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साक्षात्कारः एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने दूर किये कोरोना वैक्सीन से जुड़े लोगों के मन के भ्रम
- डॉ रमेश ठाकुर
- जनवरी 11, 2021 13:12
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सरकार ने तारीख का ऐलान कर ही दिया है। कोविशील्ड और कोवैक्सिन का बीते 8-9 जनवरी को पूरे देश में वैक्सिनेशन ट्रायल फेस हुआ। केंद्र सरकार द्वारा दोनों वैक्सीनों का ट्रायल संपन्न हुआ है। इसके बाद जल्द ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में टीकाकरण कार्यक्रम आयोजित होंगे।
कोरोना वैक्सीन की सरकार से मंजूरी मिलने के बाद कोरोना महामारी से हर कोई जल्द से छुटकारा चाहता है, देशवासी वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। टीकाकरण कैसे होगा, कब लगेगा, किन अस्पतालों में होगी वैक्सीनेशन आदि तमाम सवाल लोगों के जेहन में गूँज रहे हैं। इन्हीं तमाम सवालों का जवाब जानने की कोशिश की डॉ. रमेश ठाकुर ने एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया से। वैक्सिनेशन को लेकर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कई अहम जानकारियाँ दीं। टीके को लेकर कुछ भ्रांतियां भी पनपी हैं उन पर से भी उन्होंने पर्दा उठाया। पेश है डॉ. रणदीप गुलरिया के साथ डॉ. रमेश ठाकुर की बातचीत के मुख्य हिस्से।
प्रश्न- वैक्सिनेशन को लेकर लोगों में कई तरह के सवाल हैं। जैसे कब और कैसे लगेगा टीका?
उत्तर- सरकार ने तारीख का ऐलान कर ही दिया है। कोविशील्ड और कोवैक्सिन का बीते 8-9 जनवरी को पूरे देश में वैक्सिनेशन ट्रायल फेस हुआ। केंद्र सरकार द्वारा दोनों वैक्सीनों का ट्रायल संपन्न हुआ है। इसके बाद जल्द ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में टीकाकरण कार्यक्रम आयोजित होंगे। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया और बॉयोटेक दोनों को अपने परीक्षण में सफलता मिली है। अब दुविधा की कोई बात नहीं, एकाध दिनों की सरकारी प्रक्रियाओं के बाद वैक्सीन को सार्वजनिक तौर पर जारी कर दिया जाएगा। लोगों को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं, पूरा कार्यक्रम सरकार बताएगी, उसी को फॉलो करते रहें।
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प्रश्न- टीका लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना जरूरी होगा?
उत्तर- नॉर्मल रहें, टीका लगवाने के बाद ज्यादा नहीं, एकाध घंटे तक आराम जरूर करें। अगर कोई परेशानी महसूस हो तो बिना देर करे उसी टीका सेंटर पर मेडिकल स्टाफ को सूचित करें। वैसे डरने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि अपने यहां वैक्सीन को मंजूरी तब दी गई है, जब ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने इसके सुरक्षित और प्रभावी होने का अध्ययन कर लिया। वैक्सीन को मंजूरी देने के लिए स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल का पालन किया गया है।
प्रश्न- सरकार ने किस तरह से खाका तैयार किया है कि सबसे पहले किन्हें दी जाएगी वैक्सीन?
उत्तर- टीका सबको दिया जाएगा। मुझे उम्मीद है, केंद्र सरकार ऐसा ही कार्यक्रम बनाएगी। अभी तक जो मुझे जानकारियाँ मिली हैं उनके मुताबिक पहले स्वास्थ्य कर्मियों, पैरामेडिकल स्टाफ और फ्रंटलाइन हेल्थ वर्करों को टीका लगाया जाएगा। इसके बाद बुजुर्ग या पचास वर्ष से ऊपर के कोरोना मरीज़ों को टीका दिया जाएगा। एम्स में भी एक टीका यूनिट लगाई गई है। उसमें दिल्ली वालों को टीका दिया जाएगा। कुल मिलाकर पोलियो की तरह जनजागरण के आधार पर टीका लगाने का काम होगा।
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प्रश्न- क्या पूर्व में जिन्हें कोरोना हुआ था उन्हें भी टीका दिया जाएगा?
