यूपी के दूसरे चरण के चुनाव में गन्ना नहीं, आलू होगा बड़ा मुद्दा

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अजय कुमार । Apr 17 2019 1:48PM

बात जब आलू की आती है तो आगरा और फतेहपुर सीकरी की कुल 57,879 हेक्टेयर जमीन पर आलू की खेती होती है। वहीं, हाथरस में 46,333 और अलीगढ़ में 23,332 हेक्टेयर जमीन पर आलू की पैदावार होती है। इसीलिए यह माना जा रहा है कि इन चारों सीटों पर आलू बड़ा चुनावी मुद्दा होगा। आलू किसानों की समस्याएं कम नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश में आठ लोकसभा सीटों के लिए दूसरे चरण में 18 अप्रैल को नगीना, अमरोहा, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, फतेहपुर सीकरी पर 85 उम्मीदवारों के बीच चुनावी जंग होगी। गत दिवस यहां यहां प्रचार थम गया था। दूसरे चरण में यूपी में फतेहपुर सीकरी में सबसे ज्यादा प्रत्याशी मैदान में हैं तो सबसे कम सात उम्मीदवार नगीना सीट पर है। दूसरे चरण में हेमामालिनी, राजबब्बर और कर्नाटक से आकर अमरोहा में गठबंधन प्रत्याशी बने दानिश अली सहित कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। बात मुद्दों की होती है तो लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना एक बड़ा चुनावी मुद्दा था, लेकिन दूसरे चरण (18 अप्रैल) में गन्ने की जगह आलू को बड़ा चुनावी मुद्दा माना जा रहा है। इस चरण के तहत उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों में से चार पर आलू का मुद्दा हावी रहने वाला है। 

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बात जब आलू की आती है तो आगरा और फतेहपुर सीकरी की कुल 57,879 हेक्टेयर जमीन पर आलू की खेती होती है। वहीं, हाथरस में 46,333 और अलीगढ़ में 23,332 हेक्टेयर जमीन पर आलू की पैदावार होती है। इसीलिए यह माना जा रहा है कि इन चारों सीटों पर आलू बड़ा चुनावी मुद्दा होगा। आलू किसानों की समस्याएं कम नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश के इन इलाकों में मध्य अक्टूबर से नवंबर के बीच आलू की बुआई तो फरवरी से मार्च के बीच खुदाई होती है। आलू खुदाई के समय किसान अपनी फसल का बहुत छोटा हिस्सा लगभग बीस प्रतिशत ही बेच पाता हैं। बाकी के आलू भंडार गृहों में पहुंच जाते हैं। यह आलू करीब छह माह तक बाजार में धीरे−धीरे आता रहता है। इस दौरान भंडार गृहों के मालिक आलू की प्रत्येक बोरी के लिए किसानों से 110 रुपये के करीब लेते हैं। आलू के सहारे जिंदगी बसर करने वाले तमाम किसान कहते हैं, 'हमारे यहां का प्रमुख मुद्दा आलू ही है। हमारे खेतों से मोटा आलू प्रति 50 किलो के हिसाब से 300−350 रुपये में बिक रहा है। मध्यम आकार का आलू 200−250 रुपये प्रति 50 किलो है और छोटा आलू की कीमत 100−150 रुपये है. बीते तीन सालों से ये दाम कम ही रहे हैं, खास कर नोटबंदी के बाद। 

आलू कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है तो कोल्ड स्टोरेज के मालिक भी किसानों की समस्याओं से रूबरू रहते हैं। आगरा के भंडार गृहों की एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश कहते हैं कि जिले में ऐसे 280 भंडार गृह हैं। प्रत्येक की क्षमता 10,000 टन आलू रखने की है। उत्तर प्रदेश में इस तरह के 1,800 भंडार गृह हैं। इनमें से 1,000 भंडार गृह अकेले आगरा और अलीगढ़ जिलों के इलाकों में बने हैं। नोटबंदी से पहले आगरा के भंडार गृहों में आलू की एक बोरी 600−700 रुपये में बिक रही थी, लेकिन नोटबंदी के चलते 500 और 1,000 रुपये के नोट बेकार हो गए जिससे भंडार गृहों से आलू की इन बोरियों की बिक्री रुक गई। इन्हें किसानों को मजबूरन 100−125 रुपये प्रति बोरी की कीमत पर बेचना पड़ा। यह कीमत बड़े आलू की थी। मध्यम और छोटा आलू की तो लागत भी नहीं निकल पाई।

