40 साल बाद खुला राज, आखिर इंदिरा गांधी को इस पुस्तक की क्यूं थी जरूरत ?
टीम प्रभासाक्षी । Oct 24 2021 7:00AM
साल 1982 की बात साझा करते हुए ओम ने बताया कि एक दिन आधी रात को करीब पांच आदमी साउथ एक्सटेंशन स्थित हमारे घर आए। दरवाजा खोला तो पता चला कि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से एक निवेदन लेकर आए हैं।
नयी दिल्ली। अगर आप पुस्तक के शौकीन हैं तो जानते ही होंगे की देश की राजधानी दिल्ली में कई जगह पुस्तक मेले और किताबों के स्टॉल लगते हैं। लेकिन सबसे मशहूर दिल्ली की धड़कन कही जाने वाली मार्केट कनॉट प्लेस में दुकानों के बीच वैरायटी बुक डिपो है, जहां हर तरह की किताब आपको मिल जाएगी। अगर अभी तक आप वहां नहीं गए हैं तो एक बार ज़रूर जाएं, क्योंकि यहां किताबों के शौकीनों के लिए पुस्तकों का एक बड़ा जखीरा है। खासतौर पर अंग्रेजी किताबों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों की खोज यहां आकर खत्म हो जाएगी।
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कनॉट प्लेस में है शॉपकनाट प्लेस के एन ब्लाक इनर सर्किल स्थित यह दुकान दिल्ली के सबसे पुराने पुस्तक बेचने वालों में से एक है। दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक, इसकी प्रसिद्धि देशभर में है, राजनेता और बड़े सेलिब्रिटी हर कोई यहां किताबों की तलाश में आते रहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, दुकान के मालिक ओम अरोड़ा का कहना है कि वर्ष 1982 में एक दिन आधी रात को इंदिरा गांधी के दफ्तर से करीब 5 लोग साउथ एक्सटेंशन स्थित हमारे घर आए। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी भगवान श्री कृष्ण की पुस्तक की 300 प्रतियां एशियाई खेलों के लिए आए प्रतिनिधियों को भेंट करना चाहती हैं।अब भी मौजूद है टेकचंद की दुकानखबरों की मानें तो, वर्ष 1935 में स्वर्गीय टेकचंद ने इस दुकान की शुरुआत की थी। टेकचंद का व्यवसाय पाकिस्तान के कोहाट स्थित छावनी क्षेत्र में एक छोटी सी दुकान से शुरू हुआ था और दुकान के मालिक ओम अरोड़ा का कहना है कि बंटवारे के बाद उनके पिता पाकिस्तान से दिल्ली आ गए और 1948 में सबसे पहले बाबा खड़ग सिंह मार्ग में फुटपाथ पर पुस्तकों का एक स्टाल लगाया। उस समय वे भारत में एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें वीमेन एंड होम पत्रिका आयात करने का लाइसेंस दिया गया था। उन्हें लगभग छह हजार प्रतियां मिलती थीं और वे सब तीन-चार दिनों के भीतर बिक भी जाती थीं। वर्ष 1983 में ओम अरोड़ा ने दुकान को कनाट प्लेस में शिफ्ट कर लिया। अब उनके साथ उनके दामाद नकुल अग्रवाल भी यह व्यवसाय संभाल रहे हैं।वास्तु ऐसा की लोग खिंचे चले आते हैंदुकान में प्रवेश करते ही रैक से लेकर फर्श तक सिर्फ और सिर्फ किताबें ही नजर आती हैं। यहां स्कूल, बुक सेलर्स, यूनिवर्सिटी, जनरल बुक्स, काफी टेबल, पिक्चर सहित अंग्रेजी पुस्तक और प्रतियोगी किताबों के अलावा करीब 50 हजार से अधिक पुस्तकों का विशाल भंडार है। वैसे तो ये पूरे भारत में किताबों का वितरण करते हैं, लेकिन अमेरिकन कंपनी आर्ची कामिक्स को ये वर्ष 1971 से ही किताबें वितरित करते हैं।इसे भी पढ़ें: 'भकचोन्हर' पर बिहार में सियासी बवाल, JDU और कांग्रेस ने लालू को बताया दलित विरोधी
इंदिरा गांधी ने भेजे थे 5 लोग
रिपोर्ट की मानें तो, 1982 की बात साझा करते हुए ओम ने बताया कि एक दिन आधी रात को करीब पांच आदमी साउथ एक्सटेंशन स्थित हमारे घर आए। दरवाजा खोला तो पता चला कि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से एक निवेदन लेकर आए हैं। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी भगवान श्री कृष्ण की पुस्तक की 300 प्रतियां एशियाई खेलों के लिए आए प्रतिनिधियों को भेंट करना चाहती हैं। जिसके बाद कनाट प्लेस के गोदाम से 300 प्रतियां उनको सौंप दीं। दिल्ली के सबसे पुराने वितरकों में से होने के कारण नेता से लेकर बड़े बड़े सेलिब्रिटी तक उन्हें जानते हैं।We're now on WhatsApp. Click to join.
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