गिरते पत्थरों के खतरे के बीच हो रही वैष्णो देवी यात्रा

सुरेश डुग्गर । Aug 23 2016 11:00AM

श्राइन बोर्ड ने यात्रा मार्ग में गिरते पत्थरों से होने वाली जान-माल की क्षति को रोकने की खातिर उपाय करने आरंभ किए हैं। लेकिन यह कवायद बहुत देर से की गई है क्योंकि भूस्खलन और गिरते पत्थर बीसियों श्रद्धालुओं की जानें ले चुके हैं।

वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर लाखों श्रद्धालु भूस्खलन और गिरते पत्थरों के खतरे के बीच अपनी यात्रा को जारी रखने को मजबूर हैं। वैसे श्राइन बोर्ड अब दावा करने लगा है कि वह इस समस्या का पक्का हल निकालने जा रहा है। मौसम साफ होने पर बोर्ड प्रशासन द्वारा मुआयना करने के बाद नए मार्ग को खोल दिया जाता है पर बार-बार खराब होता मौसम इस यात्रा मार्ग पर खतरे के स्तर को बढ़ाता रहता है।

यात्रा मार्ग में गिरते पत्थरों से होने वाली जान-माल की क्षति को रोकने की खातिर उसने उपाय करने आरंभ किए हैं। लेकिन यह कवायद बहुत देर से की गई है क्योंकि यात्रा मार्ग में भूस्खलन और गिरते पत्थर बीसियों श्रद्धालुओं की जानें ले चुके हैं और सैंकड़ों घायल होने वालों में से कई अपंग भी हो चुके हैं। इन पत्थरों के गिरने का कारण प्राकृतिक के साथ साथ श्राइन बोर्ड द्वारा निर्माण के दौरान इस्तेमाल किए गए विस्फोटक भी हैं।

पिछले कुछ सालों में भूस्खलन और यात्रा मार्ग के पहाड़ों से गिरते पत्थरों के कारण मरने वालों का आंकड़ा 80 के आसपास पहुंच चुका है। करीब 850 श्रद्धालु आए-दिन के ऐसे हादसों के कारण घायल भी हो चुके हैं। यूं तो यात्रा मार्ग पर भूस्खलन और पत्थरों के गिरने की घटनाएं पहले भी हुआ करती थीं। पहले ये बारिश के दौरान ही होती थीं परंतु जबसे श्राइन बोर्ड ने पहाड़ों को विभिन्न स्थानों से काट कर निर्माण कार्यों में तेजी लाई है ऐसे हादसों में भी तेजी आई है। हालांकि श्राइन बोर्ड के अधिकारी ऐसे हादसों के लिए प्रकृति को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन इस सच्चाई से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि जिन त्रिकुटा पहाड़ों पर वैष्णो देवी की गुफा है उसके पहाड़ लूज राक से बने हुए हैं जो निर्माण के लिए इस्तेमाल किए जा रहे विस्फोटकों के कारण कमजोर पड़ते जा रहे हैं।

नतीजतन वैष्णो देवी की यात्रा पर आने वाले एक करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के सिरों पर भूस्खलन और गिरते पत्थरों के रूप में मौत लटक रही है। इसका खतरा कितना है पिछले कई सालों से सामने आ रहा है। यूं तो श्राइन बोर्ड ने एहतिहात के तौर पर नए यात्रा मार्ग पर जगह-जगह इन गिरते पत्थरों से बचने की चेतावनी देने वाले साइन बोर्ड लगा रखे हैं तथा बचाव के लिए टीन के शेडों का निर्माण करवा रखा है परंतु गिरते पत्थरों को ये टीन के शेड नहीं रोक पा रहे, इस बात को श्राइन बोर्ड के अधिकारी मानते भी हैं। बरसात के दिनों में यह खतरा और बढ़ जाता है तो भीड़ के दौरान ये टीन के शेड थोड़े से लोगों को ही शरण दे पाते हैं।