उत्तर- जी हां, उन्हें भी टीका दिया जाएगा। क्योंकि ऐसे केस कई सामने आए हैं जिन्हें एक बार कोरोना हो जाने के बाद दोबारा हुआ। उनको भी टीका दिया जाएगा और उनको भी शेड्यूल पूरा करना होगा। टीका लेने से आपको बेहतर प्रतिरक्षा तंत्र विकसित करने में मदद मिलेगी। जो मरीज कैंसर, शुगर और हाइपरटेंशन की दवाएँ खाते हों, वह भी टीका लगवा सकते हैं। ऐसे लोग हाईरिस्क ग्रुप में आते हैं। अन्य बीमारियों की दवाएँ खाने वाले लोगों पर वैक्सीन गलत प्रभाव नहीं डालेगी।
प्रश्न- क्या सभी को टीका देना अनिवार्य होगा?
उत्तर- जी हां। मैंने पहले भी बताया आपको। कोरोना से लड़ने के लिए हमें पोलियो की तरह लड़ना होगा। इस वक्त कोरोना का जोर कुछ हल्का पड़ा है, फिर भी हमें सतर्कता बरतनी होगी। फिलहाल ये फैसला सरकार टीके के पहले-दूसरे चरण के बाद वैक्सीन की उपलब्धता को देखते हुए लेगी। वैक्सीन कम पड़ती है तो और बनने के लिए ऑर्डर दिया जाएगा। इसके लिए दोनों टीका निर्माता कंपनी तैयार हैं। कोरोना वायरस वैक्सीन लगवाना वालंटरी है। हालांकि कोरोना वायरस वैक्सीन का शेड्यूल पूरा लेने की सलाह दी जाती है।
प्रश्न- टीका कितनी बार लगवाना होगा?
उत्तर- इस विषय पर हमें विशेष ध्यान देना होगा। देखिए, टीके के मुख्यतः दो डोज होंगे। पहली लेने के 28 दिन के बाद लेने की आवश्यकता होगी। दोनों टीका लगवाना अनिवार्य होगा। वरना, असर नहीं होगा। क्योंकि कोरोना वायरस का दूसरा डोज लेने के दो हफ्ते बाद आमतौर पर शरीर में सुरक्षात्मक एंटीबॉडी विकसित हो जाती है। इसलिए जरूरी होगा कि किसी एक वैक्सीन का टीका लगवाने के बाद शेड्यूल पूरा किया जाए।
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प्रश्न- टीके के साइड इफेक्ट होने की कुछ ख़बरें आई हैं?
उत्तर- ऐसी कोई ख़बरें प्रामाणिक नहीं हुई हैं। वैसे, कोरोना वैक्सीन से साइड इफेक्ट नहीं होगा। अगर होता भी है तो उसके दूसरे कारण रहेंगे। आमतौर पर बुखार में ली जाने वाली टैबलेट क्रोसीन से भी साइड इफेक्ट हो जाता है। बुखार और शरीर में हल्का दर्द होने लगता है। फिर भी केंद्र सरकार ने ऐसे हालातों से निपटने के लिए राज्य सरकारों को सतर्क रहने को कहा है। वैसे, ड्रग रेगुलेटर ने वैक्सीन के क्लिनिकल डाटा का परीक्षण किया और गहन अध्ययन के बाद कंपनी को आपात स्थिति में इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी गई।
प्रश्न- टीका लगवाने के लिए सरकार की ओर क्या गाइड लाइन दी गई हैं?
