उत्तर प्रदेश में माफिया डॉन 'अंदर' हों या 'बाहर', सबका धंधा फलफूल रहा है

vikas dubey
अजय कुमार । Jul 8 2020 11:56AM

कुछ माफिया ऐसे भी हैं जिनकी मौत के मुंह में जाने के बाद भी ‘दहशत’ बरकरार है। मृतक माफिया भी उनके गुर्गों के लिए कमाई का जरिया बने हुए हैं। इन मृतक माफियाओं के नाम पर आज भी उनके गैंग ठीक वैसे ही संचालित हो रहे हैं, जैसे उनके जिंदा रहते हुआ करते थे।

कानपुर में दबिश के दौरान आठ पुलिस वालों की नृशंस हत्या के बाद माफियाओं, गुंडे-बदमाशों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तेवर सख्त हो गए हैं। अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए प्रदेश में फिर से आपरेशन ‘ऑल क्लीन’ शुरू हो गया है। कई माफियाओं का अवैध साम्राज्य ढहा दिया गया है तो कई को पकड़ कर जेल भेज दिया गया है। साथ ही पुलिस की ऐसे माफियाओं के ऊपर भी नजर है जो जेल की सलाखों के पीछे भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश की जेलों में कई नामी माफिया डॉन बंद हैं। इसमें से समय के साथ कुछ माफियाओं के तेवर ढीले पड़ गए हैं तो माफिया डॉन अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, बबलू श्रीवास्तव, बृजेश सिंह, सुनील राठी, खान मुबारक, सुंदर भाटी, त्रिभुवन सिंह, धनंजय सिंह आदि आज भी अपने गुर्गों के माध्यम से रंगदारी, फिरौती, जमीन कब्जाने, खनन और सरकारी ठेके हथियाने आदि के धंधे में लगे हुए हैं। माफिया मोबाइल और सोशल नेटवर्क साइट से अपनी दहशत का साम्राज्य स्थापित रखते हैं। इतना ही नहीं बाहुबली से नेता बन चुके कुछ माफिया डॉन सोशल नेटवर्क साइटों के माध्यम से अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता और समर्थकों से न केवल जुड़े रहते हैं बल्कि पंचायत तक लगाते हैं।

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माफिया डॉन मुख्तार अंसारी हो या उसका विरोधी बृजेश सिंह या सुभाष ठाकुर आदि तमाम अपराधी, सबकी सलाखों के पीछे से ‘हुकूमत’ चलती है। जेलों में इनके लिए मोबाइल की व्यवस्था करना कोई मुश्किल काम नहीं है। इनके द्वारा सियासत के गठजोड़ से लेकर सरकारी ठेकों में दखल और दुश्मनों से निपटने के सारे प्लान जेल के अंदर तैयार होते हैं और बाहर उन पर अमल होता है। बड़े माफिया जेल के अंदर से फोन और सोशल साइट्स का सबसे अधिक इस्तेमाल रेलवे, सिंचाई और पीडब्ल्यूडी में ठेकों के लिए करते हैं। साथ ही रंगदारी न देने वाले व्यवसायियों को सबक सिखाने के लिए जेल से ही अपने शूटरों को निर्देश देते हैं।

