International Day of Democracy: आधुनिक तकनीक एवं मानवीय करुणा है लोकतंत्र की बुनियाद

International Day of Democracy
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ललित गर्ग । Sep 15 2025 11:02AM

आज की परिस्थितियों में लोकतंत्र को सबसे बड़ी चुनौती है-मूल्यों का ह्रास। केवल बाहरी ढाँचे और प्रक्रियाएँ ही लोकतंत्र को जीवित नहीं रख सकतीं। जब तक नागरिकों में नैतिक चेतना, कर्तव्य-बोध और सामाजिक सरोकार नहीं होंगे, तब तक लोकतंत्र केवल बहुमत की तानाशाही बनकर रह जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र ने 15 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के रूप में नामित किया है ताकि दुनिया भर में लोकतंत्र और उसके मूल सिद्धांतों का जश्न मनाया जा सके। विश्व समुदाय ने पहली बार 2008 में अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाना नए या पुनर्स्थापित लोकतंत्रों के पहले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की 20वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में स्वीकार किया, जिसने लोगों को दुनिया भर में लोकतंत्र को बढ़ावा देने पर ज़ोर देने का अवसर प्रदान किया। इस दिन का मुख्य उद्देश्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की समीक्षा करना, लोकतंत्रीकरण और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना और दुनिया भर की सरकारों से नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करने और लोकतंत्र में सार्थक एवं सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करने का आग्रह करना है। साथ ही, सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा का उद्देश्य 16 सतत विकास लक्ष्यों के साथ लोकतंत्र को संबोधित करना, सूचना तक जनता की पहुँच सुनिश्चित करना, मौलिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करना, राष्ट्रीय कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का पालन करना और प्रभावी, जवाबदेह, समावेशी संस्थाओं का विकास करना है। यह दिन दुनिया भर में लोकतंत्र को बढ़ावा देने और मजबूत करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है, जिसमें स्वतंत्र प्रेस और मौलिक स्वतंत्रताएं शामिल हैं, जिन्हें सेंसरशिप और शारीरिक हिंसा के बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ता है। 

लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली ही नहीं है, बल्कि एक ऐसा ढाँचा है जो मानवाधिकारों की सुरक्षा, कानून के शासन और निर्णय लेने में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करता है। 2024 में, दुनिया की लगभग आधी आबादी वाले 50 से ज्यादा देशों में चुनाव हुए, जिससे वैश्विक स्तर पर समाजों के भविष्य को आकार देने में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस केवल एक प्रतीकात्मक दिवस भर नहीं है, बल्कि यह अवसर है कि हम यह परखें कि लोकतंत्र अपने आदर्श रूप में कितना जीवंत है और वास्तविक जीवन में कितनी चुनौतियों से जूझ रहा है। इतिहास साक्षी है कि जब-जब लोकतंत्र ने अपनी जड़ों को मजबूत रखा, तब-तब समाज और राष्ट्र ने अभूतपूर्व प्रगति की, लेकिन जब-जब लोकतांत्रिक मूल्यों से खिलवाड़ हुआ, तब-तब अराजकता, अशांति, हिंसा, आतंक और तानाशाही प्रवृत्तियां हावी हो गईं। आज सबसे बड़ी चिंता यह है कि लोकतांत्रिक देशों में ही लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

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नेपाल में पिछले दिनों से चल रही अस्थिरता और आंदोलन यह दर्शाती है कि वहां की राजनीतिक नेतृत्व ने जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के बजाय सत्ता संघर्ष को वरीयता दी। बार-बार सरकार बदलना, नीतियों में असंगति, शासनगत भ्रष्टाचार और आमजन की समस्याओं की अनदेखी लोकतंत्र के मूल स्वरूप को ही चोट पहुँचाती है। यही हाल पाकिस्तान का है जहां लोकतांत्रिक ढांचा होते हुए भी सेना और सत्ता की सांठगांठ ने लोकतंत्र को खोखला बना दिया है। वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी और विपक्षी नेताओं पर दमन लोकतांत्रिक आदर्शों का उपहास है। बांग्लादेश में हाल के आंदोलनों ने यह स्पष्ट कर दिया कि सत्ता का केंद्रीकरण लोकतंत्र का गला घोंटता है। वहां आम जनता और छात्रों की आवाज़ को कुचलने का प्रयास हुआ जिससे असंतोष उभरकर सामने आया। भूटान जैसे छोटे राष्ट्र में भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपेक्षित रूप में मजबूत नहीं हो पा रही और सत्ता पर कुछ वर्गों का वर्चस्व देखा जा रहा है। ये उदाहरण बताते हैं कि लोकतंत्र केवल चुनाव कराने या संसद चलाने का नाम नहीं है। लोकतंत्र का अर्थ है नागरिक अधिकारों की रक्षा, समान अवसर, पारदर्शी शासन और जनता के प्रति जवाबदेही। जब नेता जनता से कट जाते हैं, जब संस्थाएं निष्पक्ष न रहकर सत्तापक्ष की कठपुतली बन जाती हैं, जब अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाया जाता है, तब लोकतंत्र अपने असली स्वरूप से दूर हो जाता है। यही वजह है कि आज लोकतंत्र विश्वव्यापी संकट से गुजर रहा है।