उत्तर- शुरू में वैक्सीन को लक्षित समूहों को दिया जायेगा। लोगों के फोनों में बाक़ायदा मैसेज आएगा, जिसके जरिए उन्हें टीका सेंटर और समय की जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी। लेकिन यह प्रक्रिया रजिस्ट्रेशन से होगी। सेंटर में पहले अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। बिना पंजीकरण के टीका नहीं लगाया जाएगा। अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीज़ों को अस्पताल से ही टीका मुहैया कराया जाएगा। आम लोगों को टीके के लिए ड्राइविंग लाइसेंस, हेल्थ इंश्योरेंस स्मार्ट कार्ड, पैन कार्ड, पास बुक, पासपोर्ट, सर्विस आईडी कार्ड या वोटर कार्ड दिखाना होगा। जिनके पास ये कागज नहीं होंगे, उनका वेरिफिकेशन किया जाएगा। सरकार की तरफ से जानकारियाँ फोनों पर एसएमएस से मिलती रहेंगी। एक क्यूआर कोड दिया जाएगा, जिसे टीका सेंटर पर दिखाना होगा। क्योंकि उस कोड से टीका एक्सिस होगा।
प्रश्न- एक वर्ग ऐसा है जिसमें भ्रम की स्थिति है?
उत्तर- अल्पसंख्यकों की बात कर रहे हैं आप शायद। देखिए, उन्होंने पोलियो के वक्त भी विरोध किया था। अंततः उन्होंने अपनाया और फ़ायदों का लाभ भी उठाया। कुछ राजनेताओं ने भी आपत्ति जताई है। समझ में नहीं आता दवाईंयों में भी लोग राजनीति खोजने लगते हैं। वैक्सीन पूर्ण रूप से सुरक्षित है। सभी लगवाएं और कोरोना से मुक्ति पाएं।
-जैसा डॉ रमेश ठाकुर के साथ बातचीत में एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा।
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- डॉ. रमेश ठाकुर
- मार्च 8, 2021 12:12
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महिलाएं समुदायों की जरूरतों को अच्छी तरह पहचानती हैं, उनके नजरिए से एक परिवार उनके व्यवसाय के लिए स्थानीय समुदायों की जरूरतों को पहचानने का एक अवसर है, जिसकी सहायता से वह बड़े स्तर के आपूर्तिकताओं को स्थानीय जरूरतों से अवगत करा सकती हैं।
बीते कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण की मुहिम जनजागरण अभियान में तब्दील हुई है। प्रत्येक क्षेत्र में आधी आबादी की धूम है और होनी भी चाहिए। महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार लाना अति जरूरी भी है ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सकें, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर पाएं। पुरुषों की शिक्षा दर 81.3 प्रतिशत के मुकाबले महिलाओं की शिक्षा दर अब भी 60.6 प्रतिशत ही है। 125 देशों की एक हजार महिला कारोबारी को जोड़ने वाले ‘वी कनेक्ट इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म’ ने इस दौरान महिला स्वामित्व वाले व्यवसाय ने भी खासा बदलाव किया है। संस्था की सीईओ और को-फाउंडर एलिजाबेथ वॉजक्यूज महिला सशक्तिकरण की वैश्विक लीडर हैं। महिला दिवस के मौके पर डॉ. रमेश ठाकुर ने उनसे विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-
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प्रश्न- कोविड संकट से उभरना महिला उद्यमियों के लिए भी चुनौती है?
उत्तर- निश्चित रूप से। आर्थिक समीक्षा के जरिए हम अभी इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मैं यह कहना चाहूँगी कि सभी तरह के सामान्य व्यवसाय इस समय मानव संसाधन और संचालन की चुनौतियों के साथ ही अपने औसत खर्च को निकालने की चुनौती से जूझ रहे हैं। क्योंकि लॉकडाउन की वजह से अधिकांश लोग अपने उपभोक्ताओं और आपूर्तिकर्ताओं से पूरी तरह कट चुके हैं।
प्रश्न- मौजूदा वक्त में महिला स्वामित्व वाले कारोबार की क्या स्थिति है?