बात यहीं तक सीमित नहीं है। इससे इत्तर कुछ माफिया ऐसे भी हैं जिनकी मौत के मुंह में जाने के बाद भी ‘दहशत’ बरकरार है। मृतक माफिया भी उनके गुर्गों के लिए कमाई का जरिया बने हुए हैं। इन मृतक माफियाओं के नाम पर आज भी उनके गैंग ठीक वैसे ही संचालित हो रहे हैं, जैसे उनके जिंदा रहते हुआ करते थे। बस फर्क इतना है कि जिंदा रहते जो माफिया डॉन स्वयं आगे आकर फिरौती आदि मांगा करते थे, अब सोशल मीडिया पर इनकी फोटो लगाकर उसके गुर्ग काम चलाते हैं। करीब दर्जन भर ऐसे मृत माफिया हैं जिनके नाम पर सोशल नेटवर्क पर एकांउट बने हुए हैं। वह भी एक नहीं कई-कई। कई मारे जा चुके माफियाओं को सोशल नेटवर्किंग साइट्स खासकर फेसबुक और वाट्स ऐप पर ‘सक्रिय’ पाया गया है। मारे जा चुके डॉन को उनके दोस्तों और समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से न केवल ‘जिंदा’ रखा जा रहा है, बल्कि मृत माफियाओं के नाम से समय-समय पर पोस्ट भी साझा की जाती हैं। 

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दरअसल, मृत माफिया के सोशल साइट्स पर जिंदा रहने की दो वजह हैं एक तो कमाई और दूसरा उनके गुर्गों का मृत माफियाओं से भावनात्मक लगाव। ताकि इनकी यादों को ताजा रखा जा सके और लोगों से भी उनका जुड़ाव बना रहे। इसी तरह से तमाम जेलों में बंद डॉन भी जेल कर्मियों की मिलीभगत से सोशल साइट्स पर सक्रिय रहते हैं। बचाव में यह माफिया यही कहते हैं कि जेल में रहकर ऐसा कैसे हो सकता है। माफिया सफाई देते हुए कहते हैं उनके बेटे-भतीजे उनके नाम से बनाए गए फेसबुक पेज चलाते हैं, क्योंकि उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग उनसे जुड़े रहना चाहते हैं।

बात मृत माफियाओं की कि जाए तो 70-80 के दशक के माफिया डॉन वीरेंद्र प्रताप शाही की 1997 में लखनऊ में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। आज भी शाही की फेसबुक डिस्प्ले तस्वीर में उनका बखान ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के तौर पर किया गया है और इसमें दहाड़ते हुए शेर की तस्वीर भी है। फेसबुक पर मृत शाही की तरफ से उनके समर्थकों को विभिन्न त्योहारों पर बाकायदा ‘बधाई’ दी जाती है। इसके अलावा उनके समर्थक उनकी बरसी पर डॉन को श्रद्धांजलि भी देते हैं। उसके समर्थक समय-समय पर लोगों को याद दिलाते रहते हैं कि वही असली ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ थे। हाल ही में शाही की मृत्यु के 22 साल बाद उनके पेज को 1,767 लाइक्स मिले थे। शाही के करीब पौने दो हजार फॉलोअर भी हैं। उनके समर्थक उनकी तस्वीरों को पोस्ट करते हैं और उनके अच्छे कामों का भी बखान करते रहते हैं, जिसकी बदौलत उनके समर्थकों ने उन्हें ‘रॉबिनहुड ऑफ द ईस्ट’ का खिताब दे रखा है।

एक मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी लेने के बाद चर्चा में आए और उसके बाद मुठभेड़ में मारे जा चुके दंबग श्रीप्रकाश शुक्ला को भी उसके समर्थक आज तक 'जिंदा’ रखे हुए हैं। मृत डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला  फेसबुक पर काफी ‘सक्रिय’ रहता है। उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे खूंखार बदमाशों में से एक श्रीप्रकाश शुक्ला की दहशत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके ‘कारनामों’ के चलते ही 1998 में उत्तर प्रदेश में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया था। शुक्ला उत्तर प्रदेश का पहला अपराधी था, जो वारदात को अंजाम देने के लिए एके-47 का इस्तेमाल करता था। 1998 में ही लखनऊ में एसटीएफ ने इस गैंगस्टर को गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया था। आज भी श्रीप्रकाश के समर्थकों द्वारा चलाया जा रहा उसका फेसबुक पेज उसे ‘डॉन’ ‘गैंगस्टर ग्रुप-जी 2’ का नेता बताता है। फेसबुक पर शुक्ला की ओर से कथित तौर पर एक पोस्ट भी साझा की गई है, जिसमें लिखा है, ‘मैं एक गैंगस्टर हूं और गैंगस्टर सवाल नहीं पूछते।’ फेसबुक पर मारे गए डॉन की कवर फोटो  है, जो पुलिस रिकॉर्ड में उपलब्ध है। इसी प्रकार पूर्वांचल के बाहुबली मुन्ना बजरंगी जिसकी बीते वर्ष पश्चिमी यूपी के बागपत जेल में खूंखार माफिया सुनील राठी के गुर्गों द्वारा हत्या कर दी गई थी, का भी एक फेसबुक एकांउट है। हालांकि उसके पेज पर कोई पोस्ट नहीं है। मुन्ना बजरंगी फोन पर पंचायत करके अपने क्षेत्र के लोगों के बीच का विवाद सुलझाया करता था। मुन्ना बजरंगी को मारने के बाद राठी के गुर्गों ने घटना का वीडियो तक जेल में बनाया था।

भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और अन्य मामलों में बीते 15 सालों से जेल में बंद डॉन मुख्तार अंसारी भी सोशल मीडिया पर सक्रिय है, लेकिन कहा यही जाता है कि उसका फेसबुक पेज उसके घरवाले संभालते हैं। वाराणसी जेल में बंद मॉफिया डॉन व एलएलसी बृजेश सिंह भी फेसबुक पर दिखता रहता है। 

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सबसे दिलचस्प फेसबुक पेज पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी का है, अमनमणि निर्दलीय विधायक भी है और अपहरण एवं अपनी पत्नी सारा की आकस्मिक मौत के लिए सीबीआई जांच का सामना कर रहा है। सोशल मीडिया पर वह कवर फोटो में अपने समर्थकों के साथ दिखता है। जब वह 2016 में अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में था, तब वह नियमित रूप से अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट कर रहा था, लेकिन मीडिया द्वारा रिपोर्ट किए जाने के बाद इस तरह की गतिविधि बंद हो गई। दिलचस्प यह था कि फेसबुक पर अमनमणि की दोस्तों की सूची में तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, आईपीएस अधिकारी अतुल शर्मा और आईएएस अधिकारी संजय प्रसाद शामिल तक शामिल थे। 

सोशल नेटवर्क की तरह मोबाइल से दहशत वाले वालों माफियाओं के भी कृत्य अक्सर सामने आते रहते हैं। दो मई 2017 को मिर्जापुर जिला जेल में बंद शातिर अपराधी मुन्ना बजरंगी गैंग का रिंकू सिंह शूटर अमन सिंह को फोन पर इलाहाबाद और सिंघरौली में दो लोगों की हत्या करने का हुक्म देता है। एसटीएफ को भनक लगती है और चार दिन की मशक्कत के बाद अमन सिंह गिरफ्तार हो जाता है, जो धनबाद के चर्चित नीरज सिंह हत्याकांड में शामिल था। 15 जनवरी 2017 को इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद अपराधी उधम सिंह करनावल-मेरठ में मार्बल व्यवसायी व प्रॉपर्टी डीलर को फोन कर दस-दस लाख की फिरौती मांगता है। फिरौती न देने पर फोन करके दोनों को ठिकाने लगाने के लिए शूटर प्रवीण कुमार पाल को बुलाता है। प्रवीण मेरठ से इलाहाबाद पहुंच जाता है, लेकिन वारदात को अंजाम देने से पहले एसटीएफ उसे दबोच लेती है।

2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान माफिया बृजेश सिंह चंदौली की सैयदराजा सीट से अपने भतीजे सुशील सिंह को जिताने के लिए कई ग्राम प्रधानों और बीडीसी को फोन करता है। भतीजे के नहीं जीतने पर अंजाम बुरा होने की धमकी देता है। शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती है।

-अजय कुमार

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