आज दुनियाभर की शासन-प्रणालियों में घर कर रही समस्याओं के समाधान का रास्ता लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनर्स्थापना में है। सबसे पहले राजनीतिक दलों को आंतरिक लोकतंत्र अपनाना होगा, क्योंकि यदि दलों में ही तानाशाही हो तो राष्ट्र में लोकतंत्र कैसे जीवित रहेगा? दूसरा, स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र मीडिया और मजबूत निर्वाचन प्रणाली लोकतंत्र की रीढ़ हैं, इन्हें किसी भी हालत में कमजोर नहीं होने देना चाहिए। तीसरा, नागरिक समाज और युवाओं को लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग और सक्रिय रहना होगा। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘लोकतंत्र जनता की आज्ञाकारिता नहीं, जनता की जागरूकता पर टिका है।’ निश्चित है कि लोकतंत्र सर्वाेत्तम शासन प्रणाली है, परंतु यह तभी प्रभावी हो सकता है जब इसके मूल तत्व-पारदर्शिता, जवाबदेही, समानता और स्वतंत्रता को व्यवहार में उतारा जाए। यदि लोकतंत्र सही ढंग से चले तो इससे उन्नत शासन प्रणाली नहीं हो सकती। लोकतंत्र केवल व्यवस्था नहीं, बल्कि एक सतत साधना है, और उसकी रक्षा का दायित्व शासकों से कहीं अधिक जनता पर है। लोकतंत्र केवल एक शासन-प्रणाली नहीं है, बल्कि यह जीवन-मूल्यों और मानवीय गरिमा का उत्सव है। इसमें शासक और शासित का भेद मिट जाता है और सत्ता का वास्तविक केन्द्र जनता होती है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी शक्ति उसकी आत्मा में निहित है-जनता की सक्रिय भागीदारी और संवाद। जहाँ जनता मौन रहती है और केवल शासकों पर सब कुछ छोड़ देती है, वहाँ लोकतंत्र धीरे-धीरे खोखला हो जाता है और तानाशाही का रूप धारण कर लेता है। लोकतंत्र की सफलता का मूलमंत्र है-उत्तरदायित्व और पारदर्शिता। यदि सत्ता में बैठे लोग अपने को जनता से ऊपर समझने लगें, भ्रष्टाचार और पक्षपात में डूब जाएँ, तो लोकतंत्र के मूल तत्व ही नष्ट हो जाते हैं। 

आज की परिस्थितियों में लोकतंत्र को सबसे बड़ी चुनौती है-मूल्यों का ह्रास। केवल बाहरी ढाँचे और प्रक्रियाएँ ही लोकतंत्र को जीवित नहीं रख सकतीं। जब तक नागरिकों में नैतिक चेतना, कर्तव्य-बोध और सामाजिक सरोकार नहीं होंगे, तब तक लोकतंत्र केवल बहुमत की तानाशाही बनकर रह जाएगा। जैसा कि प्रायः कहा गया है-‘लोकतंत्र वही है जहाँ जनमत की गरिमा सुरक्षित हो, जनता की आवाज़ सुनी जाए और शासन जनता के कल्याण के लिए कार्य करे।’ लोकतंत्र का दूसरा पहलू है-विकेन्द्रित शक्ति। यदि सारे निर्णय केवल शीर्ष पर सीमित रहेंगे और गाँव, नगर, पंचायत या स्थानीय निकाय निष्क्रिय रहेंगे तो लोकतंत्र अधूरा रहेगा। असली लोकतंत्र वही है जहाँ निर्णय जनता की ज़मीनी ज़रूरतों के अनुसार हों और सत्ता की प्रक्रिया नीचे से ऊपर की ओर बहे। यह संवाद और सहमति का मार्ग है, संघर्ष और हिंसा का नहीं। इसे केवल व्यवस्था मानना भूल है; यह तो एक संस्कार और संस्कृति है, जो सतत् आत्मावलोकन, आत्म-सुधार और समावेशिता की माँग करता है।

अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाते हुए इसका सार यही है कि लोकतंत्र को बचाए रखने और उसे प्रभावी बनाने के लिए केवल संविधान और चुनाव काफी नहीं हैं; उसकी आत्मा को जीवित रखना आवश्यक है, जो जन-जागरण, नैतिकता और उत्तरदायित्व से ही संभव है। इस वर्ष लोकतंत्र दिवस मनाते हुए ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई और लोकतंत्र’ के विषयों पर ज़ोर दिया जा सकता है, जिसके तहत एआई के जिम्मेदार उपयोग से लोकतंत्र के मूल्यों को मजबूत करने की बात कही जाती है। यह दिन सभी के लिए एक सुरक्षित, समावेशी और अधिक जीवंत डिजिटल भविष्य बनाने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों, भागीदारी, और मानवाधिकारों पर सामूहिक रूप से काम करने के महत्व पर भी प्रकाश डालता है। 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता और आधुनिक तकनीक के इस युग में लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम तकनीक को केवल सुविधा का साधन न मानकर पारदर्शिता, संवाद और मानवीय मूल्यों को सशक्त करने का माध्यम बनाएँ। एआई लोकतंत्र को अधिक सहभागी और जवाबदेह बना सकता है-निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को डेटा-संपन्न, सटीक और पारदर्शी बनाकर, जनता की आवाज़ को त्वरित रूप से शासन तक पहुँचाकर। लेकिन यदि तकनीक केवल सत्ता या कॉर्पाेरेट के हाथों का खिलौना बन जाए तो यह लोकतंत्र की आत्मा को कुचल सकती है। इसलिए ज़रूरी है कि तकनीकी नवाचार को मानवीय विवेक और करुणा से जोड़ा जाए। बढ़ती हिंसा, युद्ध और आतंक की स्थितियों का समाधान भी इसी में है कि हम संवाद, सहअस्तित्व और सहयोग को प्राथमिकता दें। लोकतंत्र को केवल राजनीतिक प्रणाली नहीं, बल्कि शांति और मानवीय गरिमा की संस्कृति बनाना होगा, जहाँ तकनीक मानवता की सेवा करे, विभाजन और विनाश का हथियार न बने।

- ललित गर्ग

लेखक, पत्रकार, स्तंभकार

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