क्या है हाइब्रिड आतंकवाद ? पाकिस्तान ने चाल बदलकर कैसे भारतीय सुरक्षा बलों के लिए चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं?

Indian security forces
ANI

जहां तक कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाये जाने की बात है तो इसका कारण यह भी माना जा रहा है कि हाल ही में प्रदर्शित फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के बाद कश्मीरी पंडितों के प्रति जो सहानुभूति पूरे देश में उपजी थी उसके चलते घाटी में उनकी वापसी का माहौल भी बनने लगा था।

कश्मीर घाटी में टार्गेट किलिंग की हालिया घटनाओं के बाद भय का माहौल बना हुआ है। आतंकवादियों की गोलियों के शिकार सिर्फ कश्मीरी हिंदू ही नहीं बन रहे बल्कि मुसलमान भी मारे जा रहे हैं। कश्मीर के सुरक्षा हालात को देखते हुए दिल्ली में एक बड़ी बैठक हुई जिसमें कई बड़े निर्णय लिये गये। माना जा रहा है कि कश्मीरी हिंदुओं की सुरक्षा तो सख्त होगी ही साथ ही आतंक के खिलाफ बड़ी कार्रवाई भी की जायेगी। इस समय घाटी में जहां एक ओर कश्मीरी हिंदुओं के पलायन की खबरें आ रही हैं तो वहीं कई जगह हिंदू सरकारी कर्मचारी प्रदर्शन भी कर रहे हैं और खुद को सुरक्षित जगह पर ट्रांसफर किये जाने की मांग कर रहे हैं। इस बीच आतंकवाद के खात्मे के लिए सुरक्षा बलों का ऑपरेशन भी निरंतर जारी है। आज भी हिज्बुल का एक कमांडर मारा गया है।

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देखा जाये तो सुरक्षा बलों के लिए कश्मीर में चुनौतियां इसीलिए बड़ी हो गयी हैं क्योंकि टार्गेट पता हो तो उसे निबटाना आसान होता है लेकिन अब मुश्किल यह है कि टार्गेट किसको करना है यह तय करना कठिन हो गया है। दरअसल कश्मीर में पिछले साल से पाकिस्तान की नई चाल के तहत हाइब्रिड आतंकवाद की समस्या खड़ी हुई है। इसके तहत पाकिस्तान ने कश्मीर में अधिक से अधिक पिस्तौल भेजने का नया चलन शुरू किया है। पिस्तौल ले जाना और छिपाना आसान होता है इसलिए आतंकवादी आजकल इन्हीं का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। आपने देखा होगा कि अब पहले की तरह एके-47 या बड़ी-बड़ी गनें लेकर आतंकवादी हमले नहीं करते। यह जो हाइब्रिड आतंकवादी होते हैं वह पैसे के लालच में उन्हें दिए गए एक या दो कार्यों को अंजाम देते हैं और उसके बाद अपने सामान्य जीवन में लौट जाते हैं। पहले कोई आतंकवादी बनता था तो सोशल मीडिया पर बम बंदूक के साथ फोटो खिंचवाकर डालता था और ज्यादा से ज्यादा प्रचार पाने के तरीके भी अपनाता था। ऐसे में पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए उसके चेहरे की पहचान करना आसान होता था लेकिन अब हाइब्रिड आतंकवादियों की पहचान मुश्किल इसलिए है क्योंकि वह आम लोगों के बीच का ही कोई चेहरा है जो घटना को अंजाम देने के बाद मासूम बन कर जनता के बीच में ही छिप जाता है।

पाकिस्तान की दिक्कत यह है कि उसे कश्मीर में मौजूदा शांतिपूर्ण माहौल, पर्यटकों की बढ़ती संख्या, यहां तेजी से हो रहे विकास कार्य, केंद्रीय योजनाओं के चलते यहां के लोगों के जीवन में आ रहे बड़े बदलाव, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों का परिसीमन शांति के साथ हो जाना और घाटी में कश्मीरी पंडितों का लौटना नहीं भा रहा है। पाकिस्तान परेशान इसीलिए भी है कि उसके इशारे पर चलते हुए कश्मीर को हिंसा की आग में झोंकने वाला सैयद अली शाह गिलानी अब इस दुनिया में नहीं रहा और पाकिस्तान का दूसरा गुर्गा यासीन मलिक टैरर फंडिंग मामले में जेल की सजा काट रहा है। इसलिए कश्मीर की शांति को भंग करने के लिए उसने हाइब्रिड आतंकवाद के तहत टार्गेट किलिंग का कारोबार शुरू किया है। इसके तहत उन लोगों की सूची बनाई गयी है जिन्हें मारा जाना है और उनके नाम कुछ स्थानीय आतंकवादियों को दे दिये गये हैं। पिछले कुछ वाकये दर्शाते हैं कि आतंकवादी उन्हें दिये गये नाम की पुष्टि करने के लिए व्यक्ति से उसका नाम पूछते हैं यदि वह वही नाम बताता है तो उसे गोली मार कर भाग जाते हैं।

जहां तक कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाये जाने की बात है तो इसका कारण यह भी माना जा रहा है कि हाल ही में प्रदर्शित फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के बाद कश्मीरी पंडितों के प्रति जो सहानुभूति पूरे देश में उपजी थी उसके चलते घाटी में उनकी वापसी का माहौल भी बनने लगा था। यही नहीं पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों की संपत्तियों से कब्जे हटाने की कवायद भी पाकिस्तान को रास नहीं आई थी। इसीलिए पाकिस्तान की ओर से फिर से 1990 जैसे हालात पैदा करने की साजिश रची गयी। लेकिन भारतीय सुरक्षा बलों के आगे पाकिस्तान की कोई भी साजिश आज तक ना तो सफल हो पाई है ना ही कभी हो पायेगी। पाकिस्तान कश्मीरी पंडितों को फिर से भगाने की कितनी भी कोशिश कर लेकिन उनको घाटी से बाहर नहीं भेजा जाएगा बल्कि उनका सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरण किया जाएगा। वैसे भी कश्मीरी पंडित कर्मियों को घाटी के बाहर भेजने की मांग पर राजी होकर जम्मू-कश्मीर प्रशासन सीमा पार से लिखी गयी ‘जातीय सफाये’ की किसी पटकथा का हिस्सा नहीं बन सकता। यही नहीं सरकार यह भी स्पष्ट कर चुकी है कि वार्षिक अमरनाथ यात्रा की योजना में भी कोई बदलाव नहीं होगा और यह निर्धारित समय 30 जून से 11 अगस्त तक चलेगी।

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बहरहाल, कश्मीर के मौजूदा माहौल में एक अच्छी बात यह है कि स्थानीय राजनीतिक दल और धार्मिक नेता एक सुर से हत्याओं का विरोध कर रहे हैं और कश्मीरी पंडितों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। कश्मीर में सभी समुदायों को यह समझना होगा कि चुनिंदा ढंग से की जा रही इन हत्याओं के पीछे एक नापाक मंशा है और ये हमले घाटी में हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच विभाजन पैदा करने के लिए नहीं बल्कि एक ‘निजाम’ स्थापित करने के लिए किये जा रहे हैं। आतंकवादी अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हर उस व्यक्ति की जान ले सकते हैं जो उनकी बात नहीं मानते, इसलिए मुसलमानों की भी हत्या की गयी है।

-नीरज कुमार दुबे

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