AAP, भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामने हैं ये चुनौतियां ? कौन मारेगा असल बाजी

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चुनावों के मौसम में अक्सर ये देखा जाता है कि हवा किस तरफ है। वैसे रविवार की खिलखिलाती धूप के बाद सोमवार को काले बादल छाए हुए हैं। चुनावी बिगुल बजने के बाद से दिल्ली की जनता अपने-अपने विषय को गूगल-बाबा के समक्ष जाकर खोज रही है। पिछले 7 दिनों की बात करें तो जेएनयू कीवर्ड सबसे ज्यादा सर्च हुआ।

चुनावों के मौसम में अक्सर ये देखा जाता है कि हवा किस तरफ है। वैसे रविवार की खिलखिलाती धूप के बाद सोमवार को काले बादल छाए हुए हैं। चुनावी बिगुल बजने के बाद से दिल्ली की जनता अपने-अपने विषय को गूगल बाबा के समक्ष जाकर खोज रही है। हम पिछले 7 दिनों की बात करें तो जेएनयू कीवर्ड सबसे ज्यादा सर्च हुआ। हालांकि केजरीवाल से ज्यादा एक फीसदी ज्यादा मनोज तिवारी का नाम सर्च किया गया।

केजरीवाल के नाम को सर्च करने के पीछे वजह सिर्फ एक ही थी, वो था कि केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली विधानसभा सीट से कौन से प्रत्याशी के खड़े होने की संभावना है। 21 तारीख नामांकन का आखिरी दिन है लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले। कहने वाले कहते हैं कि केजरीवाल के खिलाफ दोनों पार्टियों के एक भी नेता चुनाव लड़ने को राजी ही नहीं हो रहे हैं। बाकी जानकारी 21 जनवरी को मिल ही जानी है।

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लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी लेकिन अभी भी कुछ सीटें दोनों पार्टियों ने छोड़ दी। 

पार्टियां क्यों नहीं घोषित कर रहीं अपने उम्मीदवार

70 सीटों वाले चुनाव में भाजपा ने 57 उम्मीदवार घोषित कर दिए। लेकिन 13 उम्मीदवारों पर अभी भी गहन चिंतन चल रहा है। इसके पीछे की वजह यह है कि नई दिल्ली विधानसभा से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ ज्यादातर नेताओं ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया तो बची हुई सीटें सहयोगी पार्टियों को देने के बारे में विचार चल रहा है। यानी कि दिल्ली में भी भाजपा सहयोगियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली है। जिसमें जनता दल यूनाइटेड, अकाली दल और जजपा शामिल हैं। हालांकि किसे कितनी सीटें दी जाए इस मुद्दे पर तो अभी तक निर्णय नहीं हो पाया है। हालांकि राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ भी बातचीत जारी है। 

रही बात कांग्रेस की तो वह लगातार कोशिश कर रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बेटी लतिका दीक्षित को चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाए। जबकि दूसरी तरफ चर्चा आरजेडी के साथ सीट-बंटवारे को लेकर चल रही थी क्योंकि आरजेडी 10 फीसदी सीट की मांग कर रही थी लेकिन अंत में तय हुआ कि आरजेडी चार सीटों- बुराड़ी, किराड़ी, पालम और उत्तमनगर से ही चुनाव लड़ेगी। उम्मीद जताई जा रही है कि सोमवार देर रात तक दोनों पार्टियां अपने बचे हुए उम्मीदवारों का ऐलान कर सकती है।

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पार्टियों के आंकड़ें क्या बताते हैं ?

70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में फिलहाल 4 सीट बीजेपी के पास है, जबकि 5 आप विधायक पार्टी छोड़ जा चुके हैं। बची हुई 61 सीटों में से पार्टी ने 15 विधायकों के टिकट काटे हैं। जिसके बाद आम आदमी पार्टी पर पैसे लेकर टिकट बेचने के आरोप भी लगे। जबकि भाजपा ने अपने सभी मौजूदा विधायकों को टिकट दिया। साथ ही भाजपा ने नए चेहरों पर भी दांव खेला। लेकिन जब बात कांग्रेस की करते हैं तो पुराने चेहरे याद आ जाते हैं। क्योंकि शीला दीक्षित की कैबिनेट के 5 मंत्रियों को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है।

कौन है शीला कैबिनेट के 5 उम्मीदवार ?

शीला कैबिनेट में मंत्री रहे अरविंद सिंह लवली, हारून यूसुफ, कृष्णा तीरथ, डॉ. अशोक वालिया और नरेंद्र नाथ पर पार्टी ने भरोसा जताया है। जानकार बताते हैं कि पार्टी की अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी ने तमाम पुराने चेहरों के साथ बैठक की और अधिक-से-अधिक सीटें जीतने पर जोर दिया। आपको याद हो तो 2019 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित के अनुभवों के आधार पर दिल्ली की 7 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा था और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। हालांकि एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई थी। लेकिन अब शीला दीक्षित हमारे बीच रहीं नहीं ऐसे में पार्टी ने शीला के नेतृत्व में लड़ने वाले नेताओं पर अपना दांव खेला है।

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आम आदमी पार्टी का हाल क्या है ?

आम आदमी पार्टी बीते पांच सालों के कामकाजों को लेकर जनता के बीच पहुंची है और उन्हीं के आधार पर वोट की मांग कर रही। हालांकि केजरीवाल ने नामांकन से पहले 10 कामों का गारंटी कार्ड जारी किया है। जिसमें केजरीवाल ने  200 यूनिट तक की बिजली मुफ्त योजना जारी रखने, मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं, दो करोड़ पौधे लगाने, स्वच्छ यमुना नदी और अगले पांच वर्ष के दौरान दिल्ली में प्रदूषण कम करने जैसे वादें किए। लेकिन जब हम बीते पांच सालों में गौर करते हैं तो एडीआर की रिपोर्ट सामने आती है। जो बताती है कि केजरीवाल सरकार ने कुल 44 विधेयक पास किए। जिनमें से 2015 में 23 विधेयक तो बाकी के चार सालों में 21 विधेयक पास हुए। मने सरकार बनी तो जमकर कामकाज दिखाई दिया लेकिन फिर कामकाज ठंडा पड़ गया। 

एक थो और बात है इसमें... वो ये है कि पास हुए 44 विधेयकों में से 34 विधेयक एक ही दिन में पास हो गए। जानकार कहते हैं कि एक या दो दिन में विधेयक को पेश करके उसी दिन पास कर दिया जाना संविधान के खिलाफ है। हालांकि अब तो यह लोकसभा में भी देखा जाता है। 

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अब जाते-जाते एक मजेदार बात बताते हैं। दिल्ली कांग्रेस ने ट्विटर पर लिखा- कांग्रेस बनाम कौन ? congress vs who ? भईया कांग्रेस की इस बात को आम आदमी पार्टी ने दिल में ले लिया और रिप्लाई दिया सदके जावां तुम्हारे कॉन्फिडेंस पर... वैसे भईया सरकार किसी की भी बने कॉन्फिडेंस तो कांग्रेस का दमदार है...

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