विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवसः धरती संरक्षण की राह तलाशती दुनिया

World Environmental Protection Day
Creative Commons licenses
ललित गर्ग । Nov 26 2022 11:45AM

पर्यावरण संरक्षण की चेतना हमें हरित समृद्धि से समृद्ध जीवन बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह संदेश देती है कि हमारे स्वास्थ्य, हमारे परिवारों, हमारी आजीविका और हमारी धरती को एक साथ संरक्षित करने का समय आ गया है।

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस  प्रतिवर्ष 26 नवम्बर को मनाया जाता है। यह दिवस पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने एवं लोगों को जागरूक करने के सन्दर्भ में सकारात्मक कदम उठाने के लिए मनाते हैं। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के द्वारा आयोजित किया जाता है। पिछले करीब दो-तीन दशकों से ऐसा महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण से जुड़ी हुई है, बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, भयंकर तूफान, सुनामी और भी कई प्राकृतिक आपदाओं का होना आदि ज्वलंत समस्याएं विकराल होती जा रही है। ये समस्याएं जितनी गंभीर होती जा रही है, इससे निपटने के गंभीर प्रयासों का उतना ही अभाव महसूस हो रहा है। अमीर एवं शक्तिशाली देश इस वैश्विक समस्या के प्रति उदासीन है। गरीब देश इस समस्या से जूझ रहे हैं और उनके पास इसके निदान के साधनों का अभाव है। इस सन्दर्भ में ध्यान देने वाली बात है कि करीब दस वैश्विक पर्यावरण संधियाँ और करीब सौ के आस-पास क्षेत्रीय और द्विपक्षीय वार्ताएं एवं समझौते संपन्न किये गये हैं। लेकिन उनके प्रति अमीर देशों की उपेक्षा समस्या को अधिक विकराल बना रही है। इस समस्या से निजात पाने की दिशा में दुनिया में जागरूकता लाना ही इस दिवस का उद्देश्य है। 

पर्यावरण संरक्षण की चेतना हमें हरित समृद्धि से समृद्ध जीवन बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह संदेश देती है कि हमारे स्वास्थ्य, हमारे परिवारों, हमारी आजीविका और हमारी धरती को एक साथ संरक्षित करने का समय आ गया है। आज विश्व भर में हर जगह प्रकृति का दोहन एवं शोषण जारी है। जिसके कारण पृथ्वी पर अक्सर उत्तरी ध्रूव की ठोस बर्फ का कई किलोमीटर तक पिघलना, सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत में छेद होना, तूफान, भूकम्प, चक्रावत आना, सुनामी और भी कई प्राकृतिक आपदाओं का होना आदि ज्वलंत समस्याएं विकराल होती जा रही है, जिसके लिए मनुष्य ही जिम्मेदार हैं। ग्लोबल वार्मिग के रूप में जो आज हमारे सामने हैं। ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। जीव-जन्तु अंधे हो जाएंगे। लोगों की त्वचा झुलसने लगेगी और कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती इलाके चपेट में आ जाएंगे। 

पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति उपेक्षा का ही परिणाम है कि हमारे द्वारा कहीं फैक्ट्रियों का गन्दा जल हमारे पीने के पानी में मिलाया जा रहा है तो कहीं गाड़ियों से निकलता धुआं हमारे जीवन में जहर घोल रहा है और घूम फिर कर यह हमारी पृथ्वी को दूषित बनाता है। जिस पृथ्वी को हम माँ का दर्जा देते हैं उसे हम खुद अपने ही हाथों दूषित करने में कैसे लगे रहते हैं? आज जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है। अगर पृथ्वी के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाए तो मानव जीवन कैसे सुरक्षित एवं संरक्षित रहेगा? पृथ्वी है तो सारे तत्व हैं, इसलिये पृथ्वी अनमोल तत्व है। इसी पर आकाश है, जल, अग्नि, और हवा है। इन सबके मेल से प्रकृति की संरचना सुन्दर एवं जीवनमय होती है। अपने−अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी पर अत्याचार रोकना होगा और कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अतिशयोक्तिपूर्ण ढं़ग से औद्योगिक क्रांति पर नियंत्रण करना होगा, क्योंकि उन्हीं के कारण कार्बन उत्सर्जन और दूसरी तरह के प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है। 