उत्तर- पुरूष-महिला दोनों उद्यमियों को कोविड ने प्रभावित किया है। हमारे कॉरपोरेट सहभागियों ने यह पाया कि महिला स्वामित्व वाले कारोबार अभी बेहद धीमी गति से चल रहे हैं, और वह धीरे इसलिए नहीं चल रहे क्योंकि उनका स्वामित्व महिलाओं के पास है, बल्कि इसलिए कि अभी सभी तरह के कारोबार की गति धीमी है। महिलाएं समुदायों की जरूरतों को अच्छी तरह पहचानती हैं, उनके नजरिए से एक परिवार उनके व्यवसाय के लिए स्थानीय समुदायों की जरूरतों को पहचानने का एक अवसर है, जिसकी सहायता से वह बड़े स्तर के आपूर्तिकताओं को स्थानीय जरूरतों से अवगत करा सकती हैं। वह केवल महिला होने के दायरे में रह कर काम नहीं करना चाहती हैं।
प्रश्न- हिंदुस्तान में महिला स्वामित्व वाले कारोबार को लेकर आपकी क्या राय है?
उत्तर- हिंदुस्तान में महिलाओं के व्यवसाय करने के रास्ते अब पहले से आसान हुए हैं। भारत में बहुत-सी पढ़ी-लिखी महिला कारोबारी हैं, लेकिन केवल व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रखने के लिए वह बहुत कम मुनाफे पर भी व्यवसाय शुरू कर देती हैं। वह छोटे स्तर के अनौपचारिक क्षेत्र में ही काम करना पसंद करती हैं जिससे आपूर्ति कर्ता के लिए उनकी इस प्रतिभा को ढूंढ़ना मुश्किल हो जाता है। महिलाएं आपूर्तिकर्ताओं को समाधान के अधिक बेहतर विकल्प दे सकती हैं। इसलिए मांग और आपूर्तिकर्ता दोनों पक्ष से अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। भारत में हमें ऐसी अधिक से अधिक महिलाओं की जरूरत है जो तकनीक और विनिर्माण के क्षेत्र में व्यापार को आगे बढ़ा सकें, इस क्षेत्र में महिलाओं की तरक्की की अपार संभावनाएं हैं।
प्रश्न- कारोबारी क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ें और उन्हें मुनाफा हो, इसके लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर- भारत आपूर्तिकर्ता सदस्यों और महिला उद्यमिता के नजरिए से अहम देश है। यहां की नीतिगत योजनाएं कारोबार को सफल बनाने में काफी महत्वपूर्ण हैं। शिक्षा का तेजी से बदलता स्तर, तकनीक, बेहतर संसाधन, भौतिकी आदि कई वजह से भारत को आर्थिक दृष्टि से विकास की ओर अग्रसर देश माना जाता है, और कई अच्छी वजह हैं जिसके कारण हम भारत में ऐसी महिला उद्यमियों की पहचान कर उनके कारोबार को बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर उनकी कारोबार की योग्यता को पहुंचाने में मददगार होंगे जिससे उन्हें एक बड़े पैमाने पर आपूर्तिकर्ता उपलब्ध हो सकें।
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प्रश्न- भारत में अधिकतर महिला उद्यमी लिंग भेदभाव की शिकार होती रही हैं?
उत्तर- महिला उद्यमियों के लिए देश में एक बड़ी चुनौती अपने कारोबार को बढ़ाने, नियुक्ति करने, फंड का बंदोबस्त करने सहित कारोबार संपर्क बढ़ाने आदि चुनौतियाँ हैं। भारत में अधिकतर महिला उद्यमी लिंग भेदभाव की शिकार होती हैं, यही कारण है कि महिलाओं द्वारा संचालित किए जाने वाले 90 प्रतिशत व्यवसाय लघु या माइक्रो स्तर तक ही सीमित हो जाते हैं। 79 प्रतिशत कारोबार को शुरू करने के लिए महिलाएं अपनी बचत की पूँजी लगाती हैं। इस परिप्रेक्ष्य में भारत में कारोबार शुरू करने और उसे बढ़ाने की तमाम तरह की चुनौतियाँ हैं। अधिक मुनाफा और कारोबार को बढ़ाने के लिए महिला उद्यमियों को बड़े स्तर के कॉरपोरेट ग्राहकों की जरूरत है। इसलिए भारत में महिला कारोबारियों के लिए मांग और आपूर्तिकर्ता दोनों ही तरफ से पहल करने की जरूरत है, जिससे उत्पादक और ग्राहकों को सही मंच दिया जा सके।
प्रश्न- महिला कारोबारियों के लिए रास्ते कब तक सुगम होने की संभावनाएं हैं?
