परमाणु युद्ध का खतरा नहीं उठा सकती सरकार

केंद्र की भाजपा सरकार पाकिस्तान को सबक सिखाने के चाहे जितने दावे कर ले, सीधी सैन्य कार्रवाई असंभव है। राष्ट्रवाद की दुहाई देना अलग बात है पर केंद्र सरकार किसी भी सूरत में परमाणु युद्ध का खतरा नहीं उठा सकती।

अमरीका ने 9.11.2001 की वारदात का बदला लेने के लिए दस साल तक ओसामा बिन लादेन का पीछा किया। आखिरकार उसे सील कमांडों की बेहद गुप्त कार्रवाई के बाद उसी के सुरक्षित ठिकाने में खत्म कर दिया। मुंबई हमलों के मास्टर माइंड दाउद इब्राहिम को भारत से भागे हुए करीब तेईस साल हो गए। उसके पते−ठिकाने बदलने की जानकरी देश की खुफिया एजेंसियों को मिलती रही पर वह अभी तक जिंदा है। यही हाल पाक स्थित लश्कर ए तोएबा के चीफ हाफिज मौहम्मद सहित करीब सात अतिसक्रिय आतंकवादी संगठनों के सरगनाओं का है। सभी जीवित हैं और पाकिस्तान के संरक्षण में मजे में हैं। सभी भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाईयों को लगातार अंजाम देने में जुटे हुए हैं।

अमरीका के सील कंमाडों ने जब ऐबटाबाद में लादेन को घर में घुस कर मारा तो उसकी योजना की किसी को भनक तक तक नहीं लगी। यहां तक कि पाकिस्तान को भी नहीं। अमरीका यदि इसका खुलासा नहीं करता तो लादेन की मौत एक पहेली ही रहती। हालांकि बाद में पाकिस्तान ने काफी हो−हल्ला मचाया कि यह उसकी सम्प्रभुता का उल्लंघन है पर अमरीका के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। यह बात साफ है कि वोट बटोरने के लिए भाजपा सहित सभी राजनीतिक दल भारत में हुए हमलों के लिए भले ही पाकिस्तान की ईंट−ईंट से बजाने की हुंकार भरते हों पर सत्ता में आने के बाद ही हकीकत का पता चलता है कि नारों और वादों से जोश के ज्वार पैदा करना करना आसान है, पर पाकिस्तान के खिलाफ सीधी सैन्य कार्रवाई करना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है। देश के लोगों की जनभावनाओं को भुना कर सत्ता का उल्लू तो सीधा किया जा सकता है पर पाकिस्तान के खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं की जा सकती।

पाकिस्तान परमाणु सम्पन्न देश होने के साथ ही पहले से ही बर्बादी के कगार पर खड़ा है। वहां हर रोज आतंकी हमलों में बड़ी संख्या में लोग मारे जा रहे हैं। सरकार भी वहां सेना की कठपुतली है। किसी भी तरह की सीधी सैन्य कार्रवाई से भारत परमाणु युद्ध को नहीं झेल सकता। इस सच्चाई से सभी राजनीतिक दल सत्ता में रहे बगैर भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। दरअसल पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के सरगनाओं के खिलाफ गंभीरता से कार्रवाई करने की जहमत केंद्र में किसी भी दल की सरकार ने कभी नहीं उठाई। वरना हालात इतने नहीं बिगड़ते। गुप्त कार्रवाई होने पर भारत विरोधी पाक समर्थित आतंकी संगठनों के दुस्साहस पर काफी हद तक लगाम लग जाती। सरगनाओं को ठिकाने लगाने पर भारत पर सीधी उंगली भी नहीं उठती। उसी तरह जैसे अब भारत की धरती पर हो रहे आतंकी हमलों में सीधे पाकिस्तान का हाथ साबित करना मुश्किल काम है।

