आखिर क्यों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं भारत के यह खास संग्रहालय

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ऐतिहासिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक कृतियों के प्रदर्शन के साथ दिल्ली का राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय राष्ट्रीय पहचान बनाता है। जनपथ पर स्थित तीन मंजिले वर्तमान संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1949 में की गई तथा इसका अपना भवन का वर्ष 1960 में बनकर तैयार हुआ और इसे जनता के खोला गया।

संग्रहालय हमारी सभ्यता और संस्कृति के संवाहक हैं। पर्यटन को पुष्ट करने में इनका महत्वपूर्ण स्थान हैं। भारतीय पर्यटकों के साथ पूरी दुनिया से आने वाले पर्यटकों को हमारे देश की काल संस्कृति की जानकारी देकर न केवल उनका मनोरंजन करते हैं वरण ज्ञानवर्धन भी करते है। प्रदर्शित सामग्री को देख कर आश्चर्यचकित भी हो जाते हैं। भारत में यूं तो प्रायः सभी प्रमुख जगह संग्रहालय स्थापित हैं परन्तु यहां देश के चुनिंदा प्रसिद्ध संग्रहालयों की जानकारी आपको दे रहे हैं।

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सालारजंग संग्रहालय, हैदराबाद

हैदराबाद शहर में स्थित सालारजंग संग्रहालय सम्भवतः देश के सबसे विख्यात संग्रहालयों में है। यहां 1.1 मिलियन कलाकृतियों एवं कला खंडों का संग्रह इसे विशद एवं भव्य बनाता है। संग्रहालय की 36 दीर्घाओं में 43 हज़ार से अधिक कलाकृतियां, 9 हज़ार पांडुलिपियां एवं 47 हज़ार मुद्रित पुस्तकें प्रदर्शित की गई हैं। कलाकृतियां अपने आप में बेजोड़ हैं।

यहां के सर्वश्रेष्ठ संग्रह में से एक घड़ी कक्ष है। ऐतिहासिक समय वाली दुनिया भर की घड़ियों और समय देख-रेख उपकरणों की एक गैलरी है। इनमें 19वीं सदी की एक संगीतमय घड़ी को इंग्लैंड से लाया गया था। यहां रोम, इटली आदि देशों की कलाकृतियां भी प्रदर्शित की गई हैं। कुरान संग्रह यहां भी प्रभावशाली है। मुगल काल की प्राचीन वस्तुएं जैसे औरंगजेब के खंजर, टीपू सुल्तान की अलमारी, मुगल काल की पत्थर की मूर्तियाँ, कलाकृति, और राजा रवि वर्मा की चित्रकारी को जरुर देखें, जो सालार जंग के अद्भुत संग्रह का एक हिस्सा हैं। यह संग्रहालय 16 दिसंबर 1951 में नवाब मीर यूसुफ खान के महल में स्थापित किया गया था। हैदराबाद में इस संग्रहालय के साथ-साथ सिटी म्यूजियम, राज्य पुरातत्व संग्रहालय, बिड़ला विज्ञान संग्रहालय तथा हैदराबाद से 80 किलोमीटर दूर सुरेन्द्रपुरी का पौराणिक संग्रहालय भी दर्शनीय हैं।

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राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय, नई दिल्ली

ऐतिहासिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक कृतियों के प्रदर्शन के साथ दिल्ली का राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय राष्ट्रीय पहचान बनाता है। जनपथ पर स्थित तीन मंजिले वर्तमान संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1949 में की गई तथा इसका अपना भवन का वर्ष 1960 में बनकर तैयार हुआ और इसे जनता के खोला गया। संग्रहालय में करीब 2 लाख भारतीय एवं विदेशी मूल की वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यहां 2700 ईसा पूर्व के टेराकोटा और काँस्य से बनी वस्तुएं, मौर्यकाल की लकड़ी से बनी मूर्तियां, दक्षिण भारत की कलात्मक वस्तुएं, सिन्धुघाटी सभ्यता, गुप्तकाल, गंधर्वकाल, मुगलकाल, बौद्धयुग तथा मोहनजोदड़ों के समय की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं। मोहनजोदड़ों सभ्यता की नृत्य करती मूर्ति, वादय यंत्र, भित्ती चित्र, कपड़े, हथियार आदि प्रदर्शित किये गये हैं। संग्रहालय को रूचि के साथ देखने वालों को शायद एक दिन कम पड़े।

