यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों में यह नेटवर्क कैसे सक्रिय हुआ, यह शिक्षा नीति निर्माताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय है। विश्वविद्यालय केवल ज्ञान के केंद्र नहीं, बल्कि विचारधाराओं के उत्पादन केंद्र भी होते हैं। जब इन्हें धार्मिक कट्टरता या विदेश-प्रेरित एजेंडों के लिए उपयोग किया जाने लगे, तो यह राष्ट्र सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाता है। जरूरत है कि विश्वविद्यालयों में इंटेलिजेंस सेल्स और निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए ताकि किसी भी संदिग्ध गतिविधि का शीघ्र पता लगाया जा सके।
साथ ही इस मॉड्यूल ने जिस प्रकार से एनक्रिप्टेड संचार, डिजिटल भुगतान और प्रयोगशालाओं का उपयोग किया, वह यह दर्शाता है कि आतंकवाद का चेहरा अब “हाई-टेक” हो गया है। यह अब जंगलों से नहीं, बल्कि लैपटॉप, सर्वर और लेबोरेटरी टेबलों से संचालित होता है। भारत को अब “साइबर-सिक्योरिटी और टेक्नो-इंटेलिजेंस” के क्षेत्र में उतनी ही मजबूती से निवेश करना होगा, जितना वह सीमाओं पर करता है।
देखा जाये तो यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि इस तरह के नेटवर्कों की जड़ों तक पहुँचा जाए, फंडिंग चैनलों को रोका जाए और विदेशी लिंक पर कठोर कार्रवाई की जाए। लेकिन समाज की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। परिवारों, शिक्षकों और धार्मिक संस्थानों को यह सुनिश्चित करना होगा कि युवा वैचारिक चरमपंथ की ओर न मुड़ें।
बहरहाल, डॉ. मुजम्मिल का मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आतंकवाद अब केवल बंदूक या बारूद का खेल नहीं, बल्कि विचार और तकनीक का मिश्रण बन चुका है। जब शिक्षित व्यक्ति आतंकवाद की राह चुनता है, तो उसका प्रभाव केवल एक विस्फोट तक सीमित नहीं रहता—वह समाज की आत्मा को झकझोर देता है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग केवल सीमा पर नहीं, बल्कि क्लासरूम, लैब और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी लड़ी जानी होगी।
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