उत्तर- माहौल धीरे-धीरे सुधर रहा है। जून तक स्थिति रास्ते पर आ जाएगी। मुझे ऐसा लगता है महिला कारोबारियों के लिए यह समय अभी अधिक सक्रिय होने का है। वर्तमान परिस्थिति को महिला कारोबारियों को एक चुनौती के रूप में लेना चाहिए, जिस तरह वह अब तक अपने परिवार और समुदाय का नेतृत्व करती आईं हैं, उसी तरह आगे भी उन्हें खुद को साबित करना है। फिर चाहे वह परिवार और समुदाय का नेतृत्व हो या फिर कारोबार का।
-जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से एलिजाबेथ वॉजक्यूज ने बातचीत में कहा।
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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
- मार्च 6, 2021 15:29
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याचिकाकर्ताओं का वकील अदालत के सामने फारुक के बयान को ज्यों का त्यों पेश नहीं कर सका लेकिन उसने अपने तर्क का आधार बनाया एक भाजपा-प्रवक्ता के टीवी पर दिए गए बयान को ! फारुक अब्दुल्ला ने धारा 370 को हटाने का कड़ा विरोध जरूर किया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. फारुक अब्दुल्ला के मामले में जो फैसला दिया है, वह देश में बोलने की आजादी को बुलंद करेगा। यदि किसी व्यक्ति को किसी नेता या साधारण आदमी की किसी बात पर आपत्ति हो तो वह दंड संहिता की धारा 124ए का सहारा लेकर उस पर देशद्रोह का मुकदमा चला सकता है। ऐसा ही मुकदमा फारुक अब्दुल्ला पर दो लोगों ने चला दिया। उनके वकील ने फारुक पर आरोप लगाया कि उन्होंने धारा 370 को वापस लाने के लिए चीन और पाकिस्तान की मदद लेने की बात कही है और भारतीय नेताओं को ललकारा है कि क्या कश्मीर तुम्हारे बाप का है ?
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याचिकाकर्ताओं का वकील अदालत के सामने फारुक के बयान को ज्यों का त्यों पेश नहीं कर सका लेकिन उसने अपने तर्क का आधार बनाया एक भाजपा-प्रवक्ता के टीवी पर दिए गए बयान को ! फारुक अब्दुल्ला ने धारा 370 को हटाने का कड़ा विरोध जरूर किया था लेकिन उन्होंने और उनकी पार्टी ने उन पर लगे आरोप को निराधार बताया। अदालत ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति सरकार के विरुद्ध कुछ बोलता है तो उसे देशद्रोह की संज्ञा देना अनुचित है।
इसी तरह के मामलों में कंगना राणावत और दिशा रवि नामक दो महिलाओं को भी फंसा दिया गया था। यह ठीक है कि आप फारुक अब्दुल्ला, राहुल गांधी या दिशा रवि जैसे लोगों के कथनों से बिल्कुल असहमत हों और वे सचमुच आक्रामक और निराधार भी हों तो भी उन्हें आप देशद्रोह की संज्ञा कैसे दे सकते हैं ? उनके अटपटे बयानों से भारत का बाल भी बांका नहीं होता है बल्कि वे अपनी छवि बिगाड़ लेते हैं। जहां तक फारुक अब्दुल्ला का सवाल है, उनकी भारत-भक्ति पर संदेह करना बिल्कुल अनुचित है। वे बहुत भावुक व्यक्ति हैं। मैं उनके पिता शेख अब्दुल्लाजी को भी जानता रहा हूं और उनको भी ! देश में कई मुसलमान कवि रामभक्त और कृष्णभक्त हुए हैं लेकिन आपने क्या कभी किसी मुसलमान नेता को रामभजन गाते हुए सुना है ? ऐसे फारुक अब्दुल्ला पर देशद्रोह का आरोप लगाना और उन्हें संसद से निकालने की मांग करना बचकाना गुस्सा ही माना जाएगा।
