छठ व्रत का सबसे बड़ा संदेश है— प्रकृति और मानव का सामंजस्य

तीसरे दिन सूर्यास्त के समय संध्या अर्घ्य और चौथे दिन प्रातःकाल उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर यह पर्व सम्पन्न होता है। इस समय घाटों पर हजारों दीपों की रौशनी, लोकगीतों की मधुर ध्वनि और श्रद्धा से भरे जनसागर का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
भारत की आध्यात्मिक परंपरा में छठ पर्व का स्थान सर्वोच्च और अद्वितीय है। यह न केवल सूर्य उपासना का पर्व है, बल्कि यह प्रकृति, पवित्रता और अनुशासन के प्रति मानव की गहरी श्रद्धा का प्रतीक भी है। आज से देश और दुनिया भर में छठ व्रती इस महान पर्व का अनुष्ठान आरंभ कर रहे हैं— घर-आंगन में शुद्धता, मन में भक्ति और जीवन में अनुशासन के साथ।
छठ पूजा का शुभारंभ आज नहाय-खाय से हो रहा है। इस दिन व्रती सबसे पहले पवित्र स्नान कर अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं। इसके बाद अरवा चावल, लौकी और चने की दाल का सादा प्रसाद बनाकर ग्रहण किया जाता है। यही भोजन आने वाले चार दिनों के कठिन व्रत की आध्यात्मिक भूमिका तैयार करता है। इस चरण में व्रती अपने घर को पवित्र करते हैं, रसोई में लहसुन-प्याज रहित सात्त्विक भोजन का ही प्रयोग किया जाता है और पूजा स्थल पर सूर्यदेव एवं छठी मैया का कलश स्थापित किया जाता है।
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कल खरना के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और सायंकाल गंगा, नदी या किसी जलाशय के किनारे प्रसाद अर्पित कर गुड़-चावल की खीर का नैवेद्य बनाते हैं। खरना का यह प्रसाद आत्मसंयम और श्रद्धा का प्रतीक होता है। इसके बाद व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं— यह तपस्या किसी अन्य व्रत से कहीं अधिक कठिन मानी जाती है।
तीसरे दिन सूर्यास्त के समय संध्या अर्घ्य और चौथे दिन प्रातःकाल उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर यह पर्व सम्पन्न होता है। इस समय घाटों पर हजारों दीपों की रौशनी, लोकगीतों की मधुर ध्वनि और श्रद्धा से भरे जनसागर का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
देखा जाये तो आज छठ केवल बिहार या पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है— इसकी आस्था की गूंज दिल्ली, मुंबई, कोलकाता से लेकर नेपाल, मॉरीशस, दुबई, अमेरिका और लंदन तक सुनाई देती है। प्रवासी भारतीय समुदाय इस पर्व को अपने सांस्कृतिक जीवन का धरोहर मानते हुए भव्य आयोजन करते हैं। भारत के साथ-साथ दुनिया के कई देशों में नदी-घाटों, झीलों और कृत्रिम तालाबों के किनारे सूर्योपासना के अनुष्ठान आज से आरंभ हो चुके हैं।
छठ व्रत का सबसे बड़ा संदेश है— प्रकृति और मानव का सामंजस्य। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन का आधार सूर्य की ऊर्जा और जल की शुद्धता में निहित है। व्रती जब निर्जल रहकर सूर्यदेव से संतान-सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं, तो वह केवल अपने परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व की कल्याणकामना करते हैं।
आज जब भौतिकता के युग में आस्था अक्सर औपचारिकता में बदलती जा रही है, छठ पर्व हमें याद दिलाता है कि भक्ति तब ही सार्थक है जब उसमें अनुशासन, संयम और शुद्धता का संगम हो। यही कारण है कि छठ आज भी भारतीय संस्कृति की आत्मा में जीवित है — भोर की अरुणिमा में, घाटों की गूंज में और हर उस हृदय में जो सूर्य की पहली किरण के साथ जीवन का उत्सव मनाता है।
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