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आलू से हटकर चुनाव की बात करें तो भौगोलिक दृष्टि से दूसरे चरण की 8 सीटों को दो हिस्से में बांटा जा सकता है। पहला हिस्सा मेरठ के आसपास का है, जबकि दूसरा हिस्सा आगरा और उसके आसपास का। इन आठ सीटों में चार सुरक्षित सीटें ऐसी हैं, लेकिन दलितों की राजनीति करने वाली बसपा का यहां कभी खाता नहीं खुल पाया। अबकी बसपा को हालात बदलने की उम्मीद है।

इन दोनों इलाकों में आगरा के पास की सीटों की बात करें तो इनमें आगरा के अलावा फतेहपुर सीकरी, बुलंदशहर, अलीगढ़ और हाथरस हैं। जिस तरह दूसरे चरण में मतदान होना है, इन सीटों पर जातीय गणित फेल होता नजर आ रहा है और इसका कारण है, हर सीट पर एक ही जाति के कई उम्मीदवारों का होना। दूसरे चरण की 8 सीटों में नगीना, बुलंदशहर, आगरा और हाथरस चार सुरक्षित सीटें हैं। मतलब साफ है कि चार सीटों पर हर पार्टी का दलित नेता ही उम्मीदवार होगा, ऐसे में जाति का वोट गणित फेल होना निश्चित है। सीट दर सीट विश्लेषण।

1. नगीना सु0 लोकसभा सीट (कुल वोटर 14.93 लाख) पर भाजपा सहित सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। यहां भाजपा−कांग्रेस और बसपा में कांटे की टक्कर होती दिख रही है। भाजपा से एक बार फिर अपने मौजूदा सांसद यशंवत सिंह को उतारा है। जबकि ओमवती कांग्रेस से और गठबंधन प्रत्याशी बसपा से गिरीशचंद्र है। 

भाजपा प्रत्याशी यशवंत सिंह के पास ताकत के रूप में पीएम मोदी का चेहरा, एयर स्ट्रायक व हिंदुत्व का मुद्दा है। यशवंत की अनुसूचित समाज में पकड़ मजबूत है। बात कमजोरी की कि जाए तो यशवंत के ऊपर पार्टी कार्यकताओं की उपेक्षा का आरोप लगता रहता है। कांग्रेस प्रत्याशी ओमवती−कांग्रेस की भी अच्छी पहचान हैं वह 4 बारकी  विधायक हैं एक बार सांसद भी रह चुकी हैं। अगड़ी जातियों में अच्छी पैठ के अलावा प्रियंका गांधी के आने में कांग्रेसी कार्यकताओं में उत्साह ओमवती के लिए फायदे का सौदा लग रहा है, लेकिन बार−बार दलबदल से जनता के बीच ओमवती की छवि धूमिल हुई है।

मतदाता− 622500 मुस्लिम,  325000 एससी, 153000 सवर्ण

2. आगरा लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा। भाजपा ने यहां इस बार प्रदेश के कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल पर भरोसा जताया हैं। गठबंधन से मनोज सोनी और कांग्रेस से प्रीता हरित प्रत्याशी बनाए गए है। इस सीट पर कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना है।

मतदाता−315000 वैश्य, 2,80000 एससी, 2,70000 मुस्लिम, 1,30000 बघेल 

3. फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट (कुल वोटर 16.92लाख) पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा। भाजपा ने यहां से राजकुमार चाहर को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर चुनाव मैदान में है। गठबंधन से श्रीभगवान शर्मा उर्फ गुड्ड पंडित प्रत्याशी हैं इस सीट पर कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना है।