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अब जरूरी यह है कि दंड संहिता की धारा 124ए का दुरुपयोग तत्काल बंद हो। 1974 के पहले इस अपराध को सिर्फ असंज्ञेय (नॉन—काग्जिनेबल) माना जाता था यानि सिर्फ सरकार ही मुकदमा चला सकती थी, वह भी खोजबीन और प्रमाण जुटाने के बाद और हिंसा होने की आशंका हो तब ही। यह संशोधन अब जरूरी है। फारुक अब्दुल्ला पर यह मुकदमा किसी रजत शर्मा (प्रसिद्ध टीवी महानायक नहीं) ने चलाया है। ऐसे फर्जी मामलों में 2019 में 96 लोग गिरफ्तार हुए लेकिन उनमें से सिर्फ 2 लोगों को सजा हुई। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने इन दो मुकदमाबाजों पर 50 हजार रु. का जुर्माना ठोक दिया है।
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक
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- ललित गर्ग
- मार्च 5, 2021 12:02
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असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं के हमलों पर परिवार के लोग अभी चुप हैं। उनकी यह चुप्पी असंतुष्ट नेताओं का हौसला बढ़ा रही है, उनके विरोध की धार को तेज कर रही है। जी-23 के नेताओं की कोशिश है कि यह चुप्पी टूटे और लड़ाई खुले में आए।
कांग्रेस की राजनीति की सोच एवं संस्कृति सिद्धान्तों, आदर्शों और निस्वार्थ को ताक पर रखकर सिर्फ सत्ता, पु़त्र-मोह, राजनीतिक स्वार्थ, परिवारवाद एवं सम्पदा के पीछे दौड़ी, इसलिये आज वह हर प्रतिस्पर्धा में पिछड़ती जा रही है। कांग्रेस आज उस मोड़ पर खड़ी है जहां एक समस्या समाप्त नहीं होती, उससे पहले अनेक समस्याएं एक साथ फन उठा लेती हैं। कांग्रेस के भीतर की अन्दरूनी कलह एवं विरोधाभास नये-नये चेहरों में सामने आ रही हैं। जी-23 की बगावत जगजाहिर है। कांग्रेस की इस दुर्दशा एवं लगातार रसातल की ओर बढ़ने का सबसे बड़ा कारण राहुल गांधी हैं। वह पार्टी एवं राजनीतिक नेतृत्व क्या देश की गरीब जनता की चिन्ता एवं राष्ट्रीय समस्याओं को मिटायेगी जिसे पु़त्र के राजनीतिक अस्तित्व को बनाये रखने की चिन्ताओं से उबरने की भी फुरसत नहीं है।
जी-23 के नेता कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं, पार्टी के आधार हैं, बुनियाद हैं, उनके भीतर पनप रहा असंतोष एवं विद्रोह अकारण नहीं है। ये नेता तमाम ऐसी बातें बोलने को विवश हुए हैं जो सोनिया को नागवार गुजरी हैं। इन्होंने रह-रहकर राहुल की नाकामियों को उजागर किया है, संगठन का मुद्दा उठाया है, बंगाल में फुरफुरा शरीफ के मौलवी अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट से कांग्रेस के समझौते पर भी ये नेता सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस अपने बुनियादी सिद्धांतों से कैसे समझौता कर सकती है? सिद्दीकी जैसे लोगों से गठबंधन करके पार्टी सांप्रदायिक शक्तियों से कैसे लड़ेगी? यह ऐसा गठबंधन है जो धार्मिक भावनाएं भड़काने के लिए जाना जाता है। कोरोना के दौरान सिद्दीकी ने सार्वजनिक दुआ मांगी थी कि दस से पचास करोड़ भारतीय मर जाएं। सांप्रदायिक लोगों और संगठनों को साथ लेकर सांप्रदायिकता से लड़ने का पाखंड तो कांग्रेस ही कर सकती है। इस तरह ओढ़ी हुई धार्मिकता और छद्म पंथनिरपेक्षता का जादू चुनावी संग्राम में कोई चमत्कार घटित नहीं कर सकेगा।
