गरीबी को भुनाने में जुटी हैं कुछ पर्यटन कंपनियाँ
मुंबई में एशिया की सबसे बड़ी झोपड़ पट्टी वाले इलाके धारावी के गरीबों और उनकी गरीबी को देखने के लिए देश-दुनिया से खूब पर्यटक आते हैं, जिनके लिए वे खुशी-खुशी मोटा पैसा खर्च करते हैं।
जब देश की बढ़ती जनसंख्या पर बहस हो रही थी, तब रिलायंस कंपनी के संस्थापक धीरूभाई अंबानी ने कहा था कि यह बढ़ती जनसंख्या नए ग्राहक खड़े कर रही है। कारोबारियों का यह फलसफा इधर खूब फलफूल रहा है। एक तरफ देश में बढ़ती गरीबी पर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं लेकिन कारोबारी इसी गरीबी से मोटा माल काट रहे हैं। मुंबई में एशिया की सबसे बड़ी झोपड़ पट्टी वाले इलाके धारावी के गरीबों और उनकी गरीबी को देखने के लिए देश-दुनिया से खूब पर्यटक आते हैं, जिनके लिए वे खुशी-खुशी मोटा पैसा खर्च करते हैं। यही वजह है कि पर्यटकों को धारावी की सैर कराने वाली ग्लोबल एक्सचेंज और रियलिटी टूर एंड ट्रैवल जैसी कंपनियों का कारोबार दिनों-दिन बढ़ रहा है। रियलिटी टूर एंड ट्रैवल कहती है कि पर्यटन के मामले में नैतिकता का सवाल ही पैदा नहीं होता। हम अपनी कमाई का अस्सी फीसदी हिस्सा धारावी के गरीबों की मदद पर खर्च करते हैं।
वैसे फिल्म 'स्लमडॉग मिलेनियर' के बाद यहां पर्यटकों की भीड़ कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। धारावी के इर्दगिर्द की पृष्ठभूमि पर रची गई इस फिल्म में एक युवक को एक प्रतियोगिता में एक करोड़ रुपए जीतते हुए दिखाया गया। वैसे धारावी कहने को झोपड़ पट्टी वाला इलाका है लेकिन यहां स्थित छोटे-छोटे कारखाने प्रतिवर्ष लगभग एक अरब डॉलर का सामान बनाते हैं, जिनमें से ज्यादातर विदेशों में भेजा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि धारावी टूर से हमें कोई फायदा नहीं होता है लेकिन बाहर के लोगों को हमारी गरीबी में दिलचस्पी है। मुन्ना भाई एमबीबीएस फिल्म में मुन्ना (संजय दत्त) फोन पर सर्किट (अरशद वारसी) को एक बॉडी लाने को कहता है तो सर्किट ऐसे पर्यटक को फंसाता है, जो गरीबी और भूखा इंडिया देखना चाहता था।
बहरहाल विदेशियों की भारत की गरीबी और गरीबों के प्रति उमड़ते प्यार को कंपनियां भुनाने में बिल्कुल पीछे नहीं रहना चाहती हैं, इसलिए गरीब पर्यटन या पुअरिज्म कराने वाली दुकानें पूरे भारत में खुल गई हैं। कुछ साल पहले फिल्मकार मीरा नायर ने सलाम बालक ट्रस्ट शुरू किया, जोकि विदेशी पर्यटकों को लावारिस बच्चों और उनकी जिंदगी से रूबरू कराता है, हालांकि सलाम बालक ट्रस्ट के संपर्क में आने के बाद ऐसे कई लावारिस बच्चों की जिंदगी अब सामान्य हो गई है लेकिन ट्रस्ट ने बच्चों की गरीबी दिखाकर विदेशियों से जितने डालर व पाउंड कमाए, उसका हिसाब आंका नहीं जा सकता है। ट्रस्ट से जुड़े एक बच्चे ने बताया कि वह दो घंटे के दो से तीन सौ रुपए लेकर विदेशी सैलानियों को पहाड़गंज और रेलवे स्टेशन के आसपास के इलाके में फुटपाथों पर रहने वाले बच्चों की असली जिंदगी दिखाता है। देश की राजधानी में खुले आम बच्चों की गरीबी नीलाम हो रही है लेकिन बच्चों के अधिकारों के लिए बने राष्ट्रीय आयोग के अधिकारी चैन की नींद ले रहे हैं।
वैसे देश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन कृषि पर्यटन का बाजार फलफूल रहा है। महाराष्ट्र, हरियाणा, गोवा, पंजाब और केरल में कृषि पर्यटन का तेजी से विस्तार हो रहा है। राज्य सरकारें कृषि पर्यटन को बढ़ावा देकर किसानों की मदद कर सकती हैं। कृषि पर्यटन के लिए देश-विदेशी के सैलानी एक दिन के दस हजार रुपए तक खर्च करने को तैयार रहते हैं। कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने रूरल इको हॉली डे योजना चलाई है, जिसके उत्साहजनक नतीजे मिल रहे हैं। इसके तहत सैलानी झोपड़ीनुमा घरों में रहते हैं, चारपाई पर सोते हैं, गांव का खाना खाते हैं, गाय-भैंस का दूध निकालते हैं और खेत से ताजे गन्ने तोड़कर चूसने का आनंद लेते हैं। भारत के वे अमीर अपनी नई पीढ़ी को कृषि पर्यटन करवा रहे हैं, जिन्होंने कभी गांव-देहात नहीं देखा है। इस पीढ़ी को यह भी नहीं मालूम होता है कि आलू जमीन के नीचे पैदा होता है या पेड़ पर। बहरहाल जनसंख्या हमारे देश की मानव संसाधन की अमूल्य संपत्ति है। जिसमें अगर कृषि पर्यटन जैसे नए विषय को लेकर आगे बढ़ा जाए तो देश के लिए बेहतर है और इससे किसानों की आमदनी होगी लेकिन इसके लिए कार्ययोजना बनानी होगी।
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