संग्रहालय में विश्व के अत्यन्त लघु चित्रों का भी अच्छा संग्रह है। संग्रहालय में पुरातत्व, मानव शास्त्र, मध्य एशियाई पुरावशेष, पाण्डुलिपियां, मुद्रा एवं अभिलेख, पूर्व कोलंबियन एवं पश्चिमी कलाएं तथा प्रागैतिहासिक और पुरातत्व आदि दीर्घाएं बनाई गई हैं। यहां एक संरक्षण प्रयोगशाला, पुस्तकालय, प्रकाशन विभाग एवं छायाचित्रण अनुभाग भी बनाये गये हैं। यहां कलाकृतियों का फोटो प्रलेखन किया जाता है तथा इसके प्रिन्ट शोध करने वालों को उपलब्ध कराये जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति से संबन्धित पुस्तकें भी खरीदने के लिए यहां उपलब्ध हैं। यहीं पर कोटा की झाला हवेली के चित्रों को संजोकर सुरक्षित रखा गया है। प्रयोगशाला के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। नई दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित करीब 11 एकड़ में फैला राष्ट्रीय रेल संग्रहालय बच्चों के लिये विशेष रूप से दर्शनीय है जहां भारत की रेल विकास यात्रा को अत्यंत रोचकता से दर्शाया गया है।

भारतीय संग्रहालय, कोलकाता

कोलकाता के हावड़ा जंक्शन से 4 किलोमीटर दूर स्थित एशिया का सबसे पुराने एवं भारत के सर्वश्रेष्ठ भारतीय संग्रहालय में 4 हजार वर्ष प्राचीन जीवाष्म, कलश में बुद्ध की अस्थियों के अवशेष, प्राचीन वस्तुएं, ममी, युद्धसामग्री, आभूषण, कंकाल, प्राचीन सिक्के, दुर्लभ मुगल चित्र, उल्का पिण्ड आदि 5 वीं से 17 वीं शताब्दी की प्राचीन वस्तुओं का संग्रह किया गया हैं। संग्रहालय को 6 खण्डों में तथा दो चित्रशालाओं में बांटा गया है। यहां खण्डों में अनेक विथिकाएं बनी हैं। यह संग्रहालय करीब 8 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में स्थित है। इसकी स्थापना ऐशियाटिक सोसायटी के प्रयासों से 2 फरवरी 1814 ई. को की गई। वर्ष 1857 में भारतीय संग्रहालय का अपना निजी भवन बना तथा 1883 ई.में इसमें चित्रशाला की स्थापना की गई। कोलकाता में विश्वविद्यालय के शताब्दी भवन में स्थित आशुतोष म्यूजियम ऑफ इंडियन आर्ट और मेट्रोपोलियन बाई पास सर्कल के जंक्शन पर साइंस सिटी म्यूजियम भी दर्शनीय हैं।

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प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय, मुम्बई

मुम्बई में यह संग्रहालय इंडिया गेट के समीप तिमंजिले आयताकार भवन में करीब 3 एकड़ क्षेत्र में स्थित है। यहां प्राचीन भारतीय इतिहास के साथ विदेशी करीब 50 हज़ार वस्तुओं का अद्भुत संग्रह प्रदर्शित किया गया है। यहां सामग्री को तीन खंडों कला, पुरातत्व एवं प्राकृतिक इतिहास में विभक्त किया गया है। सिंधुघाटी सभ्यता से लेकर प्राचीन गुप्त एवं मौर्य समय की एतीहसिक वस्तुओं को सजाया गया हैं। विभिन्न कालों की चित्रशैलियां, प्राचीन पांडुलिपियां, हाथीदांत, सोने, चांदी एवं अन्य धातुओं की लकाकृतियां, अस्त्र-शस्त्र, भारतीय वन्यजीव, वस्त्र गैलरी, प्रसिद्ध चित्रकारों के चित्र, खुदाई में प्राप्त अवशेष एवं मूर्तियां देखने को मिलती हैं। संग्रहालय के आधुनिकरण के तहत 2008 में पूर्व खण्ड में पांच नई दीर्घाएं, संरक्षण स्टूडियो, प्रदर्शनी गैलरी एवं एक सेमिनार कक्ष की सुविधा विकसित की गई। संग्रहालय की अपना समृद्ध पुस्तकालय भी है। संग्रहालय की स्थापना 1922 में कई गई थी।