केंद्र में किसी भी दल की सरकार रही हो, किसी ने भी आतंकी संगठनों के खिलाफ अमरीका की तरह र्कारवाई करने की रणनीति कभी तैयार नहीं की, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे। इसके विपरीत कोई ठोस नीति नहीं होने के कारण दाउद जैसे आतंकी न सिर्फ देश छोड़ कर आसानी से भाग गए बल्कि विदेशी धरती से भारत के खिलाफ ड्रग्स, नकली भारतीय मुद्रा और तस्करी सहित आतंकी कार्रवाईयों में लिप्त रहे। भारत के पास इस बात के भी पुख्ता प्रमाण आज भी मौजूद हैं कि कौन-से आतंकी संगठन का सरगना कहां रहता है। मीडिया में दाउद के ठिकाने बदलने की रिपोर्टें आती रही हैं। पाकिस्तानी आतंकियों को उनके छिपने वाले ठिकानों पर भाड़े के एजेंटों के जरिए मार गिराना इतना मुश्किल भी नहीं है। यदि किन्हीं कारणों से गुप्त योजना फेल भी हो जाती है, सीधे दोष भारत के सिर नहीं मढ़ा जा सकता।

दाउद दुबई से लेकर जगह−जगह ठिकाने बदलता रहा है। देश की गुप्तचर एजेंसियों को इसकी सूचनाएं भी मिलती रहीं हैं, फिर भी केंद्र सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं होने के कारण दाउद का कुछ नहीं बिगड़ा। मुंबई बम ब्लॉस्ट से भागने के बाद उसने अपने काले कारोबार की जड़ें भारत में और गहरी कर लीं। भारत में उसके काले धंधों और खौफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में उसके एक गुर्गे की गिरफ्तारी हुई है। जोकि दिल्ली में किसी से वसूले दाउद के 40 करोड़ रूपए लेकर चंपत हो गया।

उरी हमले के बाद एक बात यह भी स्पष्ट है कि अमरीका और अन्य देश चाहे कितनी भी भर्त्सना कर लें या चेतावनी भरी नसीहत दें, पाक का रवैया बदलने वाला नहीं है। कारण भी स्पष्ट है, अब तक भारत में हुए हमलों पर दूसरे देशों ने सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाए हैं। इससे पाकिस्तान के नापाक इरादों में रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा। अमरीका जैसे दुमुंहे देश की हालत यह है कि एक तरफ उसे हथियार और डॉलर मुहैया कराता है और दूसरी तरफ भारत से रक्षा समझौते करता है। दरअसल अमरीका की शुरू से ही भारत को इस्तेमाल करके अपने हितों की सुरक्षा करने की नीति रही है। मुंबई में ताज होटल पर पाक आतंकियों के हमले के प्रत्यक्ष सबूत से अमरीका ने सहमति जताई। इसके बावजूद पाकिस्तान की सैन्य या वित्तीय मदद नहीं रोकी गई। लगता यही है कि खोट कहीं न कहीं हमारी विदेश नीति में है। अमरीका का चरित्र और इतिहास इस बात का गवाह है कि पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से बचने की नीति अपनाई गई है। हमारी ढुलमुल विदेश नीति का ही परिणाम है कि अमरीका का दामन थामने से रूस हमसे छिटक गया।

रूस जैसे देश से ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह भारत के धुरविरोधी पाकिस्तान के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास करेगा। रूस ने यह कूटनीतिक निर्णय भारत की अमरीका के साथ बढ़ती नजदीकियों के बाद उठाया है। उरी और उससे पहले हुए तमाम आंतकी हमलों से जाहिर है कि विश्व समुदाय हमारी कोई मदद नहीं करेगा। कोई भी देश दूसरे देश के मामलों में सीधे दखंलदाजी से बचना चाहता है। भारत को किसी की तरफ ताकने के बजाए अपनी मदद के लिए खुद ही खड़ा होना पड़ेगा। जो भी करना है भारत को अपने बलबूते करना होगा। यह भी निश्चित है कि केंद्र की भाजपा सरकार पाकिस्तान को सबक सिखाने के चाहे जितने दावे कर ले, सीधी सैन्य कार्रवाई असंभव है। राष्ट्रवाद की दुहाई देना अलग बात है पर केंद्र सरकार किसी भी सूरत में परमाणु युद्ध का खतरा नहीं उठा सकती। पाकिस्तान के होश ठिकाने लगाने के लिए वही रणनीति अपनानी होगी, जिस पर अभी तक पाकिस्तान चलता रहा है। गुप्त किराए के अभियानों से आतंकी सरगनाओं का खात्मा करना होगा।

- योगेन्द्र योगी

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