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बड़ा प्रश्न है कि ऐसे लोगों से समझौता करके कांग्रेस संदेश क्या देना चाहती है? जबकि आज कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौतियां हैं, उनका मुकाबला नरेन्द्र मोदी जैसे दिग्गज नेता, विकास पुरुष एवं भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी से है, उसे राष्ट्रीयता के ईमान को, कर्तव्य की ऊंचाई को, संकल्प की दृढ़ता को, निस्वार्थ के पैगाम को एवं राजनीतिक मूल्यों को जीने के लिये उसे आदर्शों की पूजा ही नहीं, उसके लिये कसौटी कसनी होगी। आदर्श केवल भाषणों तक सीमित न हो, बल्कि उसकी राजनीतिक जीवनशैली का अनिवार्य हिस्सा बने। आदर्शों को वह केवल कपड़ों की तरह न ओढ़े, अन्यथा फट जाने पर आदर्श भी चिथड़े कहलायेंगे और ऐसा ही दुर्भाग्य कांग्रेस के भाल पर उकेरता जा रहा है।
असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं के हमलों पर परिवार के लोग अभी चुप हैं। उनकी यह चुप्पी असंतुष्ट नेताओं का हौसला बढ़ा रही है, उनके विरोध की धार को तेज कर रही है। जी-23 के नेताओं की कोशिश है कि यह चुप्पी टूटे और लड़ाई खुले में आए। सोनिया गांधी को पता है कि लड़ाई खुले में आई तो उनके लिए राहुल गांधी को बचाना बहुत कठिन होगा। दरअसल यह लड़ाई अब पार्टी बचाने और राहुल गांधी के अस्तित्व को बचाने की लड़ाई है। राहुल गांधी को लेकर खड़े किये जा रहे मुद्दों पर गांधी परिवार की चुप्पी का इरादा केवल मुद्दे को टालना है, कुछ करने का इरादा न पहले था और न अब दिख रहा है। यह स्थिति पार्टी के लिये भारी नुकसानदायी साबित हो रही है।
आजाद भारत में सर्वाधिक लम्बे समय शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी की इस स्थिति का कारण पु़त्र-मोह है। इतिहास गवाह है पुत्र मोह ने बड़ी-बड़ी तबाहियां की हैं। सत्ता और पुत्र के मोह में इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई। आज सोनिया गांधी भी ऐसे ही पदचिन्हों पर चलते हुए पार्टी के अस्तित्व एवं अस्मिता को धुंधला रही है। ऐसे क्या कारण बन रहे हैं कि कांग्रेस की राजनीति के प्रति लोगों के मन श्रद्धा से झुक नहीं रहे हैं। क्योंकि वहां किसी भी मौलिक मुद्दों पर स्थिरता नहीं, जहां स्थिरता नहीं वहां विश्वास कैसे संभव है? प्रश्न एक परिवार का नहीं, बल्कि देश की 130 करोड़ आबादी का है। पुत्र-मोह, बदलती नीतियां, बदलते वायदे, बदलते बयान कैसे थाम पाएगी करोड़ों की संख्या वाले देश का आशा भरा विश्वास जबकि वह पार्टी के बुनियादी नेताओं के विश्वास को भी कायम रखने में नाकाम साबित हो रही है। इसलिये वक्त की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस के सभी जिम्मेदार तत्व अपनी पार्टी के लिये समय को संघर्ष में न बितायें, पार्टी-हित में सृजन करें। भारत जैसे सशक्त लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना जरूरी है और अभी तक कांग्रेस के अलावा अन्य विपक्षी दलों में यह पात्रता सामने नहीं आ रही है।