श्रीकृष्ण संग्रहालय, कुरुक्षेत्र

भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों को जानना है तो कुरूक्षेत्र में बना श्रीकृष्ण संग्रहालय अवश्य देखिए। इसका निर्माण कुरूक्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा 1987 ई. में किया गया था। इस भवन के साथ दो अन्य भवन भी हैं जिन्हें मल्टीमीडिया महाभारत और गीता गैलरी के नाम से जाना जाता है। जिसकी स्थापना 2012 ई. में की गई थी। यहां संग्रहालय में महाभारत काल के दुर्लभ पौधे भी लगाये गये हैं। वनस्पति शास्त्र के ज्ञाताओं एवं प्रेमियों के लिए यह वनस्पति वृक्ष विशेष महत्व के हैं। यहां परिजात, खेजड़ी, कदम्ब, रूद्राक्ष, सेव, चम्पा, कनक, तुलसी आदि के सैकड़ों पौधे मिलते हैं।

श्रीकृष्ण संग्रहालय को तीन खण्डों एवं नौ दीर्घाओं में बांटा गया है।वर्ष 1991 ई. में संग्रहालय में प्रथम खण्ड में स्थानन्तरित किया गया तथा वर्ष 1995 ई. में दूसरे खण्ड तथा 2012 ई. में तीसरा खण्ड जोड़ा गया। संग्रहालय में प्रवेश करते ही एक मानचित्र पर 48 कोस कुरूक्षेत्र के दर्शन होते हैं। संग्रहालय में विभिन्न कालों एवं शैलियों में निर्मित धातु, काष्ठ एवं हाथी दांत पर उत्कीर्ण कृष्ण की लीलाएं, प्रागेतिहासिक काल की पुरातत्व सामग्री, लघुचित्र, ताड़पत्रों पर बने चित्र, भगवत गीता, महाभारत एवं भागवत की पाण्डुलिपियां, आन्ध्र प्रदेश की चर्म कठपुतलियां, शर-शैय्या पर लेटे भीष्मपितामह एवं वीर अभिमन्यु के वध की झांकी, कागज पर बनी मधुबनी चित्रकला में श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर कंस वध तक प्रमुख प्रसंगों का चित्रण देखने को मिलता हैं। इसके साथ ही श्रीकृष्ण कथा पर आधारित मनोरम झांकियों में नवजात कृष्ण को यमुना पार ले जाते हुए वासुदेव, सखाओं के संग माखन चोरी करते हुए बालकृष्ण, बानासुर का वध करते हुए कृष्ण, गोवर्धन पर्वत को धारण करते हुए, कालिया नाग का मर्दन करते हुए, रासलीला, राधा-कृष्ण मिलन, अर्जुन को संदेश देने की सुन्दर झांकियां बनाई गई हैं। एक झांकी में भीष्म को प्रतिज्ञा लेते हुए दर्शाया गया है। चक्रव्यूह की रचना तथा पाण्डव स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हुए दिखाये गये हैं। संग्रहालय में गीता के उपदेश पर 11 मिनिट का एक शो दिखाया जाता है। यह संग्रहालय देखकर दर्शक उस लोक में चले जाते हैं जिसमें कृष्ण जन्म थे और उन्होंने विविध लीलाएं की थी। कृष्ण लोक का यह मायावी संसार आपको वर्षों तक याद रहेगा।

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इनके साथ ही चेन्नई का एग्मोर संग्रहालय, दिल्ली में गुड़िया संग्रहालय, मथुरा प्राचीन मूर्तियों का संग्रहालय, जयपुर के हर्बर्ट हाल एवं सिटी पैलेस संग्रहालय एवं अहमदाबाद का केलिको म्यूजियम ऑफ़ टेक्सटाइल भी देश के महत्वपूर्ण संग्रहालयों में आते हैं।

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

पर्यटन विषयों पर विशेषज्ञ लेखक होने के साथ वरिष्ठ पत्रकार हैं

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