बचाव में दिये अकबर के तर्क काम नहीं आये तो भाजपा ने भी छोड़ दिया साथ

19 महिला पत्रकारों के यौन शोषण का आरोप आखिरकार केन्द्र की मोदी सरकार पर भारी पड़ गया। आरोपों की शुरुआत में जो भारतीय जनता पार्टी 10 दिन से गुड़ खाए बैठी थी वो आखिर आरोप लगाने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या से तनाव में आती चली गई। आखिर अकबर का वतन लौटकर मानहानि का दावा ठोंकने और इसे राजनैतिक षड़यंत्र बताने का दावा फुस्स पटाखा साबित हो गया और दो दिन में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने अकबर से अपना पीछा छुड़ा लिया। आनन फानन में केन्द्रीय मंत्रीमंडल में विदेश राज्य मंत्री के पद से एमजे अकबर को इस्तीफा देना पड़ा।
मोदी मंत्रिमंडल से अकबर का इस्तीफा होने के फौरन बाद ही बताना शुरु हो गया है कि पीएम नरेन्द्र मोदी महिला वोटरों को नाराज नहीं करना चाहते थे और मीटू कैम्पेन के जरिए सामने आ रहीं महिलाओं को न्याय दिलाने का समर्थन करते हैं। इस सरकारी और सत्ताधारी दल के राग के बावजूद इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इस लेटलतीफी में काफी हद तक फजीती करा ली है। मीटू कैम्पेन के जरिए जब भारत में यौन शोषण के खुलासे होने शुरु हुए तो दो चार फिल्मी हस्तियों के बाद मोदी सरकार भी इससे बच नहीं सकी थी। सरकार के विदेश राज्य मंत्री और देश के नामी संपादकों में शुमार रहे एमजे अकबर पर उनकी पुरानी अधीनस्थ पत्रकार प्रिया रमानी, गजाला बहाव, मजली डै आदि ने यौन शोषण के आरोप लगा दिए।
महिला पत्रकारों ने अकबर पर जिस तरह के आरोप लगाए थे वो बहुत ही गंभीर किस्म के थे, साथ ही कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ किन तरीकों से शोषण हो रहे हैं, इस बात को उजागर करते थे। मोदी सरकार ने इन गंभीर आरोपों के बावजूद भी शुरुआत में मंत्री एमजे अकबर के प्रति उतना कड़ा रवैया नहीं दिखाया जिसका आरोप लगाने वाली महिलाएं और उनसे सहानुभूति रखने वाला जनसमुदाय उम्मीद कर रहा था।
अकबर के विदेश दौरे पर होने की बात कहकर मामले में अकबर को तलब करने को लटकाया गया। अकबर गंभीर यौन शोषण के अनेक आरोप लगे होने के बावजूद विदेश में भारतीय लोकतंत्र के प्रतिनिधि बने रहे और भारत सरकार की हैसीयत से सम्मान पाते रहे। यौन शोषण से जुड़े इस अहम मसले पर बीजेपी का लेटलतीफ रवैया कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता। अकबर पर बीजेपी की कई दिनों तक चुप्पी सवाल खड़े करती है साथ ही इससे महिलाओं के साथ खड़े आम जनमानस में सरकार की पिछले कुछ दिनों में कुछ हद तक विपरीत छवि बनी भी है।
बेशक ये केवल अभी आरोप ही हैं और आरोप लगाने वाली महिला पत्रकारों ने न तो एफआईआर दर्ज करवाई हैं और अकबर के खिलाफ किसी तरह के सबूतों पर भी अब तक खुलासा नहीं हुआ है मगर फिर भी इन आरोपों को हलके में नहीं लिया जा सकता। अगर ऐसा संभव होता तो मोदी कैबीनेट से अमित शाह के करीबी और हाईप्रोफाइल मंत्री एमजे अकबर को आखिरकार इस्तीफा नहीं देना पड़ता।
सरकार ने इस्तीफा लेकर या अकबर ने इस्तीफा देकर देश भर में चर्चा में छाए इस मुद्दे पर डैमेज कंट्रोल की कोशिश जरूर की है मगर आरोपों से इस्तीफे के बीच जितने दिन गुजरे हैं उनसे महिलाओं के साथ वाली मोदी सरकार की छवि को धक्का जरूर लगा है।
मौके पर अकबर के बहाने कांग्रेस ने मोदी सरकार और पूरी भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। इस मामले में देश के विभिन्न बुद्धिजीवियों ने भी पीड़ित महिलाओं के पक्ष में बयान दिए हैं तो नामी संपादकों और अखबारों ने एमजे अकबर पर लगे आरोपों को समर्थन देतीं कई विस्तृत घटनाओं को सोशल मीडिया पर उजागर किया है। नामी पत्रकारों और संपादकों के इन कई खुलासों को देश के लोग कैसे नकार सकते हैं।
इस मामले में सरकार पिछले कुछ दिनों में हर मोर्चे पर घिरी है। मोदी मंत्रिमंडल की महिला मंत्रियों को मीडिया के सवालों से बचकर निकलने वाले दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे तो भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा तक को भी उपलब्धियों पर बोलने के बीच अकबर पर सवाल किए जाने पर मौन रहकर निकलना पड़ा। सरकार को चौतरफा फंसते देख केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने जरूर मीटू कैम्पेन का समर्थन किया था मगर स्मृति ईरानी सरीखीं मोदी की करीबी मंत्री अकबर को लेकर सरकार को हमलों से बचाने में लगभग नाकामयाब ही रहीं थीं।
इस बीच भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष विजया राहटकर ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती कार्यक्रम के दौरान पीड़ित महिलाओं पर ही सवालिया निशान लगा दिया था। आखिरकार महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के मुद्दे पर पैबंद से लग रहे मंत्री एमजे अकबर से इस्तीफा लेने में ही पार्टी ने भलाई और अगले चुनाव में सुरक्षित भविष्य समझा।
-विवेक कुमार पाठक
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