वरिष्ठ असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं के निशाने पर गांधी परिवार है। तमाम नेताओं ने जितने खुले अंदाज में अपनी बात रखी, उससे साफ हो जाता है कि वे पार्टी हित में बदलाव चाहते हैं, पार्टी की सोच में भी और संगठनात्मक ढांचे में भी। इन नेताओं का राजनीतिक अनुभव निश्चित तौर पर राहुल गांधी से अधिक है। अब तक की कांग्रेस की संरचना को देखते हुए यह नहीं लगता कि ये नेता किसी पद की कतार में है, ये पार्टी से अलग होकर नयी पार्टी बनाने के मूड में भी नहीं हैं, ये सभी नेता पार्टी में राहुल गांधी के नाम पर हो रही टूटन एवं बिखराव को लेकर चिन्तित हैं। ये नेता नेतृत्व के साथ मिल-बैठकर कोई सर्वमान्य हल एवं पार्टी को बचाने का फार्मूला निकालना चाहते हैं, इस तरह की संभावना की गुंजाइश का न पनपना पार्टी के अहित में ही है। स्पष्ट है कि जो पार्टी अपनों की बात ही नहीं सुन पा रही है, वह राष्ट्र एवं राष्ट्र की जनता की बात क्या सुनेगी ? लोकतंत्र में इस तरह की हठधर्मिता कैसे स्वीकार्य होगी ? कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं की यह खुली बगावत पार्टी के भविष्य पर घने अंधेरों की आहट है।
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आज कर्तव्य एवं राजनीतिक हितों से ऊंचा कद पुत्र-मोह का हो गया है। जनता के हितों से ज्यादा वजनी निजी स्वार्थ एवं परिवारवाद हो गया है। असंतुष्ट नेता इस नतीजे पर भी पहुंच चुके हैं कि राहुल के रहते कांग्रेस में कोई सूरज उग नहीं पाएगा। जो लोग प्रिंयका गांधी से बड़ी उम्मीद लगाए थे, वे और ज्यादा निराश हैं। प्रियंका का सूरज तो उगने से पहले ही अस्त हो गया। भाई-बहन किसी गरीब से मिल लें, किसी गरीब के साथ बैठकर खाना खा लें, किसी पीड़ित को सांत्वना देने पहुंच जायें तो समझने लगते है कि एक सौ तीस करोड़ लोगों का दिल जीत लिया है। वे अपने बयानों, कार्यों की निंदा या आलोचना को कभी गंभीरता से लेते ही नहीं। उनकी राजनीति ने इतने मुखौटे पहन लिये हैं, छलनाओं, दिखावे एवं प्रदर्शन के मकड़ी जाल इतने बुन लिये हैं कि उनका सही चेहरा पहचानना आम आदमी के लिये बहुत कठिन हो गया है। इन्हीं कारणों से गुजरात में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया। चुनाव में हार-जीत तो होती रहती है, लेकिन गुजरात का नतीजा नया संदेश दे रहा है। अभी तक कांग्रेस का इस तरह से सफाया उन राज्यों में हो रहा था जहां मजबूत क्षेत्रीय दल हैं। गुजरात में अनेक सकारात्मक स्थितियों के बावजूद कांग्रेस कुछ अच्छा करने में असफल रही है तो यह अधिक चिन्तनीय पहलु है। हार के कारणों पर मंथन की बजाय स्थानीय नेताओं पर कार्रवाई क्या उचित है ? प्रश्न है कि इन स्थितियों के चलते कांग्रेस कैसे मजबूत बनेगी ? कैसे पार्टी नयी ताकत से उभर सकेगी ? कांग्रेस को राष्ट्रीय धर्म एवं कर्तव्य के अलावा कुछ न दिखे, ऐसा होने पर ही पार्टी को नवजीवन मिल सकता है, अन्यथा अंधेरा ही अंधेरा है।
-ललित गर्ग
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