Udham Singh Death Anniversary: देश के 'शेर सिंह' ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का 6 गोलियों से लिया था बदला
आज ही के दिन यानी की 31 जुलाई को क्रांतिकारी ऊधम सिंह को फांसी दी गई थी। ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाद में नरसंहार की छूट देने वाले लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर की हत्या कर दी थी।
पंजाब के अमृतसर में साल 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार के कारण बहुत सारे क्रांतिकारियों ने क्रांति का रास्ता अपनाया था। इस लिस्ट में ऐसा ही एक नाम ऊधम सिंह का ङी है। ऊधम सिंह के दिल पर जलियांवाला बाग नरसंहार का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने नरसंहार करने वाले अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल डायर को जान से मारने का प्रण ले लिया। वहीं 21 साल बाद जब उन्हें वह मौका मिला तो उन्होंने जनरल डायर को खुली छूट और शह देने वाले लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर की हत्या कर दी। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 31 जुलाई को ऊधम सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
जन्म
पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को हुआ था। उनके बचपन का नाम शेर सिंह था। बाद में वह उधम सिंह के नाम से पहचाने जाने लगे। उधम सिंह के पिता का नाम तहल सिंह और माता का नाम नारायण कौर था। छोटी सी उम्र में ही उधम सिंह के सिर से माता-पिता का साया उठ गया था। जिसके चलते ऊधम सिंह और उनके भाई की परवरिश अनाथालय में हुई थी। वहीं प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऊधम ने ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की।
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जलियावाला बाग हत्याकांड
पंजाब में स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 में खून की होली खेली गई थी। दरअसल, बैसाखी के दिन रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए जलियांवाला बाग में सभा हो रही थी। इस सभा को रोकने के लिए ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवाकर नरसंहार करवा दिया था। ब्रिटिश सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार, इस नरसंहार में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित 388 लोग मारे गए थे, वहीं 1,200 लोग घायल हुए थे।
ऊधम सिंह ने ऐसे लिया बदला
बता दें कि अपने साथी क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारने का पूरा प्लान बनाया। इस दौरान वह अपना भेष बदलकर कई अलग-अलग देशों जैसे अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका आदि में घूमकर सही मौके का इंतजार करते रहे। जिसके बाद साल 1934 में ऊधम सिंह लंदन पहुंच गए। वहां पर लंदन के कॉक्सटन हॉल में 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की बैठक लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर की हत्या करने का मौका मिला। इस दौरान ऊधम सिंह ने किताबों के बीच रिवॉल्वर छिपाकर जनरल माइकल ओ डायपर अंधाधुंध 6 गोलियां चला दी। लेकिन इस दौरान वह भागे नहीं बल्कि ऊधम सिंह ने खुद को गिरफ्तार होने दिया।
हत्या के सवाल पर दिया ऐसा जवाब
जब ऊधम सिंह को गिरफ्तार कर उनसे सवाल किया गया कि उन्होंने जनरल माइकल ओ डायर की हत्या क्यों की। तो ऊधम सिंह ने कहा कि वह माइकल ओ डायर से बदला लेना चाहते थे और वह असल में इसका हकदार भी था। क्योंकि वह भारतीय भाइयों की भावनाओं को कुचलना चाहता था। इसलिए उन्होंने उसकी हत्या कर दी। ऊधम सिंह ने उस दौरान बताया था कि वह पिछले 25 सालों से इस मौके का इंतजार कर रहे थे।
फांसी की सजा
जज ने जब ऊधम सिंह को फांसी की सजा सुनाई तो साथ ही यह आदेश दिया कि क्रांतिकारी के बयान को सार्वजनिक न किया जाए। लेकिन साल 1996 में ऊधम सिंह का बयान सार्वजनिक हो गया था। उन्होंने अपने बयान में अंग्रेजी औपनिवेशवाद की निंदा करने के साथ ही कहा कि वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद से घृणा करते हैं। उन्होंने कहा कि वह मरने से नहीं डरते हैं। क्योंकि वह अपने उद्देश्य को पूरा करने के बाद मर रहे हैं और उन्हें अपनी मृत्यु पर गर्व है। ऊधम सिंह ने अपने बयान में आगे कहा था कि उनकी मौत के बाद हजारों देशवाशी भाई तुम अंग्रेजों को मेरे देश से बाहर निकाल फेकेंगे।
मौत
सुनवाई के दौरान ऊधम सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, अंग्रेजी कुत्तों मुर्दाबाद जैसे नारे लगाने शुरू कर दिए। जब अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें वहां से ले जाने की कोशिश की तो ऊधम सिंह ने वकील की मेज पर थूक दिया। वहीं सुनवाई पूरी होने के बाद 31 जुलाई 1940 को 40 वर्ष की आयु में ऊधम सिंह ने फांसी के फंदे को अपने गले का हार बना लिया और भारत मां की आजादी के लिए अपने प्राण दे दिये।
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