खतरों की यात्रा बनती जा रही वैष्णो देवी की यात्रा में शामिल होने वाले लाखों श्रद्धालुओं का आखिर वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को ख्याल आ ही गया है। यात्रा मार्ग में गिरते पत्थरों से होने वाली जान-माल की क्षति को रोकने की खातिर उसने उपाय करने आरंभ किए हैं। लेकिन यह कवायद बहुत देर से की गई है। श्राइन बोर्ड ने माना है कि वैष्णो देवी मार्ग पर शूटिंग स्टोन के कारणों का पता लगाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट आफ राक मैकेनिक्स को जिम्मेदारी सौंपी गई थी है। इंस्टीट्यूट के दो सदस्यीय दल ने सर्वे भी किया। टीम ने बाणगंगा से पहाड़ों के नमूने लिए हैं। दल द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में शूटिंग स्टोन के कारणों का पता लगाने के साथ जोन की भी शिनाख्त भी की गई।

सर्वे मुकम्मल करने के बाद टीम ने बोर्ड को रोकथाम के उपाय भी बताए हैं। बोर्ड ने पहले से ही कुछ जगहों की शिनाख्त की है, जिन जगहों पर लगातार शूटिंग स्टोन की वारदातें हो रही हैं। टीम ने यात्रा मार्ग पर पहाड़ियों की स्थिति के बारे में जानकारी लेने के साथ ही उन इलाकों को चिन्हित कर दिया है जो भूस्खलन के लिहाज से खतरनाक है। बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही की जा रही है। इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि राज्यपाल ने यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए उचित कदम उठाने के निर्देश दिए हैं ताकि बरसात के समय यात्रा मार्ग पर पत्थर व पस्सियां गिरने की घटनाओं को रोका जा सके।

और वैष्णो देवी तीर्थस्थल पर आने वाले के लिए यह खबर बुरी हो सकती है कि अगर किसी दिन उन्हें यह समाचार मिले कि जिस गुफा के दर्शनार्थ वे आते हैं वह ढह गई है तो कोई अचम्भा उन्हें नहीं होना चाहिए। ऐसी चेतावनी किसी ओर द्वारा नहीं बल्कि भू-वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही है जिनका कहना है कि अगर उन त्रिकुटा पहाड़ियों पर, जहां यह गुफा स्थित है, विस्फोटों का प्रयोग निर्माण कार्यों के लिए इसी प्रकार होता रहा तो एक दिन गुफा ढह जाएगी।

हालांकि जिस प्रकृति के साथ कई सालों से खिलवाड़ हो रहा था उसने आखिर अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ सालों के भीतर इस तीर्थस्थल के यात्रामार्ग में होने वाली भूस्खलन की कई घटनाएं एक प्रकार से चेतावनी हैं उन लोगों के लिए जो त्रिकुटा पर्वतों पर प्रकृति से खिलवाड़ करने में जुटे हुए हैं। यह चेतावनी कितनी है इसी से स्पष्ट है कि भवन, अर्द्धकुंवारी, हात्थी मत्था, सांझी छत और बाणगंगा के रास्ते में होने वाली भूस्खलन की कई घटनाएं अभी तक 80 श्रद्धालुओं को मौत की नींद सुला चुकी हैं। जबकि जिन स्थानों पर भूस्खलन हुए हैं और चट्टानें खिसकीं और कई लोग दबकर मर गए उनके पास निर्माण कार्य चल रहे थे और सूत्रों के मुताबिक इन घटनाओं से कुछ दिन पहले पहाड़ को तोड़ने के लिए वहां विस्फोट भी किए गए थे।

भूस्खलन की इन घटनाओं के बारे में भू-वैज्ञानिक अपने स्तर पर बोर्ड के अधिकारियों को सचेत कर चुके थे कि गुफा के आसपास के इलाके में पिछले कई सालों से जिस तेजी से निर्माण कार्य हुए हैं उससे पहाड़ कमजोर हुए हैं। इन वैज्ञानिकों ने यह सलाह दी थी कि बोर्ड को सावधानी के तौर पर भू-विशेषज्ञों व अन्य तकनीकी लोगों से पहाड़ों-चट्टानों की जांच करवा कर जरूरी कदम उठाने चाहिए क्योंकि इसे भूला नहीं जा सकता कि हिमालय पर्वत श्रृखंला की शिवालिक श्रृंखला कच्ची मिट्टी (लूज राक) से निर्मित है। पर बोर्ड के अधिकारियों ने कथित तौर पर इस चेतावनी पर खास रूचि नहीं दिखाई।