मतदाता−3,20000 क्षत्रिय, 2,90000 ब्राह्मण, 2,00000 जाट, 1,50000 कुशवाहा

4. मथुरा लोकसभा सीट (कुल 17.86 लाख वोटर है) पर भाजपा ने जहां एक बार फिर हेमा मालिनी पर भरोसा जताया है, वहां गठबंधन से कुवंर नरेंद्र सिंह और कांग्रेस से महेश पाठक प्रत्याशी बनाए गए है। इस सीट पर कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना है। मथुरा से जाट, दलित मुस्लिम समीकरण के साथ−साथ ठाकुर वोटरों को लुभाने के लिए गठबंधन से रालोद ने ठाकुर उम्मीदवार नरेन्द्र सिंह पूरी ताकत लगाए हुए हैं, जिसकी काट में बीजेपी के नेता फिल्म स्टार धर्मेन्द्र के बहाने हेमा मालिनी को जाट बताने में लगे हैं। यानि यहां भी जाति का समीकरण उल्टा दिख रहा है। बात करें मुद्दों की तो मथुरा और वृंदावन में मंदिरों और धर्मशालाओं की हजारों की संख्या में वोटर है, जिनकी राय शहरी वोटरों से अलग−अलग है। शहर के लोग जहां स्थानीय समस्याओं के साथ−साथ अपने सांसद हेमा मालिनी को लेकर नाराज है। वहीं, इन मठों में रहने वालों के लिए धर्म और देश बड़ा मुद्दा है, ऐसे में पीएम मोदी से बड़ा चेहरा उनको नजर नहीं आता है।

मतदाता− 3,80000 जाट,  2,80000 ब्राह्मण,  2,10000 ठाकुर, 1,70000 मुस्लिम

5. अलीगढ़ लोस सीट (कुल वोटर 18.73 लाख) पर भाजपा ने यहां एक बार फिर वर्तमान सांसद सतीश कुमार गौतम पर भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद चौ, बिजेंद्र सिंह को लगातार 5 वीं बार उतारा है। गठबंधन से अजीत बालियान हैं। यहां सपा−बसपा व रालोद गठबंधन, कांग्रेस और शिवपाल यादव की पार्टी ने जाट उम्मीदवारों पर दांव लगाया है, राजनैतिक पंडित कहते हैं जाट वोटों का बंटवारा ही यहां बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत है। शिवपाल की प्रसपा ने दीपक चौधरी को मैदान में उतारा है। अलीगढ़ में स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रवाद का मुद्दा भारी है और उसका कारण है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जहां से कोई भी आवाज निकलती है तो उसका पूरे जिले पर प्रभाव देखने को मिलता है।

6. हाथरस सुरक्षित संसदीय सीट (कुल मतदाता− 18.31लाख) से भाजपा ने इगलास विधायक राजवीर सिंह दिलेर को उतारा है। कांग्रेस ने पूर्व विधायक रहे त्रिलोकी राम दिवाकर को टिकट दी है। गठबंधन ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजीलाल सुमन को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना है। 

मतदाता−1,50000 मुस्लिम, 5,00000 ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य 5,50000 जाट, यादव व अन्य 5,00000 एससी−एसटी

7. अमरोहा लोकसभा सीट (कुल 16,43 लाख मतदाता) पर त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है। भाजपा ने जहां एक बार फिर कंवर सिंह तंवर पर भरोसा जताया है। वहीं गठबंधन से बसपा कोटे से कुंवर दानिश अली और कांग्रेस से सचिन चौधरी प्रत्याशी बनाए गए है। इस सीट पर कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना है। 

मतदाता− 5,70,000 मुस्लिम, 2,75000 एससी, 1,25000 जाट, 1,25000 सैनी

8. बुलंदशहर लोकसभा सीट (कुल वोटर) पर नौ प्रत्याशी मैदान में है। मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है। भाजपा के वर्तमान सांसद डॉ भोला सिंह एक बार फिर मैदान में है। वहीं सपा−बसपा−रालोद के गठबंधन से बसपा के योगेश वर्मा मैदान में उतरे है। दूसरी ओर कांग्रेस ने पूर्व खुर्जा विधायक बंशी सिंह पहाडि़या को मैदान में उतारा है। मतदाता− 2,10000 ब्राह्मण,  3, 00000 मुस्लिम,  2,5000 एससी,  2,10000 वैश्य 

दूसरे चरण की खास बात यह भी रही कि चुनाव आयोग द्वारा विवादित बयान देने वाले भाजपा के स्टार प्रचारक और सीएम आदित्यनाथ योगी तथा बसपा सुप्रीमों मायावती पर चुनाव प्रचार के लिए प्रतिबंद्ध लगाए जाने के कारण यह नेता अपनी−अपनी जनसभाएं नहीं कर पाए।

- अजय कुमार

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