मानवीय क्रियाकलापों की वजह से पृथ्वी पर बहुत सारे प्राकृतिक संसाधनों का विनाश हुआ है। इसी सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए बहुत सारी सरकारों एवं देशों नें इनकी रक्षा एवं उचित दोहन के सन्दर्भ में अनेकों समझौते संपन्न किये हैं। इस तरह के समझौते यूरोप, अमरीका और अफ्रीका के देशों में 1910 के दशक से शुरू हुए हैं। इसी तरह के अनेकों समझौते जैसे- क्योटो प्रोटोकाल, मांट्रियल प्रोटोकाल और रिओ सम्मलेन बहुराष्ट्रीय समझौतों की श्रेणी में आते हैं। वर्तमान में यूरोपीय देशों, जैसे- जर्मनी में पर्यावरण मुद्दों के सन्दर्भ में नए-नए मानक अपनाए जा रहे हैं, जैसे- पारिस्थितिक कर और पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत सारे कार्यकारी कदम एवं उनके विनाश की गतियों को कम करने से जुड़े मानक आदि। क्योटो प्रोटोकाल का मुख्य उद्देश्य विकसित देशों द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के स्तर से 5 प्रतिशत कम स्तर प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसी तरह मांट्रियल प्रोटोकाल में ओजोन की परत को नष्ट करने वाले पदार्थों के उत्पादन को प्रतिबंधित करने का प्रावधान किया गया है। ध्यान रहे की वर्ष 1998 में मांट्रियल में हुए सम्मलेन में विश्व के 12 ऐसे पदार्थों के उत्पादन को संपत करने का लक्ष्य रखा गया था जो कि प्रदूषण को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरण को भी हानि पहुंचा रहे थे।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कई प्रजाति के जीव-जंतु, प्राकृतिक स्रोत एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं, जिससे पृथ्वी असंतुलित हो रही है। विलुप्त होते जीव-जंतु और वनस्पति की रक्षा के लिये विश्व-समुदाय को जागरूक करने के लिये ही इस दिवस को मनाया जाता है। आज चिन्तन का विषय न तो रूस-यूक्रेन युद्ध है और न मानव अधिकार, न कोई विश्व की राजनैतिक घटना और न ही किसी देश की रक्षा का मामला है। चिन्तन एवं चिन्ता का एक ही मामला है लगातार विकराल एवं भीषण आकार ले रही गर्मी, सिकुड़ रहे जलस्रोत, विनाश की ओर धकेली जा रही पृथ्वी एवं प्रकृति के विनाश के प्रयास। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता प्रदूषण, नष्ट होता पर्यावरण, दूषित गैसों से छिद्रित होती ओजोन की ढाल, प्रकृति एवं पर्यावरण का अत्यधिक दोहन- ये सब पर्यावरण के लिए सबसे बडे़ खतरे हैं और इन खतरों का अहसास करना ही विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस का ध्येय है। प्रतिवर्ष धरती का तापमान बढ़ रहा है। आबादी बढ़ रही है, जमीन छोटी पड़ रही है। हर चीज की उपलब्धता कम हो रही है। आक्सीजन की कमी हो रही है। साथ ही साथ हमारा सुविधावादी नजरिया एवं जीवनशैली पृथ्वी और उसके पर्यावरण एवं प्रकृति के लिये एक गंभीर खतरा बन कर प्रस्तुत हो रहा हैं।

जल, जंगल और जमीन इन तीन तत्वों से पृथ्वी और प्रकृति का निर्माण होता है। यदि यह तत्व न हों तो पृथ्वी और प्रकृति इन तीन तत्वों के बिना अधूरी है। विश्व में ज्यादातर समृद्ध देश वही माने जाते हैं जहां इन तीनों तत्वों का बाहुल्य है। बात अगर इन मूलभूत तत्व या संसाधनों की उपलब्धता तक सीमित नहीं है। आधुनिकीकरण के इस दौर में जब इन संसाधनों का अंधाधुन्ध दोहन हो रहा है तो ये तत्व भी खतरे में पड़ गए हैं। अनेक शहर पानी की कमी से परेशान हैं। आप ही बताइये कि कहां खो गया वह आदमी जो स्वयं को कटवाकर भी वृक्षों को कटने से रोकता था? गोचरभूमि का एक टुकड़ा भी किसी को हथियाने नहीं देता था। जिसके लिये जल की एक बूंद भी जीवन जितनी कीमती थी। कत्लखानों में कटती गायों की निरीह आहें जिसे बेचैन कर देती थी। जो वन्य पशु-पक्षियों को खदेड़कर अपनी बस्तियों बनाने का बौना स्वार्थ नहीं पालता था। अब वही मनुष्य अपने स्वार्थ एवं सुविधावाद के लिये सही तरीके से प्रकृति का संरक्षण न कर पा रहा है और उसके कारण बार-बार प्राकृतिक आपदाएं कहर बरपा रही है। रेगिस्तान में बाढ़ की बात अजीब है, लेकिन हमने राजस्थान में अनेक शहरों में बाढ़ की विकराल स्थिति को देखा हैं। जब मनुष्य पर्यावरण का संरक्षण नहीं कर पा रहा तो पर्यावरण भी अपना गुस्सा कई प्राकृतिक आपदाओं के रूप में दिखा रही है। वह दिन दूर नहीं होगा, जब हमें शुद्ध पानी, शुद्ध हवा, उपजाऊ भूमि, शुद्ध वातावरण एवं शुद्ध वनस्पतियाँ नहीं मिल सकेंगी। इन सबके बिना हमारा जीवन जीना मुश्किल हो जायेगा। आवश्यक है जीवन शैली में बदलाव आये। हर क्षेत्र में संयम की सीमा बने। हमारे दिमागों में भी जो स्वार्थ एवं सुविधावाद का शैतान बैठा हुआ है, उस पर अंकुश लगे। सुख एवं सुविधावाद के प्रदूषण के अणु कितने विनाशकारी होते हैं, सहज ही विनाश का रूप ले पर्यावरण की विनाशलीला को देखकर कहा जा सकता है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। इस अंत की ओर बढ़ते कदमों को रोककर ही हम विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस को मनाने की सार्थकता को सिद्ध कर पायेंगे।

- ललित गर्ग

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़