दरअसल पिछले 30 सालों के दौरान जिस गति से गुफा के आसपास के इलाके में बोर्ड ने बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य शुरू करा रखे हैं उससे गुफा के आसपास के पहाड़ों और वनों को जबरदस्त नुक्सान उठाना पड़ रहा है। निर्माण कार्य के लिए पहाड़ों को विस्फोटक सामग्री से सपाट बनाने की प्रक्रिया निरंतर जारी है जिससे आसपास के पर्वत खोखले हो रहे हैं और भूस्खलन का खतरा बढ़ा है। आसपास के जंगलों के बर्बाद होने से स्थिति और खतरनाक हुई है। गुफा के आसपास के इलाके में जो घना वन कुछ साल पहले तक था, वह गायब है। अब केवल नंगे पहाड़ हैं। पेड़ कहां गए इसके बारे में बोर्ड के अधिकारी पूछने पर चुप रहते हैं या फिर गर्मियों में वनों में आग लगने को कारण बताते हैं। हर वर्ष आग क्यों लगती है यह कोई अधिकारी बता पाने की स्थिति में नहीं है। और आग न लग सके इसके लिए क्या कदम उठाए गए हैं इस बारे में भी बोर्ड खामोश है।

गौरतलब है कि बोर्ड की जिम्मेवारी यात्रा प्रबंधों के साथ-साथ यह भी है कि गुफा के आसपास के वनों व प्राकृतिक खूबसूरती को आंच न आए। आसपास के पहाड़ों और वनों पर राज्य वन विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है। वनों को सुरक्षित रखना बोर्ड की ही जिम्मेवारी है। वर्ष 1986 में तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने बोर्ड का गठन किया था तो वनों व आसपास की त्रिकुटा पहाड़ियों का नियंत्रण बोर्ड को देने का एक मात्र कारण यह भी था कि विभिन्न एजेंसियों के रहने से गुफा के आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को हानि पहुंच सकती है। इसलिए बोर्ड को ही सारा नियंत्रण सौंपा गया। लेकिन इस अधिकार का बोर्ड ने गलत मतलब निकाला और जब चाहा वनों के साथ-साथ त्रिकृटा पहाड़ियों को नुक्सान पहुंचाया। अगर ऐसा न होता तो गुफा के आसपास का इलाका जो कुछ साल पहले संकरा था वह आज मैदान जैसा कैसे बन गया।

एक व्यावसायिक संस्था बन चुके बोर्ड ने कभी इन चीजों की तरफ ध्यान नहीं दिया। समय-समय पर पहाड़ों से पत्थर गिरने और गुफा के आसपास के इलाके में प्रदूषण फैलने से भी जब बोर्ड नहीं जागा तो गुफा से निकलने वाली नदी बाण गंगा ने चेतावनी देनी शुरू कर दी। पिछले कुछ सालों से बाण गंगा के पानी का स्तर कम होता गया है। गुफा के आसपास बनी इमारतों के शौचालयों से काफी गंदगी भी इसमें गिर रही है जिससे इसका पानी पीने योग्य नहीं रह गया है। कुछ साल पहले तक बाण गंगा ही कटरा के लोगों के पेयजल की जरूरतें पूरी करती थी और अब वे पानी की कमी से जूझ रहे हैं क्योंकि इसका पानी पीने योग्य नहीं रह गया है। यही नहीं कुछ साल पहले भू-वैज्ञानिकों ने हिमालय पर्वत श्रृंखला का गहराई से अध्ययन कर यह मत निकाला था कि त्रिकुटा पर्वत हिमालय का वह हिस्सा है जिसकी उम्र काफी कम है और जो अभी कच्चे हैं। वैज्ञानिकों का मत था कि इन पर्वतों के साथ अधिक छेड़छाड़ खतरनाक साबित हो सकती है।

- सुरेश डुग्गर

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