Chai Par Sameeksha: नेपाल के बवाल से भारत ने क्या सीखा? Nepal Crisis और Trump Tariffs पर चर्चा

प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और कई वरिष्ठ नेताओं के घरों पर हमले हुए जिसके बाद उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा, संसद, सर्वोच्च न्यायालय और सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया।
प्रभासाक्षी समाचार नेटवर्क के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह नेपाल की स्थिति और ट्रम्प की टैरिफ से जुड़े मुद्दों की समीक्षा की गयी। प्रभासाक्षी संपादक नीरज दुबे ने प्रश्नों के उत्तर दिये। नीरज कुमार दुबे ने कहा कि नेपाल में आज जिस तरह लोकतंत्र भरभराकर ढह गया उससे देश के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। देखा जाये तो नेपाल की घटनाएं केवल राजनीतिक संकट नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति को झकझोर देने वाली चेतावनी हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारी जनाक्रोश और हिंसा के बीच इस्तीफा दे दिया।
प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और कई वरिष्ठ नेताओं के घरों पर हमले हुए जिसके बाद उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा, संसद, सर्वोच्च न्यायालय और सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया। सड़कों पर युवा प्रदर्शनकारियों ने न केवल मंत्रियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा बल्कि राजधानी काठमांडू तक को असुरक्षित बना दिया। यह दृश्य नेपाल की राजनीति और लोकतंत्र की दिशा पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। देखा जाये तो इस पूरे आंदोलन की पृष्ठभूमि में भ्रष्टाचार विरोधी जनाक्रोश और Gen-Z की अगुवाई वाला असंतोष है। सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्रतिबंध ने आग में घी डालने का काम किया, जिसे अंततः वापस लेना पड़ा। लेकिन तब तक हालात बेकाबू हो चुके थे। लगभग 20 से ज्यादा लोगों की जान गई, सैंकड़ों घायल हुए और नेपाल की नाजुक राजनीतिक व्यवस्था फिर से हिल गई।
इसे भी पढ़ें: नेपाल के Gen-Z के साथ फिर बड़ा धोखा हो गया क्या?
प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि नेपाल का यह संकट भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया के लिए चिंता का विषय है। इसके चलते भारत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा बढ़ानी पड़ी है। यदि अस्थिरता लंबी खिंचती है तो यह भारत की सुरक्षा और व्यापार दोनों को प्रभावित करेगी। यहां यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि हाल के वर्षों में नेपाल का झुकाव चीन की ओर बढ़ा है। लेकिन अब यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या काठमांडू की बीजिंग-नज़दीकी ने ही उसकी राजनीति को और उलझा दिया है? चीन की मदद से आर्थिक विकास की अपेक्षा थी, लेकिन जनता को न भ्रष्टाचार से मुक्ति मिली, न रोज़गार।
प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि देखा जाये तो दक्षिण एशिया में नेपाल को अक्सर “नए लोकतंत्र” के रूप में देखा जाता था। यदि यहां संस्थाएँ भीड़तंत्र के सामने कमजोर साबित होती हैं, तो यह क्षेत्रीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रतिष्ठा पर भी आघात है। जब संसद और सर्वोच्च न्यायालय जैसी संस्थाओं पर भीड़ हमला करती है, तो यह संकेत है कि जनविश्वास बुरी तरह टूटा है। सवाल यह है कि क्या नेपाल का लोकतंत्र इस बार फिर से खुद को पुनर्जीवित कर पाएगा, या हिंसा और अराजकता उसका स्थायी चेहरा बन जाएगी।
प्रभासाक्षी के संपादक नीरज दुबे ने अमेरिका को लेकर कहा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बयानबाज़ी और व्यवहार के बीच का अंतर कोई नई बात नहीं है। परंतु अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे एक कला का रूप दे दिया है। दो खबरें इसका ताज़ा उदाहरण हैं। एक ओर ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “मित्र” बताते हुए भारत-अमेरिका संबंधों को “असीम संभावनाओं वाला साझेदारी” करार देते हैं और व्यापार वार्ताओं के शीघ्र व सफल निष्कर्ष का भरोसा दिलाते हैं। दूसरी ओर वह यूरोपियन यूनियन से आग्रह करते हैं कि वह भारत और चीन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाए ताकि रूस को आर्थिक रूप से पंगु बनाया जा सके। यह विरोधाभास महज़ शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि ट्रंप की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
प्रभासाक्षी के संपादक नीरज दुबे ने कहा कि ट्रंप की कूटनीति में विरोधाभास दरअसल उनकी “डील-मेकिंग” शैली का हिस्सा है। वे मित्रवत भाषा बोलकर विश्वास का माहौल रचते हैं और साथ ही दंडात्मक कदमों की धमकी देकर अपने पक्ष को मज़बूत करते हैं। भारत को “स्वाभाविक साझेदार” बताने और 100 प्रतिशत टैरिफ की धमकी देने के बीच यही संतुलन दिखाई देता है। उनका लक्ष्य भारत को यह अहसास कराना है कि यदि वह अमेरिकी शर्तों के अनुरूप नहीं चला तो आर्थिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
अन्य न्यूज़













